Friday, 2 August 2019

किं सर्वं खल्विदं ब्रह्म

किं सर्वं खल्विदं ब्रह्म
अन्नं न निन्द्यात् के पाठक!
अन्न तिरस्कार तेरा स्वीकार्य नहीं।
सह नौ भुनक्तु के वाचक!
छुआ-अन्न लौटाना तेरा स्वीकार्य नहीं।
ईशा वास्यमिदं के उपदेशक!
विवाह में जातिभेद तेरा स्वीकार्य नहीं।
असतो मा सद्गमय कहते-कहते
ओढ़ रहे हो अंधकार को
तो मार्ग तेरा मुझे स्वीकार्य नहीं।
अद्रोहः सर्वभूतेषु के प्रवाचक!
यह द्रोह तेरा स्वीकार्य नहीं।
भो वेदहन्ता! भेदकर्ता!
वेदोपदेश तेरा स्वीकार्य नहीं।

डाॅ रामहेत गौतम सहायक प्राध्यापक, संस्कृत विभाग, डाॅ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर मप्र।

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