Sunday, 31 May 2020

श्रमिक

श्रमिक गया
खाली भवन अब
दरक उठा।

श्रम से खाते
विश्राम कब पाते?
श्रमण होते।

श्रम का मान
सुख-समृद्धि खान
है सच्चा ज्ञान।

रोटी बनाना
आसान काम नहीं
चूल्हा-चौका भी।

सूखी डार पै
बैठौ अकेलौ कागा
संजा सूनी है।

शिक्षा की देवी
सावित्री बाई फुले
नारी गौरव।

चन्द्र

चन्द्र नहीं ये
चन्द्रवधू नेत्र है
लज्जा सज्जित।

Saturday, 30 May 2020

गर्मी

कूप हैं सूखे
धरती फट गई
अब का होबे?

कानों लपट
गला सूखत रहा
पाँव ततूरी।

घाम की घात
झुलस रहे पात
का करें अब।

चड़त सूर्य
नर्मी भगत दूर
ऊप्फ! का गर्मी।

सूर्य पूर्व में
आँखोँ चमक भरी
सब काम पै।

बदरा भारी
मन मोर अटकौ
आसमान में।

Sunday, 10 May 2020

गर्मी

कोरोना काल
तपिस विकराल
जन वेहाल।

वन में देखो
मानो आग  लगी है
कली खिली है।

गुलमोहर
ज्येष्ठ का ताप पी पी
लाल हो गया।

गुलमोहर
अखिल वन ताप
पिये जा रहा।

गुलमोहर
आग का अम्बार ज्यों
खिला हुआ है।

कर में फूल
हिय सघन शूल
सेमल हो क्या?

गर्मी कितनी
मोटी-मोटी हो गयी।
गुलाब की कली छोटी हो गयी।

पांच-सात पत्तों का गुच्छा
औषध-गुणों में भी अच्छा
सुडौल स्थूल सुन्दर फूल,
संघन स्थूल सुतीक्ष्ण शूल,
छोटे बीज संजोये निर्मल
रुई भरा हुआ होता फल
सुगठित सीधी देह सरल
वसन्त में खिले है सेमल।

Haiku

http://www.abhivyakti-hindi.org/rachanaprasang/2005/hindi_haiku.htm

Saturday, 9 May 2020

शुभकामनायें

गजाधर जी!
जीवन रस ले ले
जी भर के जी।

रामहेत गौतम

श्रमिकः

संदेशहरः
वार्ता-विवेक-हीनः
चारणचरः।

पत्रकार को
वार्ता परख नहीं
चारण हैं वो।

***

रेलपथिकः
राष्ट्रः मार्गच्युतः
गृह-गमनम्।

पटरी पंथी
देश है वे-पटरी
घर वापसी।

***

कूपिके बद्धे,
पादयोः पाद्वौ न हा!
धिक् प्रजापते।

बोतलें बंधीं,
पैरों चप्पल नहीं
धिक् सत्ताधीश।

***

रङ्कस्य रै रः
रथ्यायां हा! रोटिकाः
राष्ट्रियो रौति।

रंकधन-प्रेम,
रेल पै हा! रोटियाँ,
राष्ट्र वासी रोय।

***

वहति रंकः
जीवन-गट्ठीं नित्
सहसुतेन।

ढो रहा रंक
जीवन गठरी नित्
सुत ले साथ।

रामहेतगौतमः

रोटिकाः

रङ्कस्य रै रः
रथ्यायां हा! रोटिकाः
राष्ट्रियो रौति।

दरिद्र-धन-प्रेम,
मार्ग पर हाय! रोटियाँ,
राष्ट्र वासी रो रहा।

रामहेत गौतम

योग दर्शन का ईश्वर


ND


ईश्वर के लिए कई तरह के शब्दों का उपयोग किया जाता है जैसे ब्रह्म, परमेश्वर, भगवान आदि, लेकिन ईश्‍वर न तो भगवान है और न ही देवता न ही देवाधिदेव। ईश्‍वर है परम सत्ता, जिसका स्वरूप है निराकार। जो उसे साकार सत्ता मानते हैं वे योगी नहीं, वैदिक नहीं।

योग सूत्र में पतंजलि लिखते हैं - 'क्लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्टः पुरुष विशेष ईश्वरः। अर्थात- क्लेश, कर्म, विपाक और आशय- इन चारों से अपरामष्‍ट- जो संबंधित नहीं है वही पुरुष विशेष ईश्वर है। कहने का आशय यह है कि जो बंधन में है और जो मुक्त हो गया है वह पुरुष ईश्वर नहीं है, बल्कि ईश्वर न कभी बंधन में था, न है और न रहेगा।

ईश्वर, ब्रह्म, परमेश्वर या परमात्मा शब्द का किसी भी भगवान, देवी, देवता, पूजनीय हस्ती या वस्तु के लिए प्रयुक्त होता है तो वह अनुचित है। वेदों में ईश्वर के लिए 'ब्रह्म' शब्द का उपयोग किया जाता है। ब्रह्म का अर्थ होता है विस्तार। 'एकमेव ब्रह्म सत्य जगत मिथ्‍या।', 'अह्‍म ब्रह्मस्मी' और तत्वस्मी- उक्त तीन वाक्यों में वैदिक ईश्वर की धारणा निहित हैं।

वैष्णव लोग विष्णु, शैव लोग शिव, शाक्त लोग दुर्गा को ईश्वर मानते हैं, तो रामभक्त राम और कृष्णभक्त कृष्ण को जबकि ईश्वर उक्त सबसे सर्वोच्च है, ऐसा वेद और योगी कहते हैं।

परमेश्वर वो सर्वोच्च परालौकिक शक्ति है जिसे इस संसार का सृष्टा और शासक माना जाता है, लेकिन योग का ईश्वर न तो सृष्टा और न ही शासक है। फिर भी उसी से ब्राह्मांड हुआ और उसी से ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश सहित अनेकानेक देवी-देवताओं हो गए। इन ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बाद ही दस अवतारी महापुरुष हुए जिन्हें भगवान कहा जाता है और इन्हीं की परम्परा में असंख्य ऋषि, साधु, संत और महात्मा हो गए।

भगवान का मतलब ईश्वर, परमेश्वर या परमात्मा नहीं होता। भगवान शब्द विष्णु और उनके अवतारों, शिव और उनके अवतारों तथा मोक्ष, कैवल्य, बुद्धत्व या समाध‍ि प्राप्त महापुरुषों जैसे राम, कृष्ण, गौतम बुद्ध, महावीर के लिए उपयोग होता है।

ईश्वर प्राणिधान : ईश्वर प्राणिधान को शरणागति योग या भक्तियोग भी कहा जाता है। उस एक को छोड़ जो तरह-तरह के देवी-देवताओं में चित्त रमाता है उसका मन भ्रम और भटकाव में रम जाता है, लेकिन जो उस परम के प्रति अपने प्राणों की आहुति लगाने के लिए भी तैयार है, उसे ही 'ईश्वर प्राणिधान' कहते हैं। ईश्वर उन्हीं के लिए मोक्ष के मार्ग खोलता है, जो उसके प्रति शरणागत हैं।

मन, वचन और कर्म से ईश्वर की आराधना करना और उनकी प्रशंसा करने से चित्त में एकाग्रता आती है। इस एकाग्रता से ही शक्ति केंद्रित होकर हमारे दु:ख और रोग कट जाते हैं। 'ईश्वर पर कायम' रहने से शक्ति का बिखराव बंद होता है।

अंतत: : यह कि योगी या योग का ईश्वर एक परम शक्ति है जो न कर्ता, धर्ता या संहारक नहीं है। योगी सिर्फ उस निराकार ब्रह्म पर ही कामय रह कर ब्रह्मलीन हो जाता है।


Friday, 8 May 2020

मजदूर

किसी मजदूर ने खबर की
कि पटरी पर मजदूर मरे हैं
साहब भी तब मजबूर हुए
लाशें लाने मजदूर भेजे गए
मजदूर ही
साहब को क्या फर्क पड़ा
ईश्वर थे हैं और रहेंगे सदा।