Monday, 22 February 2021

संत गाडगे

संत गाडगे

न सगुण भक्ति न निर्गुण भक्ति
संत गाडगे की तो समाज मुक्ति।
न पूजा करते, न गंग नहाते
घर-घर जाकर शिक्षा फैलाते।
घर-द्वार साफ, वस्त्र-देह साफ
बुद्धि तार्किक मन भी हो साफ।
वाणी सरस, शब्द भी मोहक हों
हाथ अहिंसक कार्यसाधक हों।
आंख-कान सिर्फ रमें वहां पर
मानवता का व्यवहार जहां पर।
मान पशुता से भिन्न करता है
मनुष्य मान के लिए जीता है।
मान ही लेन-देन का विषय है
हिसाब से लो, हिसाब से दो।
सम्मान ही जीवन की पूंजी है
शिक्षा ही सम्मान की कुंजी है।
रोटी-लत्ता-घर में कटौती करो
पर शिक्षा में कटौती मत करो।

@गौतमरामहेत

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