सागर के सामने पानी की हर बूँद तुच्छ होती है, लेकिन बूँद ही है जो सागर को आकार देती है| अपनत्व विहीन न सागर की शान न बूँद की सत्ता. मिल के रहो मेरे दोस्त सिर्फ यही सत्य की सत्ता||
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