हमारा इतिहास बहुत गौरवशाली है। अकिंचन होते हुए भी हमने सदैव सृजन को ध्यान में रखा है, विसर्जन संहारक कौमें करती है। ये संहारक कौमे ही भारत को बार-बार लूट कर भागती हैं, बस नाम बदल जाते हैं। हम कल भी सृजन कर रहे थे, आज भी सृजन कर रहें हैं। उनके पूर्वज कल भी लोगों को अंधविश्वास में फंसाकर लूट रहे थे, वो आज तो खुले आम देश को लूट कर भाग रहें हैं। सागर विश्वविद्यालय से डॉ. रामहेत गौतम जी अपनी काव्यात्मक वाणी में संत गाडगे बाबा के बारे में लिखते हैं -
न सगुण भक्ति न निर्गुण भक्ति
संत गाडगे की तो समाज मुक्ति।
न पूजा करते, न गंग नहाते
घर-घर जाकर शिक्षा फैलाते।
घर-द्वार साफ, वस्त्र-देह साफ
बुद्धि तार्किक मन भी हो साफ।
वाणी सरस, शब्द भी मोहक हों
हाथ अहिंसक कार्यसाधक हों।
आंख-कान सिर्फ रमें वहां पर
मानवता का व्यवहार जहां पर।
मान पशुता से भिन्न करता है
मनुष्य मान के लिए जीता है।
मान ही लेन-देन का विषय है
हिसाब से लो, हिसाब से दो।
आओ अपनी पीढ़ियों को अपने महापुरुषों से परिचित करवाएं, आओ उनको अपना सृजनकारी वास्तविक इतिहास बताएं, आओ संत गाडगे बाबा का जन्मदिन मनाएं।
डॉ. विकास सिंह
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