सत्य दांव पर लगा हुआ।
जन-जन व परिवेश देश है,
यह देश दांव पर लगा हुआ।
पल-पल विखरते विश्वास,
ऐक्यभाव नित दरक रहा।
भाँति भाँति के नवफूल धरे
बाग-सा महकता देश रहा।
सीमाएं नित्-नित् बदलीं हैं
सीमाओं से कब देश रहा?
ऐक्य न होगा देश न होगा
सदा ऐक्य की बात हो यहाँ।
06-02-2020
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