Tuesday, 31 March 2020

Work from home

Format for Submitting of Report on Online Education

Name of the Course Coordinator:

Name of the Program:

Name and Code of the Course:

No. of Students enrolled:

Whether involved in imparting On-line education?: 

If yes, which one and what is the mode?:

Is attendance recorded?:

No. of teaching material uploaded:

No. of  e-Lectures, PPTs prepared:

Whether students have been advised to use SWAYAM; SWAYAMPRABHA; UG/PG MOOCs; e-PG Pathshala; e-Content courseware in UG subjects; CEC-UGC, YouTube; National Digital Library?:

If yes, which of the above they are using and what is the feedback?:

Whether Research Scholars are advised use Shodhganga; e-Shodh Sindhu and Vidwan?:

If yes, which of these they are using?:

Whether students are advised to use on-line databases made available by the University?:

If yes, which of these they are using?:

What is the feedback of students?:

Thursday, 26 March 2020

कोरोना

को = कोई
रो = रोड पर
ना = ना आये -

कोरोना -
चीने प्रयोगं
विश्वमापदायां तु
कोरोना कालः।
पालयाsदेशं
रोधय मृत्योः ताण्डवं
रक्षय भारतम् ।

करौ फेनकं
मुखे मास्कं धारय
स्थ दूरे नित्यम्।

छींक-कासयोः
मुखे वस्त्रं धारय
मा थूकय कुत्र।
मा गच्छ कदा
सघन समूहे त्वं
अकरयोगः।

हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूं श्रीमान,
लॉकडाउन का कीजिये
अक्षरसः सम्मान I
अपनी जान से खेलकर
बचा रहे परप्राण,
डॉक्टर पुलिस और मीडिया
का करना सब सम्मान I
डरना बिल्कुल भी नहीं
लड़ने को तैयार,
हर संकट कट जाएगा
जब मोदी की सरकार I
इक्कीस दिनों के बाद में
पुनः मिलेंगे मीत,
तब तक कोरोना से
जंग जाएंगें जीत I

   प्रमोद "भारती" करैरा
       साहित्यकार
   मो० 9425489922

Tuesday, 10 March 2020

चौकीदार

खाली रहा जब-जब पेट चौकीदार का,
जागा तो मगर कुन्दियाँ खोलने के लिए।।

कबीरः ऊचुः जगन्धः

कबीरः ऊचुः जगन्धः
अन्धा यथा गो
वत्सः यस्य मृतः
मिथ्या चाम चर्वति। रामहेत गौतमः

*कबीरा कहे हे जग अंधा*
*अंधी जैसी गाय*
*बछडा था सो मर गया*
*झुठी चाम चटाय*

अर्थ-
एक अंधी गाय थी । उसका बछड़ा मर गया । मालिक ने
उसके चमड़े में भूसा भरकर बछड़े का पुतला तैयार कर दिया । गाय अंधी थी , वह बछड़े को तो देखी नहीं थी । पहले की तरह उस पुतले को चाटकर दूध देने लगी ।

.....कबीर दास जी कहते हैं,  यह संसार भी उस अंधी गाय की तरह है । वह किसी ईश्वर, अल्लाह, गॉड को तो देखा नहीं है फिर भी धर्म के ठेकेदार , ईश्वर का पुतला दिखाकर  सदियों से उसे दूह ( *शोषण कर* ) रहा है ।

कबीरदास जी का आशय यह समझाना है कि ईश्वर के नाम पर दान-दक्षिणा बंद करो ।  इसी अंधी गाय की तरह पुतले का प्रेम,भय और लालच दिखाकर सदियों से मानव समाज का शोषण होता रहा है ।

सबका मंगल हो।🙏🏻🙏🏻

Saturday, 7 March 2020

वेद सबके लिए

स्वामी दयानन्द जी ने ‘यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्यः’ यजुर्वेद के 26/2 मंत्र का प्रमाण देकर बताया कि वेद स्वयं ही मानवमात्र को उसके अध्ययन का अधिकार देते हैं।

Wednesday, 4 March 2020

ज्ञ उच्चारण

'ज्ञ' वर्ण के उच्चारण पर शास्त्रीय दृष्टि-

संस्कृत भाषा मेँ उच्चारण की शुद्धता का अत्यधिक महत्त्व है। शिक्षा व व्याकरण के ग्रंथोँ मेँ प्रत्येक वर्ण के उच्चारण स्थान और ध्वनि परिवर्तन के आगमलोपादि नियमोँ की विस्तार से चर्चा है। फिर भी "ज्ञ" के उच्चारण पर समाज मेँ बडी भ्रांति है। और जब सनातन वैदिक हिँदू धर्म की पीठ पर छुरा घोँपने वाले कुलवर्णादिविहीन आर्यसमाजी उपद्रवियोँ को तथाकथित धर्माचार्योँ की अनदेखी से खुली छूट मिली हो तो इस भ्रांति का व्यापक होना नैसर्गिक ही है!

ज्+ञ्=ज्ञ

कारणः-'ज्' चवर्ग का तृतीय वर्ण है और 'ञ्' चवर्ग का ही पंचम वर्ण है।
जब भी 'ज्' वर्ण के तुरन्त बाद 'ञ्' वर्ण आता है तो 'अज्झीनं व्यञ्जनं परेण संयोज्यम्' इस महाभाष्यवचन के अनुसार 'ज् +ञ'[ज्ञ] इस रुप मेँ संयुक्त होकर 'ज्य्ञ्' ऐसी ध्वनि उच्चारित होनी चाहिये।।

किँतु ये भी इन हिँदू धर्म के दीमकोँ का एक भ्रामक मत है।।

प्रिय मित्रोँ!

"ज्ञ"वर्ण का यथार्थ तथा शिक्षाव्याकरणसम्मत शास्त्रोक्त उच्चारण 'ग्ञ्' ही है। जिसे हम सभी परंपरावादी लोग सदा से ही "लोक" व्यवहार करते आये हैँ।

कारणः- तैत्तिरीय प्रातिशाख्य 2/21/12 का नियम क्या कहता है-
स्पर्शादनुत्तमादुत्तमपराद् आनुपूर्व्यान्नासिक्याः।।
इसका अर्थ है- अनुत्तम, स्पर्श वर्ण के तुरन्त बाद यदि उत्तम स्पर्श वर्ण आता है तो दोनोँ के मध्य मेँ एक नासिक्यवर्ण का आगम होता है। यही नासिक्यवर्ण शिक्षा तथा व्याकरण के ग्रंथोँ मेँ यम के नाम से प्रसिद्ध है। 'तान्यमानेके' (तै॰प्रा॰2/21/13) इस नासिक्य वर्ण को ही कुछ आचार्य 'यम' कहते हैँ। प्रसिद्ध शिक्षाग्रन्थ 'नारदीयशिक्षा' मेँ भी यम का उल्लेख है।अनन्त्यश्च भवेत्पूर्वो ह्यन्तश्च परतो यदि। तत्र मध्ये यमस्तिष्ठेत्सवर्णः पूर्ववर्णयोः।। औदव्रजि के 'ऋक्तंत्रव्याकरण' नामक ग्रंथ मेँ भी 'यम' का स्पष्ट उल्लेख है।'अनन्त्यासंयोगे मध्ये यमः पूर्वस्य गुणः' अर्थात् वर्ग के शुरुआती चार वर्णो के बाद यदि वर्ग का पाँचवाँ वर्ण आता है तो दोनो के बीच 'यम' का आगम होता है,जो उस पहले अनन्तिम-वर्ण के समान होता है।
प्रातिशाख्य के आधार पर यम को परिभाषित करते हुए सरल शब्दों मेँ यही बात भट्टोजी दीक्षित भी लिखते हैँ-
"वर्गेष्वाद्यानां चतुर्णां पंचमे परे मध्य यमो नाम पूर्व सदृशो वर्णः प्रातिशाख्ये प्रसिद्धः" -सि॰कौ॰12/ (8/2/1सूत्र पर)
भट्टोजी दीक्षित यम का उदाहरण देते हैँ। पलिक्क्नी 'चख्खनतुः' अग्ग्निः 'घ्घ्नन्ति'।
यहाँ प्रथम उदाहरण मेँ क् वर्ण के बाद न् वर्ण आने पर बीच मेँ क् का सदृश यम कँ(अर्द्ध) का आगम हुआ है। दूसरे उदाहरण मेँ खँ कार तथैव गँ कार यम, घँ कार यम का आगम हुआ है।

अतः स्पष्ट है कि यदि अनुनासिक स्पर्श वर्ण के तुरंत बाद अनुनासिक स्पर्श वर्ण आता है तो उनके मध्य मेँ अनुनासिक स्पर्श वर्ण के सदृश यम का आगम होता है।
प्रकृत स्थल मेँ-
ज् + ञ्
इस अवस्था मेँ भी उक्त नियम के अनुसार यम का आगम होगा।
किस अनुनासिक वर्ण के साथ कौन से यम का आगम होगा।विस्तारभय से सार रुप दर्शा रहे हैँ। तालिक देखेँ-

स्पर्श अनुनासिक वर्ण यम
क् च् ट् त् प् कँ्‌
ख् छ् ठ् थ् फ् खँ्‌
ग् ज् ड् द् ब् गँ्‌
घ् झ् ढ् ध् भ् घँ्‌

यहाँ यह बात ध्यातव्य है कि यम के आगम मेँ जो'पूर्वसदृश' पद प्रयुक्त हुआ है , उसका आशय वर्ग के अन्तर्गत संख्याक्रमत्वरुप सादृश्य से है सवर्णरुप सादृश्य से नहीँ। ये बात उव्वट और माहिषेय के भाष्यवचनोँ से भी पूर्णतया स्पष्ट है ।जिसे भी हम विस्तारभय से छोड रहे हैँ।

अस्तु हम पुनः प्रक्रिया पर आते हैँ-

ज् ञ् इस अवस्था मेँ तालिका के अनुसार 'ग्'यम का आगम होगा-
ज् ग् ञ्

ऐसी स्थिति प्राप्त होने पर चोःकु [अष्टाध्यायी सूत्र 8/2/30]
सूत्र प्रवृत्त होता है।
'ज्' चवर्ग का वर्ण है और 'ग' झल् प्रत्याहार मेँ सम्मिलित है, अतः इस सूत्र से 'ज्' को कवर्ग का यथासंख्य 'ग्' आदेश हो जायेगा। तब वर्णोँ की स्थिति होगी-
ग् ग् ञ्
इस प्रकार हम देखते हैँ कि ज् का संयुक्त रुप से 'ज्ञ' उच्चारण की प्रक्रिया मेँ उपर्युक्त विधि से 'ग् ग् ञ्' इस रुप से उच्चारण होता है। यहाँ जब ज् रुप ही शेष नहीँ रहा तो 'ज् ञ्' इस ध्वनिरुप मेँ इसका उच्चारण कैसे हो सकता है? अतः 'ज्ञ' का सही एवं शिक्षाव्याकरणशास्त्रसम्मत उच्चारण 'ग्ञ्' ही है।।
प्रतिलिपि---
जय श्री राम !!!

Monday, 2 March 2020

यज्ञ न करने वालों का धन लूट कर ब्राह्मणों को

भूरिकर्मणे वृषभाय वृष्णे सत्य शुष्माय सुनवाम सोमम् . य आदृत्या परिपन्थीव शूरोऽयज्वनो विभजन्नेति वेदः . . . ( ६ ) अनेकविध कर्मयुक्त , देवों में श्रेष्ठ , इच्छापूर्ति में समर्थ एवं यथार्थ प्रालि
वाले इंद्र के निमित्त हम सोम निचोड़ते हैं . जिस प्रकार बटमार जानेवाले भले मनुष्यों का धन छीन लेता है , उसी प्रकार शर इंद्र धन का आदर करके यज्ञ न करने वालों का धन छीनकर उसे यजमानों को देने के लिए ले जाते हैं . ( ६ )

वेदों में आरक्षण

इन्द्र सूक्त 1.53.4
एभिर्युभिः सुमना एभिरिन्दुभिर्निरुन्धानो अमति गोभिरश्विना , इन्द्रेण दस्युं दरयन्त इन्दुभियुतद्वेषसः समिषा रभेमहि . . ( ४ ) हे इंद्र । हमारे द्वारा दिए हुए पुरोडाशादि हव्य एवं सोमरस से प्रसन्न होकर हमें गायों और घोड़ों के साथ - साथ धन भी दो . इस प्रकार हमारी दरिद्रता मिटाकर तुम शोभन मन बन जाओ , इंद्र इस सोमरस के कारण संतुष्ट होकर हमारी सहायता करेंगे तो हम दस्युओं का नाश करके एवं शत्रुओं से छुटकारा पाकर इंद्र के द्वारा दिए हुए अन्न का उपभोग करेंगे . ( ४ ) समिन्द्र राया समिषा रभेमहि सं वाजेभिः पुरुश्चन्द्रैरभिधुभिः . सं देव्या प्रमत्या वीरशुष्मया गोअग्रयाश्वावत्या रभेमहि . . ( ५ ) हे इंद्र ! हम धन और अन्न के साथ - साथ ऐसा बल भी प्राप्त करें , जो बहुतों का आहलादक एवं दीप्तिमान् हो , शत्रुविनाश में समर्थ तुम्हारी उत्तम बद्धि हमारी सहायता करे , तुम्हारी बुद्धि स्तोताओं को गाय आदि प्रमुख पश एवं अश्व प्रदान करे , ( ५ )
त्वमेताजनराज्ञो द्विर्दशाबन्धुना सुश्रवसोपजग्मुषः . षष्टिं सहस्रा नवतिं नव श्रुतो नि चक्रेण रथ्या दुष्पदावृणक् . . ( ९ ) असहाय सुश्रवा नामक राजा के साथ युद्ध करने के लिए साठ हजार निन्यानवे सहायकों के सहित बीस जनपद शासक आए थे . हे प्रसिद्ध इंद्र ! तुमने शत्रुओं द्वारा अलंघ्य चक्र से उन अनेक को पराजित किया था . ( ९ ) त्वमाविथ सुश्रवसं तवोतिभिस्तव त्रामभिरिन्द्र तृर्वयाणम् . त्वमस्मै कुत्समतिथिग्वमायुं महे राजे यूने अरन्धनायः . . ( १० ) हे इंद्र ! तुमने पालकशक्ति द्वारा सुश्रवा एवं सूर्यवान् नामक राजाओं की रक्षा । की थी , तुमने कुत्स , अतिथिग्व एवं आयु नामक राजाओं को महान् एवं तरुण राजा सुश्रवा के अधीन किया था , ( १० )

ऋ. 1.104.7 -
अधा मन्ये श्रत्ते अस्मा अधायि वृषा चोदस्व महते धनाय . मा नो अकृते पुरुहूत योनाविन्द्र क्षुध्यद्भयो वय आसुतिं दा . . . ( ७ ) हे इंद्र ! हम तुम्हें मन से जानते हैं एवं तुम्हारी शक्ति पर श्रद्धा रखते हैं . हे कामवर्षी ! तुम हमें महान् धन के निमित्त प्रेरित करो . हे अनेक यजमानों द्वारा बलाए गए इंद्र ! हमें धनरहित घर में मत रखो तथा अन्य भूखों को अन्न एवं दूध दो . ( ७ ) मा नो वधीरिन्द्र मा परा दा मा नः प्रिया भोजनानि प्र मोषी : . आण्डा मा नो मघवञ्छक निर्भन्मा नः पात्रा भेत्सहजानुषाणि . . ( ८ ) हे इंद्र ! हमें मत मारना , हमारा त्याग मत करना एवं हमारे प्रिय उपभोग पदार्थों को मत छीनना . हे धनस्वामी एवं शक्तिशाली इंद्र ! हमारे गर्भस्थ एवं घुटने । के बल चलने वाले बच्चों को नष्ट मत करो . ( ८ )