Tuesday, 10 March 2020

कबीरः ऊचुः जगन्धः

कबीरः ऊचुः जगन्धः
अन्धा यथा गो
वत्सः यस्य मृतः
मिथ्या चाम चर्वति। रामहेत गौतमः

*कबीरा कहे हे जग अंधा*
*अंधी जैसी गाय*
*बछडा था सो मर गया*
*झुठी चाम चटाय*

अर्थ-
एक अंधी गाय थी । उसका बछड़ा मर गया । मालिक ने
उसके चमड़े में भूसा भरकर बछड़े का पुतला तैयार कर दिया । गाय अंधी थी , वह बछड़े को तो देखी नहीं थी । पहले की तरह उस पुतले को चाटकर दूध देने लगी ।

.....कबीर दास जी कहते हैं,  यह संसार भी उस अंधी गाय की तरह है । वह किसी ईश्वर, अल्लाह, गॉड को तो देखा नहीं है फिर भी धर्म के ठेकेदार , ईश्वर का पुतला दिखाकर  सदियों से उसे दूह ( *शोषण कर* ) रहा है ।

कबीरदास जी का आशय यह समझाना है कि ईश्वर के नाम पर दान-दक्षिणा बंद करो ।  इसी अंधी गाय की तरह पुतले का प्रेम,भय और लालच दिखाकर सदियों से मानव समाज का शोषण होता रहा है ।

सबका मंगल हो।🙏🏻🙏🏻

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