इंद्रियों, वासनाओं और इच्छाओं को वश में रखने वाले साधकों द्वारा ईश्वर अंत:करण में जाना जाता है।
सेदग्निर्यो वनुष्यतो निपाति। ऋ. सं. 7.1.15 अग्नि अर्थात् नेता वही है जो हिंसक से बचाता है।
कृतं चिदेनो नमसा विवासे। ऋ. सं. 6.51.8 मैं किये हुए पाप को दंड से दूर करने में समर्थ हूँ।
अपि पन्थामगन्महि स्वस्तिगामनेहसम्। ऋ 6.51. 16 हम सुख से जाने योग्य और निष्पाप मार्ग पर चलें।
मा काकम्बीरमृद् वृहो वनस्पतिम्। ऋ.सं- 6.48.17 हे पुरुष तू काकादि नाना पक्षियों के भरण-पोषण करने वाले वटादि वृक्षों को मत काट।
पर्षि तोकं तनयं पर्तृभिष्ट्वमदब्धैरप्रयुत्वभिः। अग्ने हेळांसि दैव्या युयोधि नोsदेवानि ह्ररांसि च। । ऋ.सं. 6.48.10 हे अग्नि तुम अपने एकत्रित एवं हिंसारहित रक्षासाधनों द्वारा हमारे पुत्र-पौत्रों का पालन करो। देवों का क्रोध हमारे पास से हटाओ एवं हमारी मानवबाधा दूर करो।।
रक्षोत नस्तन्वो अप्रयुच्छन्।। ऋ.सं. 10.04.07 हे वैद्य तू प्रमाद रहित होकर हमारे शरीरों की रक्षा करो।