अंजलि भर पानी
दलित पिया
पवित्रता अपचार।
विमूढ़ मति
अनगिनत लाठियां
मारो-मारो
चहु ओर उचार।
असंख्य ढपोरशंख
गोबर -गौमूत्र,
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा
और अशुद्धि उपचार।
रोया था तब
भारत भाग्य विधाता
अब भी कहां थमा
भारत पर अत्याचार।
मूंछ रखें तो
हत्या हो जाती,
घोड़ी चढ़े तो
जातंकी रहे उतार।
विश्वगुरु का दंभ
पौंगा, ठस, ठगी,
दिन-दिन होता
हा! भारत लाचार।
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