Wednesday, 23 February 2022

संत गाडगे बाबा

23 फरवरी, 1876 को महाराष्ट्र के अमरावती के अँजनगाँव सुरजी में जन्में #संतगाडगेबाबा एक महान समाज सुधारक थे। वे भिक्खु की भांति यायावरीय जीवन यापन करते थे। फटी हुई चप्पलें, सिर पर मृत्तिकानिर्मित कटोरा, जीर्ण-शीर्ण वस्त्र उनके शरीर के आभूषण थे। आज कल कुछ लोग जिस स्वच्छ भारत मिशन की प्रशंसा करते-करते नहीं थकते, उसके वास्तविक जनक संत गाडगे बाबा ही थे। वे गाँव-गाँव जाकर स्वच्छता-अभियान चलाते थे और उसके बदले में लोगों द्वारा दिए गए पैसे से वे विद्यालय, धर्मशालायें, चिकित्सालय और पशुओं के निवास-स्थलों का निर्माण करवाते थे। सफाई के बाद, गाँव में शाम को कबीर के दोहों के माध्यम से अंधविश्वास में जकड़े हुए भारतीय समाज को जागृत कर प्रबुद्ध बनाते थे। बाबासाहेब डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर को जो पृष्ठभूमि मिली, उसके निर्माण में ज्योतिबा-सावित्री बाई फुले के साथ-साथ ही संत गाडगे बाबा का भी महत्त्वपूर्ण योगदान है। उनके योगदान को ध्यान में रखकर अमरावती विश्वविद्यालय का नाम उनके नाम पर रखा गया।

हमारा इतिहास बहुत गौरवशाली है। अकिंचन होते हुए भी हमने सदैव सृजन को ध्यान में रखा है, विसर्जन संहारक कौमें करती है। ये संहारक कौमे ही भारत को बार-बार लूट कर भागती हैं, बस नाम बदल जाते हैं। हम कल भी सृजन कर रहे थे, आज भी सृजन कर रहें हैं। उनके पूर्वज कल भी लोगों को अंधविश्वास में फंसाकर लूट रहे थे, वो आज तो खुले आम देश को लूट कर भाग रहें हैं। सागर विश्वविद्यालय से डॉ. रामहेत गौतम जी अपनी काव्यात्मक वाणी में संत गाडगे बाबा के बारे में लिखते हैं -

न सगुण भक्ति न निर्गुण भक्ति
संत गाडगे की तो समाज मुक्ति।
न पूजा करते, न गंग नहाते
घर-घर जाकर शिक्षा फैलाते।
घर-द्वार साफ, वस्त्र-देह साफ
बुद्धि तार्किक मन भी हो साफ।
वाणी सरस, शब्द भी मोहक हों
हाथ अहिंसक कार्यसाधक हों।
आंख-कान सिर्फ रमें वहां पर
मानवता का व्यवहार जहां पर।
मान पशुता से भिन्न करता है
मनुष्य मान के लिए जीता है।
मान ही लेन-देन का विषय है
हिसाब से लो, हिसाब से दो।

आओ अपनी पीढ़ियों को अपने महापुरुषों से परिचित करवाएं, आओ उनको अपना सृजनकारी वास्तविक इतिहास बताएं, आओ संत गाडगे बाबा का जन्मदिन मनाएं।

डॉ. विकास सिंह

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