Thursday, 22 September 2022

अरे ओ जातीय श्रेष्ठ

अरे ओ जातीय श्रेष्ठ!
कितनी खोखली है तेरी श्रेष्ठता?
इतनी कि कोई खड़ा भी हो 
तो तुम्हारी चूलें हिल जाती हैं।
और तुम बौखला जाते हो।
और लगते कुचलने किसी के स्वाभिमान को
ताकि केवल तुम्हारा ही स्वाभिमान ज़िन्दा रहे,
और तुम खड़े रहो निर्लज्ज ठूंठ की तरह।

यह जाति ब्रह्मजाल का वो तन्तु है
जिसे वह सीने से लगाके ढोता हैं।
केन्द्र में बैक के सोता है सृष्टिकर्ता,
कई के शोषण से वो पोषण पाता है।

No comments:

Post a Comment