Monday, 26 August 2024

पिता की साईकिल

मेरे पिता की साईकिल 

सच कहता हूं कि 
मेरे पिता की साईकिल 
बड़े होने के संकल्प के साथ 
पगली सी दौड़ती रही गली-कूचों में,
पीती रही पसीना, 
और खाती रही गम्म। 

कैरियर थी कि पीठ थी उसकी 
मां मेरी बैठा करती उस पर,
और डंडे रूपी कांधे पै बच्चे हम।

ट्रिन-ट्रिन करती-करती
पहले खेत-खलिहान, 
फिर बाजार, 
फिर स्कूल-कालेज गई। 

वहां किताबें देखकर 
भारी सी भरमा गई। 
पढ़ने के चश्के में फंसी 
शिक्षकों की संगत पा गई।

फिर क्या था, 
साईकिल, साईकिल न रही
पहले मोटरसाइकिल हुई,
फिर धीरे से कार हो गई।

दौड़ते हुए शहर-शहर
एसी म्यूजिक सुनते हुए 
अचानक देख साईकिल को
तर-बतर हांफते हुए,
अपने अतीत में खो गई। 

फिर सोचने लगी
वो सख्त व फटे हाथ,
जोर मारते नंगे विवाईदार पैर,
पसीने से निचुड़ते बेतरतीब बाल,
हांपनी से झुलसती सीं मूंछें,
बनियान से ताकती झुलसी खाल,
जर्जर देह कहीं तो छूट गई।
इस तरह 
मौके-मौके पर व्याकुल हो उठती है,
साईकिल तो साईकिल है
कह देती है कभी-कभी
बेटा छूट गईँ गांव की गलियों में चल।

Friday, 23 August 2024

समझदार

दिमाग चलाना समझदारों का काम है, जवान चलाना नहीं।
लेखक के जीवन भर के ज्ञान को आप तीन दिन में पढकर और अधिक समझदार होते हैं।

Wednesday, 21 August 2024

रोटी-वेटी का वक्त

घोड़ी से उतारा न कभी मूंछ पर मारा,
न खेत छीने कभी न वो बस्ती जलाया।
न नये कपड़े हैं फाड़े न फसल है लूटी,
जब मौका पड़ा तो हाथ ही है बड़ाया।
न पढ़ने से रोका, न ही बड़ने से रोका,
फिर भी भाई ने क्यों दोषी है ठहराया?
कुछ तो कसर रह गई विचार कीजिए,
रोटी-बेटी वेहार का वक्त है जो आया।

Monday, 12 August 2024

Friday, 9 August 2024

PhD panelists

1. Prof. Rajesh Kumar, 
Rajasthan university 
2. Prof. Ghanshyam vairva rajasthan 
3. Prof. Ramsumer yadav
4. Dr. Prafull gadpal
5. Prof. G. L. Mina
6. 

Thursday, 1 August 2024

शब्दब्रह्महेत्वन्नाधार

तुम कोरी चमार तुम बढ़ई
तुम लोहार कुम्हार हो।
बराबरी से जिओ तुम भी
शब्दब्रह्महेत्वन्नाधार हो।।rg

लड़ता था धृतराष्ट्र भी प्रतिपल मानस युद्ध।
लखा लोहिया भीम ने वह था कितना क्रुद्ध।tarashankar tripathi
अंधा था दिव्यांग मान सत्ता में भागीदारी दे देते।
अपनों को उनका हक न देने की दुर्बुद्धि हर लेते।rg