Tuesday, 15 October 2024

तुम्हें नशा हो गया है

नशा

तुम्हें नशा हो गया है 
नित् निठल्ले बैठने का।

नशा हर लेता है विवेक,
और भर देता है अपराध।

फिर आती है उपेक्षा,
फिर तिरस्कार निरंतर।

तिरस्कार सहायता हर लेता,
कर्ज़ सिर्फ साहूकार ही देता।

उम्र बढ़ती है और बीमारी लाचारी भी,
फिर डूब जाती हैं पीढ़ियां नशे के सैलाब में।

डॉ रामहेत गौतम, सहायक प्राध्यापक संस्कृत विभाग, डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर मप्र।
drrhgautam@gmail.com
8827745548

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