विरल - च्छन्दः – लक्षण-रचना
श्रवणाभरणम् (विकृतिः)
लक्षण - नरसजकारलगं मुनिषड्रसवेदयति श्रवणाभरणम् ॥
(सुज्ञानकुमारमाहान्तिरचितलक्षणं)
अर्थ – विकृतिः जाति के इस श्रवणाभरण वृत्त के प्रत्येक चरण में 23 अक्षर होते हैं जिस में क्रमशः, एक नगण, 6 जगण (रसजकार), एक लघु एवं एक गुरु के साथ सप्तम (मुनि), षष्ठ (षड्), षष्ठ (रस) एवं चतुर्थ (वेद) अक्षरों में यतिपात होते हैं ।
{इस छन्द का प्रसिद्ध उदाहरण महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र है । पिङ्गल के छन्दःसूत्र, वृत्तरत्नाकर, छन्दोमञ्जरी आदि ग्रन्थ में इस का लक्षण अनुपलब्ध होने से उपर्युक्त प्रकार से इस के प्रयोक्ताओं के लाभार्थ निरूपित हम ने किया है – सुज्ञानकुमारमाहान्ति }
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥
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