गुलाम- मालिक साहब! हमारी बस्ती के कुछ युवा आपकी चाकरी करने से रोकते हैं।
शोषक- ठीक है, ताड़ना पड़ेगा।
(मौका पाकर)
गुलाम- देखो तो सरकार! हमारे हालात के लिए सरकार का नाम ले रहे है।
(गुलामों की बस्ती में जाकर स्वाभिमान के लिए विद्रोही युवकों पर शोषक हमला कर देते हैं।)
गुलाम- अब आया मजा।
युवा- हमारा तो मनोबल अपनों ने तोड़ा है गैरों में कहाँ दम था, समाज हमेशा लुटा है क्योंकि मनोबल कम था।
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