Tuesday, 22 March 2022

प्रेम एतावतद्भीत:

प्रेम इतना डरा हुआ है कि
अपनी जाति के भीतर छिपकर रहता है

वह भी जानता है 
बाहर निकलते ही 
किसी भी बहाने से मारा जाएगा!

▪️जसिंता केरकेट्टा

प्रेम एतावतद्भीत: यत् जातिकोष्ठं न तजति यथा विषधर:।

सोsपि जानाति यत् निर्गते मृयते केनापि व्याजेन।
गौतम-रामहेत:

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