Tuesday, 28 March 2023

अभिधा

पंकज चतुर्वेदी
अभिधा पर बहुत एतराज़ होता है, मगर कबीर और तुलसी जैसे कवियों ने क्या अभिधा का जमकर इस्तेमाल नहीं किया? दोनों की कविता से सिर्फ़ एक उदाहरण देना हो, तो ज़रा देखिए :

* 'जौ तू बाम्हन बम्हनी जाया, आन बाट काहे नहिं आया?
   जौ तू तुरक तुरकनी जाया, भीतरि ख़तना क्यों न कराया?'

~ कबीर

* 'जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। सो नृप अवसि नरक अधिकारी।।'

~ तुलसीदास 

यों अभिधा में कमी खोजने के बजाय सचाई क्या यह नहीं कि प्रसंग के मुताबिक़ बड़े कवि शब्द की सभी शक्तियों का प्रयोग करते हैं? युद्ध जब चल रहा हो, तो अधिकतम दाँव आने चाहिए और कुछ रणनीतियों की खोज तो लड़ाई के दौरान ही हो पाती है : यह इस पर भी निर्भर है कि दुश्मन कब किस तरह हमला करता है!

मनोवृत सरोज-
-अभिधा पर कभी ऐतराज़ नहीं हुआ है, न ही होगा। अभिधा का सटीक और सार्थक प्रयोग बहुत ज़रूरी है। अभिधा में सबसे बड़ा ख़तरा यह रहता है कि भाव और अर्थ-सम्प्रेषण नीरस और उबाऊ हो सकते हैं। कविता में अभिधा के लिए शब्द-संयोजन और विचारों की प्रस्तुति में कसाव और कलात्मक सौंदर्य अपरिहार्य हो उठता है।

किन्तु, यह भी सत्य है कि कवि के लिए चुनौतीपूर्ण रचनात्मक कसौटी, अभिधात्मक कविता ही है। उसकी अर्थवत्ता, सम्प्रेषणीयता और बिम्बात्मक विन्यास-संयोजन, व्यंजना से कई मायनों में मुश्किल और दुष्कर होती है ।

Monday, 27 March 2023

ब्राह्मणस्य लक्षणं

★जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः संस्कारैर्द्विज उच्यते ।
विद्यया याति विप्रत्वं श्रोत्रियस्त्रिभिरेव च ।।अत्रिसंहिता १४१।। 
●ग्रहा गावो नरेन्द्राश्च ब्राह्मणश्च विशेषतः ।
पूजिताः पूजयन्त्येते निर्दहन्त्यपमानिताः ।।
अग्निरर्को विषं शस्त्रं विप्रो भवति कोपितः ।
गुरुर्हि सर्वभूतानां ब्राह्मणः परिकीर्तितः ।।आदिपर्व२८/४।।
●मनोः सम्मतिः --
उत्पत्तिरेव विप्रस्य मूर्तिर्धर्मस्य शाश्वती ।
स हि धर्मार्थमुत्पन्नो ब्रह्मभूयाय कल्पते ।।
●भीष्मकथनम् -- 
गोरजो धान्यधूलिश्च पुत्रस्यालिङ्गने रजः ।
विप्रपादरजो राजन् हन्ति दारुण दुष्कृतिम् ।।शान्तिपर्व।।
यथा भर्त्राश्रयो धर्मः स्त्रीणां लोके युधिष्ठिर ।
स देवः सा गतिर्नान्या क्षत्रियस्य यथा द्विजाः ।।
क्षत्रियः शतवर्षी च दशवर्षी द्विजोत्तमः ।
पितापुत्रौ च विज्ञेयौ तयोर्हि ब्राह्मणो गुरुः ।।
(महा०अनुशासनपर्वणि ८/२०-२१)
दुर्ग्राह्यो मुष्टिना वायुः दुःस्पर्शः पाणिना शशी ।
दुर्धरा पृथिवी राजन् दुर्जया ब्राह्मणा भुवि ।।
(उक्त ३३/२७)
अविद्वान् ब्राह्मणो देवः पात्रं वै पावनं महत् ।
विद्वान् भूयस्तरो देवः पूर्णसागरसन्निभः ।।
अविद्वांश्चैव विद्वांश्च ब्राह्मणो दैवतं महत् ।
प्रणीतश्चाप्रणीतश्च यथाग्निर्दैवतं महत् ।।
श्मशाने ह्यपि तेजस्वी पावको नैव दुष्यति ।
हविर्यज्ञे च विधिवद् गृह एवातिशोभते ।।
एवं यदप्यनिष्टेषु वर्तते सर्वकर्मसु ।
सर्वथा ब्राह्मणो मान्यो दैवतं विद्धि तत्परम् ।। 
(उक्त १५१/२०-२३)
●शिवपुराणे कैलाससंहितायां -- 
समस्तसम्पत्समवाप्तिहेतवः 
   समुत्थितापत्कुलधूमकेतवः ।
अपारसंसारसमुद्रसेतवः 
   पुनन्तु मां ब्राह्मणपादरेणवः ।।१२/४४।।
आपद्घ्नध्वान्तसहस्रभानवः 
   समीहितार्थार्पणकामधेनवः ।
समस्ततीर्थाम्बुपवित्रमूर्तयः 
   रक्षन्तु मां ब्राह्मणपादपासवः ।।४५।।
●चाणक्यभणितम् --
निर्गुणो ब्राह्मणो पूज्यः न च शूद्रो जितेन्द्रियः ।
निर्दुग्धापि हि गौ पूज्या न तु दुग्धवती खरी ।।

Saturday, 25 March 2023

जंबूद्वीप पिस रहा

एक आंगन जाल से है भरा,
किसी को खोटा किसी को खरा।
किसी को जान के हैं लाले,
किसी ने सात पुश्तों को भरा।।
कोई तो जाल कुतरता है,
कोई दिन व रात सींच रहा।
जंबुद्वीप जा जाल में गौतम!
सदियों से यूँ हि  पिसता रहा।।

Friday, 24 March 2023

देख पथिक रे! एकाकी मत चल

देख पथिक रे! एकाकी मत चल,
नभ ने नूतन पाठ पढ़ाया है।
आज दुनिया को चांद भाया है,
जो वो तारे को साथ लाया है।। rg

आज चांद और तारा का
साथ-साथ सैर सपाटा।
आज तो हिंदू भी खुश 
मुसलमान भी है खुश।।rg

Friday, 10 March 2023

कलमकसाई

कसाई की कमाई का कायदा कत्ल है।
अब बो चाहे कलम से करे या छुरी से।।rg11.03.2023

Thursday, 9 March 2023

मनोबल

लघुकथा मनोबल 

गुलाम- मालिक साहब! हमारी बस्ती के कुछ युवा आपकी चाकरी करने से रोकते हैं।
शोषक- ठीक है, ताड़ना पड़ेगा।
(मौका पाकर)
गुलाम- देखो तो सरकार! हमारे हालात के लिए सरकार का नाम ले रहे है।
(गुलामों की बस्ती में जाकर स्वाभिमान के लिए विद्रोही युवकों पर शोषक हमला कर देते हैं।)
गुलाम- अब आया मजा। 
युवा- हमारा तो मनोबल अपनों ने तोड़ा है गैरों में कहाँ दम था, समाज हमेशा लुटा है क्योंकि मनोबल कम था।