हमारे लिए ज्योति धारिए . ब्राह्मणों व क्षत्रियों में ज्योति स्थापित कीजिए . वैश्यों , शूद्रों में ज्योति स्थापित कीजिए . मेरे लिए ज्योति धारिए . मुझे ज्योतिष्मान बनाने की कृपा कीजिए .
छब्बीसवां अध्याय
अग्निश्च पृथिवी च सन्नते ते मे सं नमतामदो
वायुश्चान्तरिक्षं च सन्नते ते मे सं नमतामदऽ
आदित्यश्च द्यौश्च सन्नते ते मे सं नमतामदs
आपश्च वरुणश्च सन्नते ते मे सं नमतामदः .
सप्त संसदो अष्टमी भूतसाधनी .
सकामाँ २ अध्वनस्कुरु संज्ञानमस्तु मेमुना .. ( १ )
अग्नि और पृथ्वी देव हमारे अनुकूल होने की कृपा करें . हमें आनंद प्रदान करनेकी कृपा करें। वायु और अंतरिक्ष देव हमारे अनुकूल होने की कृपा करें . हमें आनंद प्रदान करने की कृपा करें . आदित्य और स्वर्गलोक हमारे अनुकूल होने की कृपा करें . हमें आनंद प्रदान करने की कृपा करें . जल और वरुण देव हमारे अनुकूल होने की कृपा करें . हमें आनंद प्रदान करने की कृपा करें . सात संसद ( अग्नि , वायु , अंतरिक्ष , सूर्य , आकाश , जल और वरुण ) और आठवीं पृथ्वी को हमारे अनुकूल बनाने की कृपा करें . आप की कृपा से हमारे यज्ञ सकाम ( कामना को फलीभूत करने वाले हों . आप की कृपा से हमें संज्ञान ( श्रेष्ठ पूर्ण ज्ञान ) हो . ( १ )
यथेमां वाचं कल्याणी मावदानि जनेभ्यः .
ब्रह्मराजन्याभ्यां शूद्राय चार्याय च स्वाय चारणाय च.
प्रियो देवानां दक्षिणायै दातुरिह भूयासमयं मे कामः समृध्यतामुप मादो नमतु .. ( २ )
जैसे यह वाणी लोगों के लिए कल्याणकारी होती है , वैसे ही हमारे लिए कल्याणकारी हो . ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य , शूद्र के लिए आप की वाणी कल्याणकारी हो . ( २ ) हो . दक्षिणा देने वाले देवताओं के प्रिय हों . हमारी इच्छाएं फलीभूत हों . हमें आनंद प्राप्त हो।
बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु . यद्दीदयच्छवस ऽ ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम् उपयामगृहीतोसि बृहस्पतये त्वैष ते योनिर्बृहस्पतये त्वा .. ( ३ )
हे बृहस्पति देव ! आप यज्ञ में लोगों द्वारा पूजनीय हैं . आप स्वर्गलोक में सुशोभित होते हैं . आप सब के स्वामी होने योग्य हैं . आप ॠत और इच्छा शक्ति से सारी प्रजा की रक्षा करते हैं . आप हमें श्रेष्ठ धन प्रदान करने की कृपा कीजिए . आप
३२२ यजुर्वेद
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