कूप हैं सूखे धरती फट गई अब का होबे?
कानों लपट गला सूखत रहा पाँव ततूरी।
घाम की घात झुलस रहे पात का करें अब।
चड़त सूर्य नर्मी भगत दूर ऊप्फ! का गर्मी।
सूर्य पूर्व में आँखोँ चमक भरी सब काम पै।
बदरा भारी मन मोर अटकौ आसमान में।
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