‘सर्वं जगत् सुखमयं सहायकं च’
संसार सुख सम्पूर्ण है, पाने की कला आनी चाहिए।
जल जीवन देता, अग्नि सब शीत हर लेती
अंशुक-अशन-आसन सब सस्या दे देती
छोड़ इन सबको और तुम्हें क्या चाहिए।
संसार सुख सम्पूर्ण है, पाने की कला आनी चाहिए।
वायु वहती प्राणों को, आकाश अवकाश भर देता
सूर्य सुझाता, कार्य कराता, चाँद चमक भर देता
सब सच्चिदानन्दमय हंै, और तुझे क्या चाहिए ?
संसार सुख सम्पूर्ण है, पाने की कला आनी चाहिए।