Monday, 27 November 2023
विजय
एक राजा के राज्य में बहुत अव्यवस्था थी।
राजा को खबर लगी कि जनता में इतनी नाराजगी है कि जनता सड़कों पर उतर सकती है।
पूरे प्रशासनिक अमले में खलबली मच गई कि अब इतना बजट भी नहीं है कि छोटा सा काम भी किया जा सके।
तभी एक चतुर मंत्री बोला कि महाराज महाराज आप जूते पहनकर मंदिर के सामने से गुजर जाईए शेष मुझ पर छोड़ दीजिए।
राजा ने ऐसा ही किया।
मंत्री के एक गुप्तचर ने जनता के बीच जाकर इसे मुद्दा बनाने में मदद की।
जनता सड़कों पर आ गई जो कि उसे आना ही था।
खूब झड़पें हुईं।
जब लगने लगा कि विद्रोह पूरे उफान पर है।
अब राजा से उस चतुर मंत्री ने कहा कि अब आप खेद प्रकट कर दो।
उधर कुछ कारिंदों को जनता के बीच से उनका प्रतिनिधि मंडल के रूप में बुला कर माफी की खबर फैलवा दी।
जनता की विजय हुई।
अब जनता अपनी विजय की खुशी मनाने में मग्न हो गई।
राजा का विद्रोह का संकट टल गया।
Friday, 24 November 2023
गौर का सपना
गौर का सपना मर गया
जब स्वार्थ घर कर गया।
पारा टपरा पर चढ़ गया
अखबार भी बिगड़ गया।।
बब्बा को छोड़ डब्बा
Tuesday, 21 November 2023
रामटा-भीमटा
राम रटा तो मार खाया
भीम रटा मुक्ति पाऊंगा।
रामटा बनने न दोगे तुमतो भीमटा बन जाऊंगा।।
राम सुना तो कानों सीसा
भीम रटा सब सुन पाऊंगा।
रामटा बनने न दोगे तुम
तो भीमटा बन जाऊंगा।।
राम रटा तो जीभ काटी
भीम रटा बोल पाऊंगा।
रामटा बनने न दोगे तुम
तो भीमटा बन जाऊंगा।।
राम देखा तो आँखें फूटी
भीम कहा सब देख पाऊंगा।
रामटा बनने न दोगे तुम
तो भीमटा बन जाऊंगा।।
राम छुआ तो हाथ काटे
भीम दिया सब छू पाऊंगा।
रामटा बनने न दोगे तुम
तो भीमटा बन जाऊंगा।।
रामें चला तो पैर टूटे
भीम चाल चल पाऊंगा।
रामटा बनने न दोगे तुम
तो भीमटा बन जाऊंगा।।
राम ढोया तो पीठ सूजी
भीम भार तर जाऊंगा।
रामटा बनने न दोगे तुम
तो भीमटा बन जाऊंगा।।
राम न बोला मत मारो रे!
भीम कहा जेल भिजाऊंगा।
रामटा बनने न दोगे तुम
तो भीमटा बन जाऊंगा।।
रामटा बनूं बेगार करनी
भीमटा हो हक पाऊंगा।
रामटा बनने न दोगे तुम
तो भीमटा बन जाऊंगा।।
रामटा बनूं पढ़ावें न रामटे
भीमटा बन पढ़ पाऊंगा।
रामटा बनने न दोगे तुम
तो भीमटा बन जाऊंगा।।
रामटी बनूं तो छेड़ें रामटे
भीमटी बन लड़ जाऊंगी।
रामटी बनने न दोगे तुम
तो भीमटी बन जाऊंगी।।
रामटा हो घोड़ी न चढ़ सकूं
भीमटा बन चढ़ जाऊंगा।
रामटा बनने न दोगे तुम
तो भीमटा बन जाऊंगा।।
रामटा होऊं मूँछें उखड़ें तो
भीमटा बन ऐंठ चढ़ाऊंगा।
रामटा बनने न दोगे तुम
तो भीमटा बन जाऊंगा।।
रामटों जैसा सज न सकूं तो
भीमटा बन सज जाऊंगा।
रामटा बनने न दोगे तुम
तो भीमटा बन जाऊंगा।।
सुनो रामटों भेद न सहूं अब
भीमटा बन लड़ मर जाऊंगा
रामटा बनने न दोगे तुम
तो भीमटा बन जाऊंगा।।
अपनों के साथ तृप्ति पूर्वक जीने की योग्यता अवैर ही है।
Monday, 20 November 2023
Tuesday, 7 November 2023
भूखा सोना क्या होता है?
नौकरी थी, वेतन भी आयी,
फिर भी भूखा सोया परिवार।
जिम्मेदारी का था अह्सास, आहूत रिश्तों पर था त्यौहार।
Thursday, 2 November 2023
डर
सदियों से जमे डर को अगर धीरे-धीरे निकाला जाए, जैसे छुटाते हैं किसी दाग-धब्बे को। जैसे नाली में जमा कीचड़ में पानी निरंतर डाला जाए तो धुल जाता है कीचड़।
जमा डर कि नाराज हो सकता है देव और हो सकता है नुकसान।
Wednesday, 1 November 2023
संविधान पढ़ूं या पाखण्ड करूं।
जब दादा-दादी को रौंदा तो
परदादे चिल्लाए-
हे देव बचा ले!
पर, कोई नहीं आया।
दादा-दादी भी बेगार करने लगे,
लगा सब ठीक हो गया।
माता-पिता ने किया विरोध बेगारी का फिर,
फिर कुछ झड़पें हुईं,
फिर दादा-दादी ने दुबकाया,
विरोध, व झड़पों से बदला कुछ
और कुछ कानून के डर से
अब बेगार नहीं मजदूरी पाये।
फिर गांव में पंचायतें हुईं
बात रखी गई कि
कोई अंबेडकर हैं
उन्होेंने कहा है कि
गन्दे व गुलाम मत रहो,
गंदा व उतरन मत पहनो,
गंदा व झूठन मत खाओ,
नशा व कर्ज मत करो।
कुछ बचत होने लगी,
कुछ अनाज,
कुछ कपड़े,
कुछ ईंटें तो जमा पाये,
पर न ले पाए भीम प्रतिज्ञाऐं और शिक्षा।
कुछ आजादी,
कुछ वक्त,
कुछ धन आया ही था कि
धूर्तविद्या का आकर्षण
और धूर्तों को भी लालच बढ़ा।
देखा-देखी दे खर्चा सब,
कथा कराए,
भलें कथा का सामान न छू पाये।
दूर से ही पैंड़ भर अशीष लिया
और धूर्त ने लिया छींछा।
पाखंड में बीता समय
और फिर पैदा हुए हम,
जैसे हमेसां होते आए दलित।
फिरें पहने ताबीज-धागे,
मदिरा की धार वही,
और बली बकरों-मुर्गों की।
कालचक्र घूमा
और हम घूमे मैले-कुचैले खेत-खदान पै।
एक दिन आदेश आया,
और मास्टर जी घबराये।
दौड़े-भागे हांपते-भांपते,
दलित वसती में आये और बोले-
भेजो बालक विद्यालय,
हमारी नौकरी बच जाए।
फिर डरे सहमे से हम
साथ पिता के स्कूल आये।
पंडित जी का लंबा सोटा
और दलित बच्चों की लाइन अलग।
मुँह से कहते पढ़ो पर सोटे से भगो।
जैसे-तैसे पढ़ निकरें बाहर
फिर टूटे जातंकी बच्चों का कहर।
जैसे काम पै पिता, बैसे ही स्कूल में हम, पिट आते।
हमने भी विनती करी खूब देवों से
पर कहाँ और कब? वे बचाने आते।
एक दिन आदेश पाकर
फिर पुलिस ने समझाया।
मत मारो दलितों को,
भाई! सजा का एक्ट है आया।
मौका मिला तो
हमने पढ़ लिया।
सुरक्षा मिली तो
हमने बढ़ लिया।
गंडे ताबीज पहन कर भी
बच्चे अनगिनत मर गए।
इलाज मिल गय वक्त पर,
और हम उनमें से बच गए।
कुछ नेक इंसान भी थे
वे हमको राह दिखा गए।
लुढ़कते-लुढ़कते ही सही
शिक्षा हम भी पा गए।
संविधान का सरकार पर
और सरकार का प्रशासन पर दबाव बढ़ा।
दबाव में ही सही
नौकरी में प्रतिनिधित्व देना पड़ा।
मेरी मजदूरी छूट गई।
मुझे नौकरी मिल गई।
अब सब बोल रहे हैं
कि कुछ दान-पुण्य करो।
मेरा मन कह रहा है कि
सबसे पहले कर्जा भरो।
अब तुम ही बताओ,
मैं क्या करूँ?
तीर्थ करूं या
समाज में जाऊं?
धूर्त पूंजूं या
समाज को लौटाऊं?
पाखण्ड करूं या
संविधान पढ़ूं?
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