Sunday, 28 February 2021

संस्कृत में गालियां

संस्कृत में गालियां   नरेश वत्रा जी 
 आक्रोश को अभिव्यक्त करने के लिए अश्लील शब्दों का प्रयोग गाली कहलाता है। मनुष्य ने विश्व की सभी भाषाओं में अपशब्दों का आविष्कार किया हुआ है।
अज्ञान/अविद्या जनित अहंकार के वशीभूत हो कर मनुष्य गालियां देता है।
पाणिनि व्याकरण के अनुसार नादिन्याक्रोशे पुत्रस्य (अष्टाध्यायी 8.4.48.) गाली देने के मूल में आक्रोश होता है। आक्रोश को प्रहास तथा व्याज स्तुति द्वारा साम्मुखीन व्यक्ति/वस्तु का अनादर करके भी प्रकट किया जाता है।
 प्रहासे च मन्यकर्मण्यनादरे विभाषाऽप्राणिषु (अष्टा.2.3.17.) 
हताशा व नैराश्य भी कभी-कभी अपशब्द द्वारा अभिव्यक्त किए जाते हैं। दिल की भड़ास गालियों द्वारा अभिव्यक्त की जाती है। स्वयं को असहाय स्थिति में होने पर, बुद्धि द्वारा साथ छोड़ देने पर, अपने अकेलेपन को सहन न कर पाने पर विवश मनुष्य के मुख से गालियां निकलने लग जाती हैं। अगर मानव शरीर को हम रसोई में प्रयुक्त होने वाला बर्तन प्रेशर कुकर मान लें तो सेफ्टी वाल्व द्वारा निकलने वाली अतिरिक्त वाष्प को अपशब्द कहना होगा। कभी-कभी आसमान से तारा टूटता सा दिखाई देता है, इसे अन्तरिक्ष द्वारा कहा गया अपशब्द मानना चाहिए। 
पुरुष के स्वभाव में महिलाओं पर शासन करने की प्रवृत्ति होती है। सम्मुख व्यक्तियों द्वारा शासन न मानने की आशंका से ग्रस्त होकर वह स्वतः आवेश में आकर गुस्सा करता है। अतः पुरुष ही अधिकतर गालियां बकते हैं। अत एव विश्व की सभी भाषाओं में अधिकांश अपशब्द महिलाओं से सम्बन्धित हैं। पुरुष समाज द्वारा महिलाओं के प्रति अन्याय किए जाने के कारण ही अपशब्दों का केन्द्र महिलाओं को बनाया गया है। जन्म देने वाली कोख को गालियों का उद्गम बनाना क्रूरता व अज्ञान की पराकाष्ठा है। मूल में अज्ञान कारण होने से गालियों के साथ बकना शब्द का प्रयोग होना उचित ही है। 
 महिलाओं में भी कुछ शासन करने की प्रवृत्ति वाली होती हैं। अतः महिलाओं की ओर से भी आक्रोश को अभिव्यक्त करने के लिए गालियां दी जाती हैं। हताशा के क्षणों में शिखर पर विराजे लोग भी अपशब्द का प्रयोग करते हैं। घनिष्ठ मित्रों के बीच परस्पर अभिवादन भी गालियों के द्वारा किया जाता है। रिश्तेदारों में परस्पर प्यार जताने व बच्चों को लाड़ दुलार करने में भी अपशब्दों का प्रयोग होता हुआ दिखाई देता है।
विशेषतः महिलाओं की ओर से पुरुषों को नपुंसक कहलाना सबसे बड़ी गाली लगती है। महिलाओं में परस्पर सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाली गाली पंजाबी में 'खस्मा नूं खानी' है अर्थात् पति को खा जाने वाली जो संस्कृत में पुत्रादिनी त्वमसि अर्थात् पुत्र को खा जाने वाली गाली से विकसित हुई है। 
अपशब्दों की संख्या सीमित है और इसी कारण उन्हीं को बार-बार दोहराया जाता है। सदियों से किसी मौलिक अपशब्द का आविष्कार नहीं किया गया है। परन्तु अब शब्दों को नए मुखौटे दिए जाते हैं।     
 गाली देने का उद्देश्य अभिप्रेत व्यक्ति को अपमानित, तिरस्कृत, लज्जित व मानसिक आघात/ चोट पहुंचाना है। गाली देना हिंसा का एक प्रकार है। यह वाक् हिंसा है, वाणी द्वारा हिंसा है , यह शाब्दी हिंसा है। इसमें हाथ के स्थान पर जिह्वा से व अस्त्र-शस्त्र के स्थान पर शब्दों से प्रहार किया जाता है। शस्त्र के प्रहार की अपेक्षा शब्द के प्रहार मनुष्य के मन पर ज्यादा भारी चोट मारते हैं। अस्त्र-शस्त्र शरीर को घायल करते हैं, अपशब्द मन को ज्यादा घायल कर सकते हैं। प्ररोहति क्षतं शस्त्रैर्वाक्क्षतं न प्ररोहति(पञ्चतन्त्र)
मनुष्य मनुष्य का अपमान करने के लिए पशु पक्षियों को भी घसीट लाता है। लोमड़, लोमड़ी, सूअर, सूअर का बच्चा, कुत्ता, कुत्ते का पिल्ला, उल्लू, उल्लू का पट्ठा, कौआ, मुर्गा, कबूतर आदि। लालची व्यक्ति को कुत्ता कहा जाता है। प्रायः मूर्ख व्यक्ति को गधा कहा जाता है। कभी-कभी निकम्मे व्यक्ति को अपमानित करने के लिए कहा जाता है-धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का जो वस्तुतः उस जानवर का ही अपमान होता है। 
  दैनन्दिन जीवन में अपशब्दों का मौखिक प्रयोग किया जाता है अतः भाषाओं के साहित्य में अपशब्दों का प्रयोग संख्या में बहुत कम पाया जाता है। 
संस्कृत भाषा अपनी सूक्तियों की संपत्ति से विश्व की सभी भाषाओं में आढ्यतम है। तथापि मानव जीवन से सम्बन्धित वह सब कुछ संस्कृत भाषा में उपलब्ध है चाहे वह दुरुक्तियां, दुर्वचन , गर्हाशब्द, कुत्सा शब्द, अपशब्द, अश्लीलशब्द अर्थात् गालियां ही क्यों न हों। 
गालिः गाली शब्द भी संस्कृत भाषा का है।
ददतु ददतु गालीर्गालिमन्तो भवन्तः
वयमपि तदभावाद् गालिदानेऽसमर्थाः।।भर्तृहरि वै.श.133.
संस्कृत के अलंकार शास्त्रियों ने साहित्य में या काव्य में गालियों के प्रयोग को वर्जित माना है अतः इन्हें दोषों की कोटि में रखा गया है।
संस्कृत के काव्यशास्त्राचार्यों ने गालियों को अश्लीलत्वदोष कहा है। ये अपशब्द व्रीडा, जुगुप्सा व अमंगल वाचक तीन प्रकार के होते हैं। व्याकरण शास्त्र में इन्हें आक्रोश अभिव्यंजक, गर्हावाचक तथा कुत्सावाचक या कुत्सितशब्द कहा है। 
भावगर्हायाम् , कुत्सितानि कुत्सितैः (अष्टाध्यायी )
संस्कृत भाषा में गालियां भी परिष्कृत पाई जाती हैं। इनका अनेक प्रकार का वर्गीकरण किया जा सकता है।
 वेदों, रामायण, महाभारत, मनुस्मृति, नीति ग्रन्थों आदि संस्कृत वाङ्मय में उपदेशात्मक गालियां पाई जाती हैं। जैसे-
आत्महनः-ये के चात्महनो जनाः।(यजुर्वेद 40.3)
अर्थात् जो अविद्या की उपासना करते हैं वे आत्म हन्ता होते हैं।
यश्च गां पदा स्फुरति प्रत्यङ्गः सूर्यं च मेहते।
तस्य वृश्चामि ते मूलं नच्छायां करवोऽपरम्।। अथर्व 13. 1.56. 
अर्थात् जो गाय को पैर से छूता है और सूर्य की ओर मुख करके मूत्र विसर्जन करता है, वह दण्डनीय है।
सबसे प्रसिद्ध गाली अथर्ववेद के इस मन्त्र में कही गई हैं-
उलूकयातुं शुशुलूकयातुं जहि श्वयातमुत कोकयातुम्। सुपर्णयातुमुत गृध्रयातुं दृषदेव प्र मृण रक्षा इन्द्र।। अथर्व 8.4.22.
इस मन्त्र में छह पशु-पक्षियों की चालों को गिना कर मनुष्य को अनेक शास्त्रों में परिगणित कामक्रोधादि छह शत्रुओं से बचने की प्रेरणा दी गई है कि तू इन चालों को छोड़ दे। उल्लू, भेड़िए कुत्ते, चिड़े, सुपर्ण और गीध की चालें अच्छी चालें नहीं हैं। ये चालें मनुष्य जीवन के पतन का कारण है इसलिए इनका छोड़ना ही मनुष्य के लिए श्रेयस्कर है।
  रामायण में भी सांस्कृतिक गालियां मिलती हैं। 
माता कौशल्या के सामने छोटे भाई भरत द्वारा बड़े भाई राम को वनवास भेजने के पीछे स्वयं को निर्दोष सिद्ध करने के लिए पचास-साठ शपथें उठाई गई हैं, इन्हें सांस्कृतिक गालियां कहा जा सकता है। यथा-
मद्ये प्रसक्तो भवतु स्त्रीष्वक्षेषु नित्यशः।
कामक्रोधाभिभूतस्तु यस्यार्योऽनुमते गतः।।
अर्थात् जो राम को वन भेजने में सहायक हो वह मद्यपान, स्त्रियों व जुआ खेलने में व्यसनी हो जाए। वह काम और क्रोध से अभिभूत हो जाए।
प्रेष्यं पापीयसां यातु सूर्यं च प्रतिमेहतु।
हन्तु पादेन सुप्तां गां यस्यार्योऽनुमते गतः।।
अर्थात् जो राम को वन भेजने में सहायक हो वह पापियों का नौकर बने, सूर्य के सामने मुख करके मूत्र विसर्जन करे, सोई हुई गाय को पैर से ठोकर मारे।
षड् रिपुओं से जो स्वयं को न बचा पाए उसे संस्कृत साहित्य में कामी, क्रोधी, लोभी, मोही, प्रमादी, अहंकारी, कहकर गाली दी गई है। महाभारत, मनुस्मृति, नीतिग्रन्थों में दान न देने वाले व आलसी व्यक्तियों को इसी प्रकार की सांस्कृतिक गालियां दी गई हैं। एक उदाहरण देना पर्याप्त रहेगा-
द्वावम्भसि प्रवेष्टव्यौ गले बद्ध्वा दृढां शिलाम्।
धनवन्तमदातारं दरिद्रं चातपस्विनम्।।
अर्थात् दो प्रकार के व्यक्तियों को गले में पत्थर बांधकर पानी में डुबा दिया जाना चाहिए जो धनवान होने पर भी दान नहीं देता तथा जो दरिद्र होने पर भी परिश्रम नहीं करता।
संस्कृत के कुछ नाटकों में अवश्य अन्य भाषाओं के समान स्त्रियों के जनन अंगों, यौन सम्बन्धों से जुड़ी गालियां मिलती हैं, वे भी अधिकतर शूद्रक के मृच्छकटिकम् में। यथा-
काणेलीमातः- रखैल का पुत्र (मृच्छकटिक 8.4) यह गाली तो मृच्छकटिकम् में पदे पदे प्राप्त होती है। 
मृच्छकटिकम् की अन्य गालियां यहां संगृहीत की जा रही हैं-
पुरुषों से सम्बन्धित-
जूर्णवृद्ध (मृच्छकटिक 1.आमुख), अनार्य, हताश,दुर्मुख, काकपदशीर्षमस्त-कौवे के पंजे के समान सिर वाले,
वेश्यापुत्र, पुंश्चलीपुत्रक,दुर्वर्ण, खण्डितवृत्त, दुर्विनीत(मृच्छकटिक द्वितीय अंक)
वृद्धश्रृगाल, दास्याः पुत्र, गर्भदास।
स्त्रियों से सम्बन्धित-
 दास्याः पुत्री- मृच्छकटिक (4.30)
गर्भदासी-जन्म से ही दासी।
बन्धुला, बन्धुली, बन्धुरा, बन्धुक, बन्धुकी- हरामी सन्तान।
परगृहललिताः परान्नपुष्टाः 
परपुरुषैर्जनिताः पराङ्गनासु।
परधननिरताः गुणेष्ववाच्या 
गजकलभा इव बन्धुला ललामः।।मृच्छक.4.28. 
वेश्या, विधवा,रण्डा, पुंश्चली, जघनचपला, दोषकरण्डिका, कपर्दडाकिनी।
अन्य नाटकों में-
अपसद,‌ दुरापसद, दुरासद, जारजात, जाल्म, दास्याः पुत्र, गुरुतल्पगामी, लालाटिक, स्त्रीप्रमाण, काक, षण्ढ।
 विशाल संस्कृत वाङ्मय में अनेक अपशब्द मिलते हैं। यहां उनका संग्रह अकारादिक्रम में प्रस्तुत किया जा रहा है-
अग्रेदिधिषु-पहली पत्नी के रहते दूसरी पत्नी से विवाह करने वाला। या
बड़ी बहन के कुंवारी रहते छोटी बहन से विवाह करने वाला।
अक्षधूर्त्त-जुआ खेलने में जो बेईमानी करता है।
अग्निकीट-ऐसा कीड़ा जो दीपक को बुझा देता है इस कीट के समान काम बिगाड़ने वाला।
अगम्यागामी-संभोग के अयोग्य नारी से संग करने वाला।
अजातव्यञ्जन-वह पुरुष जिसके दाढ़ी मूंछ न हों।
अपांक्तेय-वह ब्राह्मण जो दूसरे ब्राह्मणों के बीच बैठकर भोजन का अधिकारी न हो।
अधिविन्न- एक पत्नी के रहते जो पति दूसरा विवाह कर ले।
अनेडमूक- जो मनुष्य न सुन सके व न बोल सके, गूंगा बहरा।
अन्धकूप- अन्धे कुएं (जल रहित) के समान जो किसी काम का न हो।
कानीन- वह संतान जो कि माता के कुमारी रहते जन्मी हो
कुण्डः-पति के जीते जी दूसरे पुरुष से उत्पन्न हुआ पुरुष संतान।
कुञ्जकूर्च-ऐसा पुरुष जिसकी दाढ़ी केवल ठुड्डी पर हो।
कौलटेर, कौलटनेय-कुलटा की संतान
ज्येष्ठिनेय-पिता की पहली पत्नी से उत्पन्न हुआ पुत्र।
परिवृत्त-छोटे भाई का विवाह हो जाने पर कुंवारा रह गया बड़ा भाई।
ब्रह्मबन्धु-वह ब्राह्मण जो जन्म से ब्राह्मण कुल में हुआ हो पर आचरण नीचे रखता हो।
भ्रूकुंसक-स्त्री का वेश धारण करके नाचने वाला पुरुष।
मातरि गन्ता, दुहितरि गन्ता-हिन्दी/पंजाबी में मां चोद, धीचोद।
सतृणाभ्यवहारी-ऐसा लेखक या कवि जो दूसरे की रचना की ज्यों की त्यों नकल कर ले।

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