स्वामी दयानन्द जी ने ‘यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्यः’ यजुर्वेद के 26/2 मंत्र का प्रमाण देकर बताया कि वेद स्वयं ही मानवमात्र को उसके अध्ययन का अधिकार देते हैं।
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