Sunday, 23 June 2019

सांड बने समस्या

।।भारत की समस्या।।

भारत- एक किसान
नारद- एक पत्रकार
नारायण- एक शासक
एक दिन भारत बहुत परेशान था, उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे?
नारद- (सत्ताधीश के गुणगान करते हुए) नारायण- नारायण, क्या हुआ बन्धुवर? बड़े परेशान दिख रहे हो।
भारत- क्या करूँ भैया! बहुत बड़ी उलझन भरी समस्या में फसा हूँ ।
नारद- क्या समस्या है? बन्धुवर!
भारत- क्या बताऊँ एक ओर धर्म संकट है तो दूसरी ओर अस्तित्व का संकट ।
नारद- वो कैसे?
भारत- मेरे पास सौ पशुधन है । तीन सांड, कुछ बछड़े, कुछ गायें और कुछ खेत में जोतने के लिए बैल हैं।
नारद- तुम तो बड़े धनवान हो। इतना गौ-धन जो है तुम्हारे  पास। फिर परेशानी की क्या वजह है?
भारत- बात ये है कि बैल इतने कमज़ोर हो गए हैं कि ठीक से फसल ही नहीं हो पा रही। गायें भी इतनी कमज़ोर हो गयी हैं कि बच्चे व बछड़े ही भूखे रहने के कारण कुपोषित तथा बीमार रहते हैं। अतः नये बैल मजबूत होंगे यह सम्भावना भी नहीं है। आगे परिवार कैसे पलेगा? मुनिवर!
नारद- चलो मौके का मुआयना करें, तभी समस्या का समाधान निकल पायेगा।
भारत- ठीक है चलिए।
दोनों पशुशाला जाते हैं ।
पशुशाला पहुंच कर-
नारद- हे भारत! दिखाओ तो क्या और कैसा प्रबन्ध किया है तुमने।
भारत- ये एक खुला हुआ बाड़ा है, सारे गौवंश यही पर खुले रहते हैं।
नारद- ये तीनों सांड तो बहुत मोटे-ताज़े हैं फिर ये गाय-बैल व बछड़े क्यों सूख रहे हैं। क्या इन्हें खाने-पीने के लिए नहीं देते क्या?
भारत- चारे की कमी नहीं है। सभी स्वतंत्र होते हैं खाने के लिए और चारा खुले में रख दिया जाता है।
नारद- फिर क्या कारण है कि ये दुर्बल ही हैं? कारण तो अवश्य होगा क्योंकि बिना कारण के कोई कार्य नहीं होता ।
(नारद कुछ देर तक सोच-विचार करता है)
नारद- अच्छा भाई भारत! एक बार मेरे सामने ही सबको चारा खिलाओ।
(भारत खुले में इकट्ठा चारा डाल कर सारे गौवंश को खुला छोड़ देता है।)
तभी मोटे-ताज़े तीन सांड आते हैं और गाय, बैल व बछड़ों को सींग मारकर भगा देते हैं। तीनों खाते तो हैं ही अखाड़े कर गोवर करके वहीं बैठ जाते हैं और कोई पास भटकता तो मार-मार के लहू-लुहान कर देते। अवशिष्ट रह जाने  इधर-उधर बैठ जाते। तब जाकर शेष की जुगत लग पाती।
नारद- क्या ऐसे ही चारा डाल कर छोड़ देते हो।
भारत- हाँ पर जब भी समय मिलता है तो डण्डे से इन सांडों को खा लेने के बाद एक ओर खदेड़ कर शेष को खिला दिया करता हूँ फिर ये बैल गायों व बछड़ों को भी  नहीं खाने देते।
नारद- हाँ अब सारी समस्या समझ में आ गयी। अब एक काम करो।
भारत- क्या?
नारद- इन तीनों सांडो, बैलों, गायों और बछड़ों को अलग-अलग बांधकर चारा खिलाओगे तो सबको पर्याप्त चारा मिलेगा सभी स्वस्थ रहेंगे।
भारत- ठीक है।
नारद- नारायण-नारायण शब्दों के साथ सत्ताधीश के गुणगान करता हुआ चला जाता है।
भारत यही तरीका अपनाता है । सभी को अलग-अलग खिला कर एक साथ छोड़ देता है। कुछ समय बाद सभी तंदुरुस्त हो जाते हैं। बैल खेत जोतने में पीछे नहीं रहते, गायें पुनः पर्याप्त दूध देने लगतीं हैं, बछड़े समय-समय पर बैल बनते रहते, सांडो का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। भारत पुनः खुशहाल हो जाता है।

डाॅ रामहेत गौतम सहायक प्राध्यापक, संस्कृत विभाग, डाॅ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर मप्र ।

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