मुझे सत्य सिद्ध होना है।
सत्य यह है कि
मैं इंसान का बच्चा हूँ,
सिद्ध होना है कि
मुझमें इंसानियत पल रही है।
इंसानियत की पहचान है
भले-बुरे की समझ होना,
बुराई से बचना और
भलाई को अपना लेना।
समझ बढ़ाने के लिए पढ़ना होता है,
इसलिए मैं पढ़ता हूँ निरंतर
सावित्रीबाई फुले की तरह।
बुरा लगता है जब लोग
झगड़ते हैं धुत्त होकर,
और फिर संगठित नहीं रह पाते।
उनके संसाधन बर्बाद हो जाते हैं
झगड़ों, आडम्बर और कुरीतियों में।
मैं पढ़ता हूँ ताकि बच सकूँ इन सबसे,
संगठित रह सकूँ समझदारों के साथ
इसलिए पढ़ता हूँ अच्छी किताबें
ज्योतिराव फुले की तरह।
अच्छा लगता है जब
सम्मान होता है पढ़े-लिखे लोगों का,
और सुनता हूँ उनके संघर्ष की कहानियाँ।
हमारे पास संसाधन नहीं हैं
पर होंसला नहीं खोऊँगा मैं
भटकूँगा भी नहीं।
सीमित संसाधनों का सदुपयोग करता हूँ
और बर्बादी से भी बचता हूँ ताकि
संघर्ष कर सकूं हर परिस्थिति में
भीमराव अंबेडकर की तरह।
मानव नाम है मेरा
मुझे सत्य सिद्ध होना है।
मुझे भारत का सपूत बनना है
और फिर कहना है-
जय भीम जय भारत।
डॉक्टर रामहेत गौतम,
सहायक प्राध्यापक,
संस्कृत विभाग, डॉक्टर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर म.प्र.।