किसान
ले हल हाथ सृष्टा खेत में जात सृष्टि रचने। 1
पत्थर तोड़े
फूंक दिए प्राण
धरागर्भ में। 2
लगा सींचने
बूंद-बूंद पसीना
निज जीवन। 3
झांकता तन
दरकता वदन
चिंतित मन। 4
प्राण खेत में
ध्यान आसमान में
रुकती सांसे। 5
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