Saturday, 6 November 2021

दीपावली बौद्ध त्योहार नहीं

मैं एस चंद्रा बौद्ध जी की बात का समर्थन करता हूं। जो लोग दीपावली मनाना चाहते हैं, उन्हें दीपावली मनाने देनी चाहिए। आखिर हमें सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए और जिसका जो त्यौहार और पर्व है, उसे मनाने का उसे अधिकार है। लेकिन बौद्ध धर्म में इसको लेकर जोड़ देना और दीपावली मनाने के नाम पर दीपदान उत्सव की पाखंडपूर्ण नौटंकी करना, यह गलत है। जिन बौद्धों को दीपावली मनानी है, तो मनाइए, आपको कौन रोक रहा है। लेकिन दीपावली के नाम पर तथागत गौतम बुद्ध का नाम लेना, सम्राट अशोक का नाम लेना और उससे जोड़ना और उसे दीपदानोत्सव के नाम पर मनाना, यह गलत है। साथ में बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर का नाम लेकर बौद्ध धर्म से जोड़ देना यह गलत है। बौद्ध समाज के लोगों को इससे बचना चाहिए। यदि दीपदान उत्सव होता, तो यह बौद्ध देशों में मनाया जा रहा होता और अगर इसमें सच्चाई होती तो भारत के जो हिमालयी क्षेत्रों जैसे लाहौल स्पीति किन्नौर में और लद्दाख के क्षेत्र में और उत्तरपूर्व भारतीय क्षेत्र में जो बहुत सारे बौद्ध धर्म के लोग रहते हैं, वे इसको सदियों से बुद्ध पूर्णिमा की तरह मनाते चले आते। इसके अलावा जो परंपरागत बौद्ध समाज के लोग हैं, जैसे बरुआ, चकमा आदिवासी समाज के लोग भी दीपावली मनाते, जबकि वे लोग सदियों से बौद्ध हैं। किसी भी बौद्ध देश में दीपावली नहीं मनाई जाती है। अगर दीपदान उत्सव का संबंध सम्राट अशोक और उसके 84000 स्तूपों के उद्घाटन से जुड़ा होता, तो फिर यह पर्व सम्राट अशोक हर वर्ष मनाता। लेकिन यदि उन्होंने जिस दिन इन स्तूपों का उद्घाटन किया होगा, उस दिन दीए जलाए होंगे। सम्राट अशोक के ऊपर लिखित सभी ग्रंथों में प्रतिवर्ष इस तरह के दीपदान उत्सव मनाए जाने का कोई उल्लेख नहीं है। और सबसे बड़ी बात यह है कि श्रीलंका में जो बौद्ध धर्म पहुंचा है, वह सम्राट अशोक के द्वारा ही पहुंचा है, वहां पर कोई भी दीपावली का उत्सव नहीं मनाया जाता है। इसके अलावा किसी भी प्राचीन पालि त्रिपिटक के बौद्ध ग्रंथों और उसकी अटकथाओं आदि में बौद्धों के द्वारा दीपावली मनाने का कोई संदर्भ एवं उल्लेख नहीं मिलता है। आज इस मामले पर मैंने कई लोगों से बातचीत की है, जिसमें नागपुर के विश्व विख्यात अंबेडकरवादी चिंतक प्रोफेसर प्रदीप आगलावे सर, अम्बेडकरवादी महिला चिंतक डॉ सरोज आगलावे मैडम, नागपुर के अंबेडकरवादी बौद्ध कार्यकर्ता श्री पी एस खोबरागड़े सर, नागपुर के अंबेडकरवादी मिशनरी कार्यकर्ता श्री सुधीर मेश्राम जी, दिल्ली राजस्थान कर्नाटक महाराष्ट्र बिहार में बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश प्रभारी रहे डॉ लालजी मेधनकर जी, दिल्ली में साहित्यिक श्री उमराव सिंह सर, दिल्ली विश्वविद्यालय में माता सुंदरी कॉलेज में दर्शनशास्त्र पढ़ा चुके डॉ भरत कुमार भारती जी, गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में बौद्ध अध्ययन विभाग के वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर व पालि विषय के जाने-माने राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त विद्वान डॉ ज्ञानादित्य शाक्य जी, दिल्ली में श्री मुकेश गौतम जी, श्री विजय बौद्ध जी, सुषमा पाखरे ताई आदि शामिल हैं। उन लोगों ने दीपदान उत्सव मनाए जाने का खंडन किया है और इसको गलत परंपरा बताया है। दीपदान उत्सव की यह पाखंड पूर्ण नौटंकी फुले शाहू आंबेडकर मूवमेंट को कमजोर करने का एक षड्यंत्र है। यह बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर के विचारों के खिलाफ है और तथागत गौतम बुद्ध के दर्शन व धर्म को एक तरीके से नष्ट कर देने जैसा है।

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