बार-सी
दरार है,
दो सांसों बीच
एक दीवार है।
आंसू हैं सो
हर लीजिए,
कुछ प्यार है
सो भर दीजिए।
फिर देखिए
रुसवाई को
फ़ुर्र से उड़ जायेगी।
घुमड़ आयेंगे
बादल भाव के,
रसभरे
पहली मुलाक़ात के।
घनघोर-सीं
जुल्फें वही,
और झील-सीं
आंखें वही।
कली को सहलायेगा,
मंडराता भंवरा वही।
भौंरा होगा,
कली होगी,
लैला-मजनू वाली
गली होगी।
थपेड़ों की
कहां? कौन? परवाह करेगा,
रसराज ही रसराज बरसेगा।
RG
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