Tuesday, 24 June 2025

अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता

जब देश को धर्मशास्त्र के हिसाब से चलाने वाले लोग बुलन्दियों पर हों और जनता को उनके हिसाब से चलाने में सरकारें सहयोग करती हों तो भक्त जनता उसी ओर हांक दी जाती है। धर्मशास्त्रों से चलने वाले अन्य एशियाई देशों की डगर पर चल दिए हैं क्या हम? आज हमें आत्ममूल्यांकन की सख़्त जरूरत है। भारत बुद्ध की धरती है। जहाँ युद्ध है वहाँ विनाश है। सारे संसाधन ताकतवरों के कब्जे में होते हैं।जो लोग यह भ्रम पाले बैठे हैं कि वे बहुत ताकतवर हैं और वे 90% जनता को संसाधन वंचित कर वर्ण व्यवस्था के हिसाब से जीवन जीने के लिए मजबूर कर राज करेंगे। वे भूल रहे हैं कि पशुओं को लाठी से हांका जा सकता है। यहां तक तो ठीक है 
पर 
जब बरेदी पर शासन करने के लिए बंदूक वाला, 
और बंदूक बाले पर तोप बाला 
और तोप बाले पर बम बाला, 
और बम बाले पर परमाणु बम बाला, 
और परमाणु बम बाले पर हाइड्रोजन बम बाला 
शासन करने की ताक में बैठा है। 
अतः हे लाठी बाले बाले भैया अपने आस-पास के लोगों को पशु मत बना।
उन्हें इंसान बना अगर तू इंसान है तो। 
अगर तू अपने आप को इंसान से ऊपर का मान बैठा है तो मानने से क्या होता है कोई और भी है जो तुझसे भी ऊपर अपने आप को मानता है। 
बस इस ताक में वह भी है कि तू किसी का सम्मान तो छीन ताकि अपमानित लोग मान के भूखे हों और तुझसे त्रस्त हो चुकें।
फिर कोई रक्षक का वेश धारण कर टूट पड़े तुझ पर। 
तू ऐसी गलती करने बच। 
सबके लिए तेरे जैसा विद्वान्, बलवान् धनवान् बनने के रास्ते बन्द मत कर।
सबको बराबर का विद्वान् बनने दे। 
सबको बलवान् बनने दे। 
सबको धनवान् बनने दे। 
जो नहीं बन रहे हों तो ढूँढ ढूँढ़ कर बना। 

'अकेला चना भाड़ नहीं भोड़ता'
फूट जाता है।
भिर बिना दांतो बाला भी खा लेता है।
खाने के लिए दुनिया बैठी है।

No comments:

Post a Comment