बगावत
खेतों पर तुम्हारा कब्जा
कुएं पर भी कब्जा तुम्हारा था।
भैंस तुम्हारी थी क्योंकि
लाठी तुम्हारी थी।
रोटी पर कब्जा तुम्हारा था
बेदर्दी भूख हमारी थी।
जब दरकार थी दो रोटी की
तुमने बेगार कराई थी।
जब ख्वाहिश थी दो कपड़े की
तुमने मजदूरी में उतरन थमाई थी।
जब बेटे ने दो सवाल कर दिए तो
तुमने खाल उधड़वाई थी।
जब बेटी सयानी हुई
तुम्हीं ने घर-खेतों में सताई थी।
सीढ़ी चढ़े जब मन्दिर की
तुमने गौमूत्र से धुलवाई थी।
जब मन न हुआ काम पर जाने का
तुमने पोंदों की खाल उधड़वाई थी।
बीमारी में कुछ रुपये ही तो उधार लिए थे
तुमने खेत-मढ़ैया अपने नाम लिखाई थी।
बच्चों का मन था कि घोड़ी पर बारात हो
तुम्हारे आतंक में रस्म भी न हो पाई थी।
मूँछ का शौंक लगा जब बेटे
को
तुमने गुस्ताख़ी समझ वो भी मुड़वाई थी।
दाऊ-महाराज कह खटिया से उठने में देर क्या हुई,
तुमने बहू-बेटियों-बच्चों तक पर लाठी चलाई थी।
कुत्ते तुम्हारी बराबरी से बैठ सकते, चल सकते
पर हमको तो तुमने औकात दिखाई थी।
फिर कोई आया मसीहा की तरह
मरुस्थल में मेघों की तरह कुछ छाया, कुछ बूँदे थीं।
दो बोरी अनाज था और दो लाठियाँ भी
दो मीठे बोल थे और गले भी लगाया था।
तब हमें खोने को कुछ भी न था
पाने को तो पूरी दुनिया की आस थी।
उम्मीद में तो तुम्हारे दादाओं ने क्या नहीं किया?
धन दिया, रियासतें दीं और बेटियाँ भी दीं थीं।
तुमसे ही तो सीखा है अपना ख्याल रखना
दो बोरी में धर्म नहीं बदला, बगावत की थी।
मुझे छोड़ो उनका तो ख्याल रखो
जो जी रहे हैं कुछ बदलने की आस में
बेशर्मी छोड़ो, सहिष्णुता लाओ
दुत्कारो मत, मान दो, गले लगाओ।
बहुसंख्यक हो जिनकी बदौलत
अब तो रुको, बाड़ मत चबाओ।
खैर तुम तुम हो बदलना तुम्हें है
अच्छे पड़ोसी की अब भी दरकार हमें है।
Dr. Ramhet Gautam, Sagar MP
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