Monday, 2 March 2020

वेदों में आरक्षण

इन्द्र सूक्त 1.53.4
एभिर्युभिः सुमना एभिरिन्दुभिर्निरुन्धानो अमति गोभिरश्विना , इन्द्रेण दस्युं दरयन्त इन्दुभियुतद्वेषसः समिषा रभेमहि . . ( ४ ) हे इंद्र । हमारे द्वारा दिए हुए पुरोडाशादि हव्य एवं सोमरस से प्रसन्न होकर हमें गायों और घोड़ों के साथ - साथ धन भी दो . इस प्रकार हमारी दरिद्रता मिटाकर तुम शोभन मन बन जाओ , इंद्र इस सोमरस के कारण संतुष्ट होकर हमारी सहायता करेंगे तो हम दस्युओं का नाश करके एवं शत्रुओं से छुटकारा पाकर इंद्र के द्वारा दिए हुए अन्न का उपभोग करेंगे . ( ४ ) समिन्द्र राया समिषा रभेमहि सं वाजेभिः पुरुश्चन्द्रैरभिधुभिः . सं देव्या प्रमत्या वीरशुष्मया गोअग्रयाश्वावत्या रभेमहि . . ( ५ ) हे इंद्र ! हम धन और अन्न के साथ - साथ ऐसा बल भी प्राप्त करें , जो बहुतों का आहलादक एवं दीप्तिमान् हो , शत्रुविनाश में समर्थ तुम्हारी उत्तम बद्धि हमारी सहायता करे , तुम्हारी बुद्धि स्तोताओं को गाय आदि प्रमुख पश एवं अश्व प्रदान करे , ( ५ )
त्वमेताजनराज्ञो द्विर्दशाबन्धुना सुश्रवसोपजग्मुषः . षष्टिं सहस्रा नवतिं नव श्रुतो नि चक्रेण रथ्या दुष्पदावृणक् . . ( ९ ) असहाय सुश्रवा नामक राजा के साथ युद्ध करने के लिए साठ हजार निन्यानवे सहायकों के सहित बीस जनपद शासक आए थे . हे प्रसिद्ध इंद्र ! तुमने शत्रुओं द्वारा अलंघ्य चक्र से उन अनेक को पराजित किया था . ( ९ ) त्वमाविथ सुश्रवसं तवोतिभिस्तव त्रामभिरिन्द्र तृर्वयाणम् . त्वमस्मै कुत्समतिथिग्वमायुं महे राजे यूने अरन्धनायः . . ( १० ) हे इंद्र ! तुमने पालकशक्ति द्वारा सुश्रवा एवं सूर्यवान् नामक राजाओं की रक्षा । की थी , तुमने कुत्स , अतिथिग्व एवं आयु नामक राजाओं को महान् एवं तरुण राजा सुश्रवा के अधीन किया था , ( १० )

ऋ. 1.104.7 -
अधा मन्ये श्रत्ते अस्मा अधायि वृषा चोदस्व महते धनाय . मा नो अकृते पुरुहूत योनाविन्द्र क्षुध्यद्भयो वय आसुतिं दा . . . ( ७ ) हे इंद्र ! हम तुम्हें मन से जानते हैं एवं तुम्हारी शक्ति पर श्रद्धा रखते हैं . हे कामवर्षी ! तुम हमें महान् धन के निमित्त प्रेरित करो . हे अनेक यजमानों द्वारा बलाए गए इंद्र ! हमें धनरहित घर में मत रखो तथा अन्य भूखों को अन्न एवं दूध दो . ( ७ ) मा नो वधीरिन्द्र मा परा दा मा नः प्रिया भोजनानि प्र मोषी : . आण्डा मा नो मघवञ्छक निर्भन्मा नः पात्रा भेत्सहजानुषाणि . . ( ८ ) हे इंद्र ! हमें मत मारना , हमारा त्याग मत करना एवं हमारे प्रिय उपभोग पदार्थों को मत छीनना . हे धनस्वामी एवं शक्तिशाली इंद्र ! हमारे गर्भस्थ एवं घुटने । के बल चलने वाले बच्चों को नष्ट मत करो . ( ८ )

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