Sunday, 1 August 2021

अंधविश्वास

एक गांव में एक जगह देवी दरबार लगता है उस दरवार में मेरे परिजन जाया करते में उन्हें उस चक्कर में न पड़ने को कहता पर वे बुजुर्ग होने का भावनात्मक दबाव बनाने में सफल हो जाते। एक वार मैं वहां रिस्तेदारी में रुका, देखा सारे लोग वहां बैठक में जा चुके थे, मेरे पिता भी वहां चले गए मैं उन्हें लेने वहां गया तो वहां पूर्ण भक्ति में डूबे लोगों के मनोविज्ञान को समझने की कोशिश कर रहा था। देखा लोगों में एक विशेष नशा था सम्मोहन था बिना प्रयास के काम बनाने का, बिना औषधि के रोग मुक्त हो जाने का, बिना समय सुविधा दिये बच्चों के पढ़ जाने, नौकरी लग जाने का। मेरे पिता भी उनमें से एक थे। मेरी माली हालत में मैं पिता को नाराज करके अपनी पढ़ाई की निरंतरता को ख़तरे में नहीं डालना चाहता था।

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