Monday, 30 August 2021

ये बुद्ध की धूप है

ये बन्द की जा सकती नहीं मुट्ठियों में,
न ही तिजोरियों में। 
ये बुद्ध की धूप है,
फैली है आंगन में, 
फुलवारियों में।
झोपड़ी में,
महलों में।
सेक पाता है वही इसे 
जो उतार फेंकता है आवरण
कुलीनता का।

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