अरे रे रे कितना कमजोर है तेरा भगवान्।
मेरे स्पर्श से तेरा ये बचना बचाना,
कितनी खोखली है रे! तेरी ये पवित्रता।
ये हवा मुझे छू कर वह रही है,
इसे नथुनों में भरने से पहले धो लिया कर रे!
यह सूरज मुझे भी उन्हीं करों से छुआ है जिन करों से तुम्हें छू रहा है।
इन किरणों को तपा कर लिया कर रे!
ये तारे यह चांद मैंने निहार लिये हैं
अब तूं दूसरे पैदा कर।
अरे रे रे मैं तो भूल ही गया था कि यह तेरे वश की बात नहीं है ढोंग के सिवाय।
तू दुर्बुद्धि जो है, तेरे वश का नहीं मुझमें इंसान ख़ोज लेना।
डॉ रामहेत गौतम सहायक प्राध्यापक संस्कृत विभाग डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर मप्र।
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