Sunday, 27 October 2024

धर्म

तेरा धर्म तूं धर, जा बेइज्जत न कर।
धर्म है कि धंधा है, जा आ मुँ धोकर।।
अगर करना ही है, एका की बात कर। 
हक देने-लेने में रे, प्रतीक न देखा कर।।
हो सके तो कर रे, साथ दे साथ लेकर। 
साथ खा साथ खिला, रहेंगे एक होकर।।


संस्कृतसाहित्ये दलित विमर्शः


कौशल तिवारी की पोस्ट 
आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी जी अहं राष्ट्री पुस्तक पर बोलते हुए
यह सौभाग्य है कि आचार्य श्री जैसे व्यक्तित्व आपकी पुस्तक पर बोले और उस पुस्तक से कुछ कविताओं का पाठ भी करें
सन्ति सन्तः कियन्तः
https://www.facebook.com/share/v/YV2586DuLoVd2so5/
पर
अन्य टिप्पणियों के साथ 
नरेश बत्रा जी की टिप्पणी-
दलिताख्या कवेः कोटिः संस्कृते नैव कल्प्यते।।
कौशल तिवारी-
नरेश बत्रा जी संस्कृत में भी दलित विमर्श काव्य लिखा और पढ़ा जा रहा है

प्रचेतस शास्त्री 
Kaushal Tiwari जी लिखा जा रहा है आपकी कविताएं भी हम लोगों ने पढ़ी है। आप, हीरालाल शुक्ल, हर्षदेव माधव आदि संस्कृत कवि लिख रहे हैं।
रामहेत गौतमः 
नास्ति बन्ध्या संस्कृतभाषा। 
भवितुं सक्यते। यथा हिन्दीदलित-साहित्ये प्रेमचंदः तथैव संस्कृतदलित-साहित्ये हीरालालशुक्लः। दलितोदयः नाम इति महाकाव्यम्। सरलानुक्रमणिकायां 1048तमे क्रमे
https://archive.org/details/dli.language.1920/page/n72/mode/1up
प्रचेतस शास्त्री 
डाॅ. रामहेतगौतमः सागरम् मप्र आप भी संस्कृत गद्य में विमर्श की कहानियों को लिखा कीजिए। संस्कृत जगत जल्दी स्वीकार नहीं करेगा फिर भी लिखिए आप।
रामहेत गौतमः
Prachetas Shastri जी लिखा जा रहा है।

नरेश बत्रा

नरेश बत्रा 
प्राचीन/अधुनातन संस्कृत अलंकार शास्त्र में दलित कवि या दलित काव्य की कोई अवधारणा नहीं है। यह वामपंथियों की विकृत दृष्टि है जो समाज के साथ कवि/काव्य को भी दलित और सवर्ण कोटि में विभाजित कर रही है। विषय वस्तु कुछ भी हो रमणीयार्थप्रतिपादकता अथवा सहृदयहृदयाह्लादकता ही कवि/काव्य का एक मात्र विमर्श है। संस्कृत कवियों /रचनाकारों/समीक्षकों को इस पाश में फंसने से बचना चाहिए।

रामहेतः- 
रमणीयार्थप्रतिपादकतया वा सहृदयहृदयाह्लादकतया साकं 

नानाभावोपसम्पन्नं नानावस्थान्तरात्मकम्।
लोकवृत्तानुकरणं नाट्यमेतन्मया कृतम्।। ना.शा. 1.112
योsयं स्वभावो लोकस्य सुखदुःखसमन्वितः।
सोsङ्गाद्यभिनयोपेतो नाट्यमित्यभिधीयते।। नाट्य.शा. 1.119

भरतवचनमपि न विस्मरणीयम्।

संस्कृतजगति पुरातना नास्ति हाईकू, गजज्जलिका, फिल्मगीतानुवाद-परम्परा तदपि संस्कृतसरितायां गंगायां मिलति फलति च नवा विधा। 
दलितानां विषयेsपि
स्वीकरणीयमिदं वेदान्तवचनं 
,सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुप्सते'
लोके विजुगुप्सा विद्यते यदि तर्हि तस्या निवारणार्थं पीडितस्य पीडामनुभूय वाल्मीकिवदद्यापि करुणामवधारय निर्गतनिखिलकल्मषहृदय!
प्रणमामि।

नरेश बत्रा-

 नानाभाव-नानावस्थासु सर्वमन्तर्भूतमिति संज्ञाविशेषकरणं दोषायते इति मत्पक्षः।

डाॅ. रामहेतगौतमः सागरम् मप्र -

यथा हिरण्यगर्भतैजसोः अभेदः तदपि उपाधिभेदेन भेदः स्वीक्रियते बुधैः तथैव संस्कृतसाहित्येपि जैनसाहित्यं, बौद्धसाहित्यं, वैदिकसाहित्यं, आर्षसाहित्यं इत्यादयः भेदा अपि दृश्यन्ते संस्कृतजगति तदा किं कारणं 'संस्कृतदलितसाहित्यभेदं स्वीकर्तुं न क्षमाः विद्वान्सः।
भवता सह मम वार्तेयं भवतः अवमानाय न, भवान् तु मे मान्यः कविः। इयं तु संस्कृतस्य मानाय एव। संस्कृतविदुषां मनसि नवोन्मेषाय एव।
 पटलोsयं कौशलतिवारीमहोदयस्य न मम न भवतः। अतः तिवारीमहोदयं याचामि क्षमां। तथा प्रणमामि विरमामि च।

Monday, 21 October 2024

नदी

प्यासी नदी है अ पमान की, 
और तुम्हें पड़ी है गान की।
फंसी सांस लाश पुजानहि, 
जा को परी है जान की।।rg22-10-24
अ - यह
पमान- प्रमाण 
जा को - इसको

विनति अविनत करि नदी,
पूजो मत मम काकर ही।
उपकार एकठो करि सकी
मम धार मझधार करि दी।।rg22-10-24

विनत- टेड़ी बहती हुई
अविनत करि- सीधे खड़े किनारे वाली 
पूजो- मत पुजाओ, डालो
मम काकर- मम(शृद्धा वाला) काकर(कंकरीट,कचरा)

Tuesday, 15 October 2024

तुम्हें नशा हो गया है

नशा

तुम्हें नशा हो गया है 
नित् निठल्ले बैठने का।

नशा हर लेता है विवेक,
और भर देता है अपराध।

फिर आती है उपेक्षा,
फिर तिरस्कार निरंतर।

तिरस्कार सहायता हर लेता,
कर्ज़ सिर्फ साहूकार ही देता।

उम्र बढ़ती है और बीमारी लाचारी भी,
फिर डूब जाती हैं पीढ़ियां नशे के सैलाब में।

डॉ रामहेत गौतम, सहायक प्राध्यापक संस्कृत विभाग, डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर मप्र।
drrhgautam@gmail.com
8827745548

किताब है कि कमाल है

किताब भी है
ख़याल भी है
देख रहा हूँ 
कमाल भी है।
हां! मैं बदला 
लोग बदले,
बदल रहे,
होता हो हल्ला
बोल रहा है
किताब है कि
कमाल है ब्रो!

Sunday, 13 October 2024

पूतना

पूतना के स्तन स्त्रीत्व 

कुसंगति

अमरबेल लिपटा पेड़,
दुर्व्यसन पड़ा आदमी।
विनाश के लिए इनके,
गैर की जरूरत कहाँ?rg

Saturday, 12 October 2024

दोषान्दशान्हरतीति

दोषदशहरः बुद्धः,
सः सर्वगुणगोतमः।
सुमंगलकरः बुद्धः।
सः निरायुधधाकरः।।rg

Thursday, 10 October 2024

जनवा

नंदू कोरी। शिक्षा0/बच्चेशिक्षा0/बेटिया जला दी गई 
धीरेन्द्र खंगार 5/0/दारूखोर
बाबू कोरी 0/0/फुटपाथ 
हरपाल चौहान 7/0/लड़कियां परेशान 
मंजू अहिरवार 0/0/काम चल रहा 
मुकेश पंडि बरोदी 10/0/पैसे लेता है
सुरेश पंडित मंडगवा 5/0/रविवार को वैठकी करते/दतिया रहते
भगत नौनेर 0/0/धोखाधड़ी 
बगिया वाला नौनेर 0/0/खेत रहने, अभावग्रस्त 
खुंदावली 10/0/ठगी
वनवास 10/0/झूठा
पलोथर खाती 6/0/5000 देकर भी काम नहीं होता
मुन्ना खदरावनी 0/0/दतिया में झूठ फैलाव 

केशवपुर 
देवधनी पालर भादों चौथ मेला 100 यादव पंडित,  
चच्चा उरद पडते सांप, ऊतरी बांधना, खुद का बेटा टीवी से मर गया।
पप्पू अहिरवार,  अनपढ, 4/दिन, दारूखोर बच्चे 
लांगुरी, 10 फेल, 6 बच्चे, अनपढ बच्चे,  दयनीय स्थिति, 
मुडेरी की महिला, अनपढ, बच्चों,  खेती
सेरसा परासरी, 
अंबाबाय 
हतलव मेला, 

पहलवान सिंह-
भूत-परीत डर 10%
भगवान मर्जी 0
सफल होने में चमत्कार प्रभाव 0
सफलता सूत्र संकल्प, मार्गदर्शन 
व्रत-उपवास 0
बडों का दबाव 50
समझाने की कोशिश हां
समझते नहीं 
पत्नी को समझाना नहीं
करवा चौथ हां 
व्रत सोमवार,  बच्चे नहीं 
आदतें बच्चों में न जाए  10%
घुलमिल बात चीत 10%







Wednesday, 2 October 2024

छात्रोsहं

मे त्रुटयः गुरोस्समक्षं संशोधनार्थं यान्ति गुर्व्यां, न तु ताः  गुरोरवमानार्थम्। यतः दोषान् गुणरूपेण परिणतुमाचार्याणामेव कौशलम्।
(FB)मुखपटलछात्रोsहम्।

शुभभावान्वितश्शुक्ल-विमल-तोष-पोषदः।
वाण्यालोकमुच-कान्तोमाया -कस्यास्त्यवन्दयः?
अवन्द्यः कस्य वाण्यालोकमुचः

Tuesday, 1 October 2024

सिखाया है किसने?

घोड़ी से उतारना, 
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

मेड़ से न निकलने देना, 
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

काम करा के मजदूरी न देना, 
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

सामान उठा लेना, वापिस न करना, 
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

वस्ती में जाकर गाली देना, 
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

बेगार से मना करें तो,
 मार-पीट करना,
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

घरों में आग लगाना,
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

बहू-बेटी उठालेना, 
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

सबाल करें तो वहिष्कार करना, 
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

हक मांगें तो औकात दिखाना,
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

जात पूछकर कमरा देना,
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

जात पूछकर नौकर रखना
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

जात पूछकर प्रवेश देना,
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

जात पूछकर NFS करना,
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

खेल यह अब शुरूं हुआ है?
नहीं। 
जब था राजतंत्र, 
राजा ही भगवान था,
किसी को वरदान था,
किसी को शैतान था,
कोई षड़यंत्री शैतान था,
बहका देता राजा को,
लपेट आस्था ईश्वर की,
बच्चा मर गया है उसका, 
किसी शूद्र के तपने से,
डर राजा को भी था,
धूर्त कलमकारों से,
मरबूरी भवभूति सी,
उछल रहीं गर्दन-पगड़ियां, 
तब से अब तक,
सोचता है अब भी दलित-
रौंद! धूल हूं, रौंदेगा कब तक?

दलित की आवाज दबा दी जाती रही है 
सिर्फ सुनाने का हुनर वालों के द्वारा।
सुनना उन्हें अब भी नहीं आया।
डरते हैं वे कि कहीं दलितों की चीख दुनिया न सुन ले।
इसलिए छुपा देते हैं सबाल।
खैर छुपा दें दुनिया से,
पर सत्य के सवाल हैं,
आत्मा में तो उतर ही जायेंगे,
आत्मा होगी तो कचोटेगी,
झकझोर का असर होगा,
झुंझलाहट हो सकती है सुनकर, 
जैसे झुंझलाहट में वाजश्रवस 
कह गया था-
मृत्यवे त्वा ददामीति।

दलित की आवाज

घोड़ी से उतारना, 
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

मेड़ से न निकलने देना, 
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

काम करा के मजदूरी न देना, 
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

सामान उठा लेना, वापिस न करना, 
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

वस्ती में जाकर गाली देना, 
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

बेगार से मना करें तो,
 मार-पीट करना,
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

घरों में आग लगाना,
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

बहू-बेटी उठालेना, 
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

सबाल करें तो वहिष्कार करना, 
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

हक मांगें तो औकात दिखाना,
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

जात पूछकर कमरा देना,
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

जात पूछकर नौकर रखना
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

जात पूछकर प्रवेश देना,
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

जात पूछकर NFS करना,
सिखाया है किसने?
राजनीति ने!
नहीं।

खेल यह अब शुरूं हुआ है?
नहीं। 
जब था राजतंत्र, 
राजा ही भगवान था,
किसी को वरदान था,
किसी को शैतान था,
कोई षड़यंत्री शैतान था,
बहका देता राजा को,
लपेट आस्था ईश्वर की,
बच्चा मर गया है उसका, 
किसी शूद्र के तपने से,
डर राजा को भी था,
धूर्त कलमकारों से,
मरबूरी भवभूति सी,
उछल रहीं गर्दन-पगड़ियां, 
तब से अब तक,
सोचता है अब भी दलित-
रौंद! धूल हूं, रौंदेगा कब तक?

दलित की आवाज दबा दी जाती रही है 
सिर्फ सुनाने का हुनर वालों के द्वारा।
सुनना उन्हें अब भी नहीं आया।
डरते हैं वे कि कहीं दलितों की चीख दुनिया न सुन ले।
इसलिए छुपा देते हैं सबाल।
खैर छुपा दें दुनिया से,
पर सत्य के सवाल हैं,
आत्मा में तो उतर ही जायेंगे,
आत्मा होगी तो कचोटेगी,
झकझोर का असर होगा,
झुंझलाहट हो सकती है सुनकर, 
जैसे झुंझलाहट में वाजश्रवस 
कह गया था-
मृत्यवे त्वा ददामीति।