भूरिकर्मणे वृषभाय वृष्णे सत्य शुष्माय सुनवाम सोमम् . य आदृत्या परिपन्थीव शूरोऽयज्वनो विभजन्नेति वेदः . . . ( ६ ) अनेकविध कर्मयुक्त , देवों में श्रेष्ठ , इच्छापूर्ति में समर्थ एवं यथार्थ प्रालि
वाले इंद्र के निमित्त हम सोम निचोड़ते हैं . जिस प्रकार बटमार जानेवाले भले मनुष्यों का धन छीन लेता है , उसी प्रकार शर इंद्र धन का आदर करके यज्ञ न करने वालों का धन छीनकर उसे यजमानों को देने के लिए ले जाते हैं . ( ६ )
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