Friday, 25 February 2022

धर्म का आडंबर

धर्म का आडंबर 
जिद में ओढ़ा जाय
या ओढ़ने पर मजबूर किया जाये
इंसानियत का दम घुटना तय है।

भगुआ झंडा
काले बुर्के की ओट
अक्ल की बंधी।

तालीबानी नहीं आये
सोच आ घुसी है भारत में
रंग-रूप बदल कर।

समझ को खाती है
फिर टूट पड़ते हैं एक-दूसरे पर
नासमझ चीटों की तरह
पकड़ लेते हैं एक-दूसरे की गर्दन
और मरते दम तक नहीं छोड़ते।
फिर कोई चिड़िया आकर
उन लाशों को खा जाती है।

लाशों का ढेर
महान सभ्यता थी
कहेगा कोई?

गौतम रामहेत

No comments:

Post a Comment