वरन चमक तो आग में भी होती है।।
Saturday, 26 March 2022
उसने छुआ
💐स्पर्श💐 राज...!!!
उसने मुझे यूं तो न छूकर भी
छुआ है कुछ इस तरह कि
नेक इरादे रूह को छू गये।
उसकी निगाहों की नेकी ने छुआ।
उसकी नेक ख्याली ने छुआ।
गंभीर सांसों ने छुआ।
शोख अदाओं ने छुआ।
उसने मेरी आँखों के पानी को स्पर्श किया है
मेरा दर्द अपनाने से
उसने मेरे लबों को स्पर्श किया है
अपनी प्यारी मुस्कान से
उसने मेरी रगों को स्पर्श किया है
लहु बनकर दौड़ने से
उसने मेरे अंतर्मन को स्पर्श किया है
अपने सहृदय व्यवहार से
राज..!! Rooh-E-Zindagi
Tuesday, 22 March 2022
प्रेम एतावतद्भीत:
प्रेम इतना डरा हुआ है कि
अपनी जाति के भीतर छिपकर रहता है
वह भी जानता है
बाहर निकलते ही
किसी भी बहाने से मारा जाएगा!
▪️जसिंता केरकेट्टा
प्रेम एतावतद्भीत: यत् जातिकोष्ठं न तजति यथा विषधर:।
सोsपि जानाति यत् निर्गते मृयते केनापि व्याजेन।
गौतम-रामहेत:
Sunday, 20 March 2022
तेरे वश की बात नहीं
मेरे स्पर्श से भगवान को बचाता है रे!
अरे रे रे कितना कमजोर है तेरा भगवान्।
मेरे स्पर्श से तेरा ये बचना बचाना,
कितनी खोखली है रे! तेरी ये पवित्रता।
ये हवा मुझे छू कर वह रही है,
इसे नथुनों में भरने से पहले धो लिया कर रे!
यह सूरज मुझे भी उन्हीं करों से छुआ है जिन करों से तुम्हें छू रहा है।
इन किरणों को तपा कर लिया कर रे!
ये तारे यह चांद मैंने निहार लिये हैं
अब तूं दूसरे पैदा कर।
अरे रे रे मैं तो भूल ही गया था कि यह तेरे वश की बात नहीं है ढोंग के सिवाय।
तू दुर्बुद्धि जो है, तेरे वश का नहीं मुझमें इंसान ख़ोज लेना।
डॉ रामहेत गौतम सहायक प्राध्यापक संस्कृत विभाग डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर मप्र।
महाड़ सत्याग्रह
महार तालाब
अंजलि भर पानी
दलित पिया
पवित्रता अपचार।
विमूढ़ मति
अनगिनत लाठियां
मारो-मारो
चहु ओर उचार।
असंख्य ढपोरशंख
गोबर -गौमूत्र,
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा
और अशुद्धि उपचार।
रोया था तब
भारत भाग्य विधाता
अब भी कहां थमा
भारत पर अत्याचार।
मूंछ रखें तो
हत्या हो जाती,
घोड़ी चढ़े तो
जातंकी रहे उतार।
विश्वगुरु का दंभ
पौंगा, ठस, ठगी,
दिन-दिन होता
हा! भारत लाचार।
Friday, 18 March 2022
गुजर्रा सत्ती
गुजर्रा गांव के ग्या प्रसाद गौतम जी के आंगन में एक टूटा चबूतरा मैं बचपन से देखता आया हूं। मैंने अपने दादा भगौनी सिंह जी से बचपन में सुना था कि यहां घिसलनी गांव के लोगों के साथ हुए युद्ध में पति के मारे जाने पर महिला सती हो गई थी। बाद में बड़ा होने पर अपनी दादी ढूमा जी से भी भूत-भुतनिया के किस्से सुने और सावधान किये गये कि सत्ती पर खेलने न जायें। बात आई गई हो गई।
बाद में सांस्कृतिक समझ बढ़ी तो गुत्थियां सुलझ रहीं हैं।
मेरे पिता जी श्री मुलायम सिंह गौतम जी बताते हैं कि वह लड़ाई होरी के डांड़े को लेकर हुई थी। पहले उसी गांव की होरी शुभ मानी जाती थी जिस गांव की होरी में जीत का डांड़ा हो।
अधिक जानकारी हेतु
संपर्क करें।
डॉ रामहेत गौतम सहायक प्राध्यापक संस्कृत विभाग डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर मप्र।
8827745548
होरी
मुलायम सिंह गौतम गुजर्रा जी का साक्षात्कार।
होरी
होरी न तो जलाने का पर्व है
और न ही जल-भुनने का।
होरी होरा करने का जश्न है,
चना-मटर, गेहूं की बालियों का।
होरी किसी की चिता नहीं है,
यह तो आग का खज़ाना है।
यह ख़जाना खेतों बीच बनाया जाता है मरघट पर नहीं।
इसकी तैयारी तीस दिन पहले से होती है,
डांढ़ा (स्तम्भ) गाड़ा जाता है, बरबूले बनाए जाते हैं।
होरी की लकड़ी एरण्ड आदि की,
बरबूले गोबर के गोल-गोल चक्रनुमा।
होरी हर घर में जलती है।
सेकी जाती हैं गकरियां।
रोटी नहीं बनती।
गुण से खाई जाती हैं।
रंग गुलाल लगाया जाता है।
दूसरे दिन पशुशाला के दरवाजे पर दोज बनाई जाती हैं।
जिसमें दरवाजे के दोनों ओर स्तूप की आकृति, एक पिसनारी, गाय, बैल,भैंस बछड़े बनाए जाते हैं।
खोड़ के दरवाजे पर बरेदी बैठाया जाता है।
रई, मथानी हसिआ, खुरपी की पूजा होती है।
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संपर्क करें।
डॉ रामहेत गौतम सहायक प्राध्यापक संस्कृत विभाग डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर मप्र।
8827745548
Thursday, 10 March 2022
bhimaynam vasant anant gadgil Facebook
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Wednesday, 9 March 2022
पोंद लाल हो रहे हैं
हमारा ही दिमाग ख़राब था
कि अपने हाथों पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली।
अब पोंद(उर्ध्व जंघायें) लाल हो रहे हैं।
RGगुजर्रा 10.03.2022
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