किसान
ले हल हाथ
सृष्टा खेत में जात
सृष्टि रचने। 1
पत्थर तोड़े
फूंक दिए प्राण
धरागर्भ में। 2
लगा सींचने
बूंद-बूंद पसीना
निज जीवन। 3
झांकता तन
दरकता वदन
चिंतित मन। 4
प्राण खेत में
ध्यान आसमान में
रुकती सांसे। 5
किसान
ले हल हाथ
सृष्टा खेत में जात
सृष्टि रचने। 1
पत्थर तोड़े
फूंक दिए प्राण
धरागर्भ में। 2
लगा सींचने
बूंद-बूंद पसीना
निज जीवन। 3
झांकता तन
दरकता वदन
चिंतित मन। 4
प्राण खेत में
ध्यान आसमान में
रुकती सांसे। 5
निर्वाण के बाद व्यक्तित्व का सर्वथा लोप हो जाता है
राजा मिलिन्द बोला , “ भन्ते (भिक्खु नागसेन) ! क्या बुद्ध सचमुच हुए हैं ? "
" हां महाराज ! हुए हैं । "
" भन्ते ! क्या आप दिखा सकते हैं वे कहां हैं ? "
" महाराज ! भगवान परम परिनिर्वाण को प्राप्त हो गए हैं , जिसके बाद उनके व्यक्तित्व को बनाए रखने के लिए कुछ भी नहीं रह जाता । इसलिए वे अब दिखाए नहीं जा सकते । "
" कृपया उपमा देकर समझायें । "
" महाराज ! क्या जलती हुई आग की लपट जो होकर बुझ गई , दिखाई जा सकती है - यह यहाँ है?"
" नहीं भन्ते ! वह लपट तो बुझ गई । "
" महाराज ! इसी तरह , भगवान परम परिनिर्वाण को प्राप्त हो गए हैं , जिनके बाद उनके व्यक्तित्व को बनाये रखने के लिए कुछ भी नहीं रह जाता । इसलिए वे अब दिखाए नहीं जा सकते ।
" हां , वे अपने धर्म रूपी शरीर से दिखाए जा सकते हैं । उनका बताया धर्म ही उनके विषय में बता रहा है । " भन्ते ! आपने ठीक कहा। "
नाचे मे मोर।
उत्कण्ठित हो
निहारे नभ मीत
अटा पै मोर।
कण्ठ में केका
पैरों में थिरकन
संजोये मोर।
बरस मेघा
कब लों? बरसेगा
नयननीर।
नीलकंठ मैं
नीलवदन तुम
विरह आग।
आजा गा पिय
तर हो ते रस में
नाचे मे मोर।