Thursday, 12 August 2021

तूं न मानेगी

जब-जब शाम आती है,
तब-तब तूं याद आती है।
जब-जब शाम आती है,
आंचल की याद आती है।
जब-जब शाम आती है,
दी के खिलौने याद आते हैं।
जब-जब शाम आती है,
समझाती शिक्षिका आती है।
जब-जब शाम आती है,
दादी की कहानी आती है।
जब-जब शाम आती है,
सखी समझाती आती है।
जब-जब शाम आती है,
संगिनी साथ निभाती है।
ये चांदनी कभी न मानेगी,
ये शाम आने से न मानेगी।
तुझसे ही तो जीवन है मेरा,
तूं स्त्री है त्राण से न मानेगी।

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