Monday, 31 December 2018

भोर की नव किरण

नव भोर की नव किरण
आलोकित रहे
आपके जीवन नभ में
गुंजन भौरों सी,
फुदकन चिड़ियों सी
गुंजित हो कानों में
नव वर्ष की अठखेलियां
व्यापें आपके आँगन में
मुदित रहें मित्र आपसे
धर्म कर्म के प्रांगण में
शहद घोले जीवनसाथी
हर पल तव जीवन में
वरद हस्त मां बाप के
थामें तुम्हें ज्यों पतंग गगन में
नव वर्ष नव रस भरे तव जीवन में ।

स्त्री

चंचल चेतन पुरुष, स्थिरा तू स्त्री,
गुणहीन पुरुष, गुणसाम्या तू स्त्री,
बहुरूप पुरुष, अद्वितीया तू स्त्री,
दर्शक बनता है पुरुष, नटी तू स्त्री,
विकारी है पुरुष, निर्विकार तू स्त्री,
विन्धता है पुरुष, निर्विन्ध्या तू स्त्री,
दुःखित होता पुरुष, निर्वाण तू स्त्री।

बीतता हुआ वर्ष

जाता हुआ दिसम्बर समेट रहा है अम्बर,
संबरकर उतरेगी आसमां से नव लालिमा
बदल जायेगा दिन, महीना और साल भी,
कामना है कि ओढ़ लो तुम सुख लालिमा।

नव वर्ष

ऐ आते नये साल! बता
क्या दे पायेगा बो सब
जो नहीं दे सके
बीते वर्ष कई ।
भूखे को रोटी
नंगे को वस्त्र
स्त्री को इज्ज़त
शोषित को मान
कल्लू को शिक्षा
मुन्नी को जीवन
बंधुआ को मुक्ति
किसान को कीमत
मजदूर को काम
बेरोजगार को रोजगार
रिस्तों की उमंग और बहुत कुछ ।
ऐ नये साल बता क्या हर पायेगा तू
मनचलों की कुदृष्टि,
धार्मिक द्वेष
जाति के बंधन
नेताओं का झूठ
आफिस से रिश्वत खोरी
लिंग भेद
शहरों से धुआं
गांवों से गरीबी
सड़कों से घटनाएं
गलियों की लूट
दुकानों के धोखे
रिस्तों से शक और बहुत कुछ ।