Friday, 25 February 2022

धर्म का आडंबर

धर्म का आडंबर 
जिद में ओढ़ा जाय
या ओढ़ने पर मजबूर किया जाये
इंसानियत का दम घुटना तय है।

भगुआ झंडा
काले बुर्के की ओट
अक्ल की बंधी।

तालीबानी नहीं आये
सोच आ घुसी है भारत में
रंग-रूप बदल कर।

समझ को खाती है
फिर टूट पड़ते हैं एक-दूसरे पर
नासमझ चीटों की तरह
पकड़ लेते हैं एक-दूसरे की गर्दन
और मरते दम तक नहीं छोड़ते।
फिर कोई चिड़िया आकर
उन लाशों को खा जाती है।

लाशों का ढेर
महान सभ्यता थी
कहेगा कोई?

गौतम रामहेत

समाज में घुले जहर पर खुल के नहीं कहेगा।

आई पी एस हुआ सो क्या हुआ,
जातंकवादी के लिए हीन ही रहेगा।
धूर्त-हरामी है वो मंचों पर बड़ी-बड़ी फेकेगा
समाज में घुले जहर पर खुल के नहीं कहेगा।
गौतम रामहेत

बार सी दरार

ये मान की 
बार-सी 
दरार है,
दो सांसों बीच 
एक दीवार है।
आंसू हैं सो 
हर लीजिए,
कुछ प्यार है
सो भर दीजिए।
फिर देखिए
रुसवाई को
फ़ुर्र से उड़ जायेगी।
घुमड़ आयेंगे
बादल भाव के,
रसभरे 
पहली मुलाक़ात के।
घनघोर-सीं
जुल्फें वही,
और झील-सीं 
आंखें वही।
कली को सहलायेगा,
मंडराता भंवरा वही।
भौंरा होगा,
कली होगी,
लैला-मजनू वाली
गली होगी।
थपेड़ों की
कहां? कौन? परवाह करेगा,
रसराज ही रसराज बरसेगा।
RG

Thursday, 24 February 2022

👹👹👹👹👹विनाशकारीसनक की कीमतइंसानियत।💥💥💥💥💥

👹👹👹👹👹
💥💥💥💥💥
विनाशकारी
सनक की कीमत
इंसानियत।

शस्त्र व अस्त्र
शास्त्र पर हैं भारी
ख़ून सवारी।

रणभूमि है
युद्ध के उपदेशक
नंगा नाच है।

बम धमाके 
चहुंओर हैं चीखें
मौत ही मौत।

युद्ध न चाहें
बुद्ध की सी निगाहें
मानव चाहें।
👌👌👌👌👌🤚🤚🤚🤚🤚

Wednesday, 23 February 2022

संत गाडगे बाबा

23 फरवरी, 1876 को महाराष्ट्र के अमरावती के अँजनगाँव सुरजी में जन्में #संतगाडगेबाबा एक महान समाज सुधारक थे। वे भिक्खु की भांति यायावरीय जीवन यापन करते थे। फटी हुई चप्पलें, सिर पर मृत्तिकानिर्मित कटोरा, जीर्ण-शीर्ण वस्त्र उनके शरीर के आभूषण थे। आज कल कुछ लोग जिस स्वच्छ भारत मिशन की प्रशंसा करते-करते नहीं थकते, उसके वास्तविक जनक संत गाडगे बाबा ही थे। वे गाँव-गाँव जाकर स्वच्छता-अभियान चलाते थे और उसके बदले में लोगों द्वारा दिए गए पैसे से वे विद्यालय, धर्मशालायें, चिकित्सालय और पशुओं के निवास-स्थलों का निर्माण करवाते थे। सफाई के बाद, गाँव में शाम को कबीर के दोहों के माध्यम से अंधविश्वास में जकड़े हुए भारतीय समाज को जागृत कर प्रबुद्ध बनाते थे। बाबासाहेब डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर को जो पृष्ठभूमि मिली, उसके निर्माण में ज्योतिबा-सावित्री बाई फुले के साथ-साथ ही संत गाडगे बाबा का भी महत्त्वपूर्ण योगदान है। उनके योगदान को ध्यान में रखकर अमरावती विश्वविद्यालय का नाम उनके नाम पर रखा गया।

हमारा इतिहास बहुत गौरवशाली है। अकिंचन होते हुए भी हमने सदैव सृजन को ध्यान में रखा है, विसर्जन संहारक कौमें करती है। ये संहारक कौमे ही भारत को बार-बार लूट कर भागती हैं, बस नाम बदल जाते हैं। हम कल भी सृजन कर रहे थे, आज भी सृजन कर रहें हैं। उनके पूर्वज कल भी लोगों को अंधविश्वास में फंसाकर लूट रहे थे, वो आज तो खुले आम देश को लूट कर भाग रहें हैं। सागर विश्वविद्यालय से डॉ. रामहेत गौतम जी अपनी काव्यात्मक वाणी में संत गाडगे बाबा के बारे में लिखते हैं -

न सगुण भक्ति न निर्गुण भक्ति
संत गाडगे की तो समाज मुक्ति।
न पूजा करते, न गंग नहाते
घर-घर जाकर शिक्षा फैलाते।
घर-द्वार साफ, वस्त्र-देह साफ
बुद्धि तार्किक मन भी हो साफ।
वाणी सरस, शब्द भी मोहक हों
हाथ अहिंसक कार्यसाधक हों।
आंख-कान सिर्फ रमें वहां पर
मानवता का व्यवहार जहां पर।
मान पशुता से भिन्न करता है
मनुष्य मान के लिए जीता है।
मान ही लेन-देन का विषय है
हिसाब से लो, हिसाब से दो।

आओ अपनी पीढ़ियों को अपने महापुरुषों से परिचित करवाएं, आओ उनको अपना सृजनकारी वास्तविक इतिहास बताएं, आओ संत गाडगे बाबा का जन्मदिन मनाएं।

डॉ. विकास सिंह

Sunday, 20 February 2022

हाथी आया जंगल में

हाथी आया दंगल में
खलबली मची जंगल में।
चीता चीतल से बोला
भेड़िया भेड़ से बोला
नया सरदार चुना जाये
कहो सब से साथ आयें

बकरियां जान लें

शंबूक मरवाया 
लोग बहला दिए गए।
एकलव्य का अंगूठा कटा
लोग बहला दिए गए।
बाबा साहेब हराये ग्रे
लोग बहला दिए गए।
आरक्षण पर वार हुआ
तब भी बहलाए गये।
आरक्षण हटाया जा रहा है
लोग बहलाये जा रहे हैं
जातंकी हमलावर रहता
अब भी हम रक्षात्मक हैं।
निवेदन नहीं स्वीकार उन्हें
हम निवेदन क्यों करते?
बकरियां जान लें कि
भेड़िए निवेदन नहीं सुनते।





Saturday, 19 February 2022

आरक्षण व्यवस्था

सत्ताधीशों जरा इधर भी ध्यान दो
हमारे हक़ दो और हमें काम दो।
हैं सार्वजनिक सरकारें तो 
संस्थायें भी सार्वजनिक हों।

Tuesday, 8 February 2022

रमा बाई को बाबा साहेब आंबेडकर का पत्र

 द बैटर इंडिया
फेसबुक पेज से
30 दिसंबर, 1930 को डॉ. भीमराव आंबेडकर ने लंदन से रमाबाई को एक पत्र लिखा था, उसी पत्र का सम्पादित संपादित अंश।

रमा! कैसी हो रमा तुम?
तुम्हारी और यशवंत की आज मुझे बहुत याद आई। तुम्हारी यादों से मन बहुत ही उदास हो गया है। मेरी बौद्धिक ताकत बहुत ही प्रबल बन गई है। शायद मन में बहुत सारी बातें उमड़ रही हैं। हृदय बहुत ही भाव प्रवण हो गया है। मन बहुत ही विचलित हो गया है और घर की, तुम सबकी बहुत यादआ रही है। तुम्हारी यादआ रही है। यशवंत की याद आ रही है। मुझे तुम जहाज पर छोड़ने आयी थी। मैं मना कर रहा था। फिर भी तुम्हारा मन नही माना। तुम मुझे पहुंचाने आई थी। मैं राउंड टेबल कांफ्रेंस के लिए जा रहा था। हर तरफ मेरी जय-जयकार गूंज रही थी और ये सब तुम देख रही थी। तुम्हारा मन भर आया था, कृतार्थता से तुम उमड़ गयी थी। तुम्हारे मुंह से शब्द नही निकल रहे थे। परंतु, तुम्हारी आंखें, जो शब्दों से बयां नहीं हो पा रहा था, सब बोल रही थीं। तुम्हारा मौन शब्दों से भी कई ज्यादा मुखर बन गया था। तुम्हारे गले से निकली आवाज तुम्हारे होठों तक आकर टकरा रही थी।
और अब यहां लंदन में इस सुबह ये बातें मन में उठ रही हैं। दिल कोमल हो गया है। जी में घबराहट सी हो रही है। कैसी हो रमा तुम? हमारा यशवंत कैसा है? मुझे याद करता है वह? उसकी संधिवात [जोड़ों] की बीमारी कैसी है? उसको संभालो रमा! हमारे चार बच्चे हमें छोड़कर जा चुके हैं। अब है तो सिर्फ यशवंत ही बचा है। वही तुम्हारे मातृत्व का आधार है। उसे हमें संभालना होगा। यशवंत का खयाल रखना रमा। यशवंत को खूब पढ़ाना। उसे रात को पढ़ने उठाती रहना। मेरे बाबा मुझे रात को पढ़ने के लिए उठाया करते थे। तब तक वह जगते रहते थे। मुझे यह अनुशासन उन्होंने ही सिखाया। मैं उठकर पढ़ने बैठ जाऊं, तब वह सोते थे। पहले-पहले मुझे पढ़ाई के लिए रात को उठने पर बहुत ही आलस आता था। तब पढ़ाई से भी ज्यादा नींद अच्छी लगती थी। आगे चलकर तो जिंदगीभर के लिए नींद से अधिक पढ़ाई ही अहम लगने लगी।
रमा, यशवंत को भी ऐसी ही पढ़ाई की लगन लगनी चाहिए। किताबों के लिए उसके मन में उत्कट इच्छा जगानी होगी।
रमा, अमीरी-ऐश्वर्य, ये चीजें किसी काम की नहीं। तुम अपने इर्द-गिर्द देखती ही हो। लोग ऐसी ही चीजों के पीछे हमेशा से लगे हुए रहते हैं। उनकी जिन्दगियां जहां से शुरू होती है, वहीं पर ठहर जाती है। इन लोगों की जिंदगी, जगह बदल नहीं पाती। हमारा काम ऐसी जिंदगी जीने से नही चलेगा रमा। हमारे पास सिवाय दुख के कुछ भी नहीं है। दरिद्रता, गरीबी के सिवाय हमारा कोई साथी नहीं। मुश्किलें और दिक्कतें हमें छोड़ती नहीं हैं। अपमान, छलावा, अवहेलना यही चीजें हमारे साथ छांव जैसी बनी हुई हैं।
सिर्फ अंधेरा ही है। दुख का समंदर ही है। हमारा सूर्योदय हमको ही होना होगा रमा। हमें ही अपना मार्ग बनना है। उस मार्ग पर दीयों की माला भी हमें ही बनानी है। उस रास्ते पर जीत का सफर भी हमें ही तय करना है। हमारी कोई दुनिया नहीं है। अपनी दुनिया हमें ही बनानी होगी।
हम ऐसे ही हैं रमा। इसलिए कहता हूं कि यशवंत को खूब पढ़ाना। उसके कपड़ों के बारे में फिक्रमंद रहना। उसको समझाना-बुझाना। यशवंत के मन में ललक पैदा करना। मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है। यशवंत की याद आती है। मैं समझता नहीं हूं, ऐसा नहीं है रमा, मैं समझता हूं कि तुम इस आग में जल रही हो। पत्ते टूटकर गिर रहे हैं और जान सूखती जाए ऐसी ही तू होने लगी है। पर रमा, मैं क्या करूं? एक तरफ से पीठ पीछे पड़ी दरिद्रता और दूसरी तरफ मेरी जिद और लिया हुआ दृढ संकल्प। संकल्प ज्ञान का!
सच कहूं रमा, मैं निर्दयी नहीं। परंतु, जिद के पंख पसारकर आकाश में उड़ रहा हूं। किसी ने पुकारा तो भी यातनाएं होती हैं। मेरे मन पर खरोंच पड़ती है और मेरा गुस्सा भड़कता है। मेरे पास भी हृदय है रमा! मैं तड़पता हूं। पर, मैं बंध चुका हूं क्रांति से! इसलिए मुझे खुद की भावनाएं चिता पर चढ़ानी पड़ती हैं। उसकी आंच तुम्हारे और यशवंत तक भी कभी-कभी पहुंचती है। यह सच है। पर, इस बार रमा मैं बाएं हाथ से लिख रहा हूं और दाएं हाथ से उमड़ आए आंसू पोंछ रहा हूं।
रमा, तुम मेरी जिंदगी में न आती तो?
तुम मन-साथी के रूप में न मिली होती तो? तो क्या होता? मात्र संसार सुख को ध्येय समझने वाली स्त्री मुझे छोड़ के चली गई होती। आधे पेट रहना, उपला (गोइठा) चुनने जाना या गोबर ढूंढकर उसका उपला थापना या उपला थापने के काम पर जाना किसे पसंद होगा? चूल्हे के लिए ईंधन जुटाकर लाना, मुम्बई में कौन पसंद करेगा? घर के चिथडे़ हुए कपड़ों को सीते रहना। इतना ही नहीं, 'एक माचिस में पूरा माह निकालना है, इतने ही तेल में और अनाज, नमक से महीने भर का काम चलाना चाहिए', मेरा ऐसा कहना। गरीबी के ये आदेश तुम्हें मीठे नहीं लगते तो?
तो मेरा मन टुकड़े-टुकड़े हो गया होता। मेरी जिद में दरारें पड़ गई होतीं। मुझे ज्वार आ जाता और उसी समय तुरन्त भाटा भी आ जाता। मेरे सपनों का खेल पूरी तरह से तहस-नहस हो जाता।
रमा, मेरे जीवन के सब सुर ही बेसुरे बन जाते। सब कुछ तोड़-मरोड़ कर रह जाता। सब दुखमय हो जाता। मैं शायद बौना पौधा ही बना रहता।
संभालना खुद को, जैसे संभालती हो मुझे। जल्द ही आने के लिए निकलूंगा। फिक्र नहीं करना।
सब को कुशल कहना।

तुम्हारा,
भीमराव
लंदन
30 दिसंबर, 1930

साभार : मराठी पुस्तक ‘रमाई’, लेखक – प्रो. यशवंत मनोहर

#BheemRaoAmbedkar #RamabaiAmbedkar #Birthanniversary

Saturday, 5 February 2022

सदा ऐक्य की बात हो यहाँ

असत् सत्ता के शतरंज में, 
सत्य दांव पर लगा हुआ।
जन-जन व परिवेश देश है, 
यह देश दांव पर लगा हुआ।
पल-पल विखरते विश्वास, 
ऐक्यभाव नित दरक रहा।
भाँति भाँति के नवफूल धरे
बाग-सा महकता देश रहा।
सीमाएं नित्-नित् बदलीं हैं 
सीमाओं से कब देश रहा?
ऐक्य न होगा देश न होगा
सदा ऐक्य की बात हो यहाँ।

Wednesday, 2 February 2022

मोर सुन्दर कोयल काला

मोर सुन्दर है
क्योंकि वो सांप खाता है।
कोयल काला है
क्योंकि वो छल में पलता है।