आंध्रज पटका।
अक्ल नहीं आई
कहत लुगाई।।rg
पत्थर का शेर
पत्थर की गैया।
का खाय शेर
का देती गैया।।
पत्थर का देव
पत्थर की मैया।
का है देते देव
का है देती मैया।।
काहे डरें देव
काहे डरें भैया
पढ़ो लिखो देवि
पढ़ो लिखो भैया।।
समुद्र शान्त हो तो इसका मतलब यह नहीं है,
कि कोई भी आये और नहा धोकर चला जाए।
भारत बलि उत्तुंग शीश,
ज्ञान-मान-दान छितीश।
हिमालय बलि का शीश,
रोंदा वामन ले बकशीश।।
भेड़िया नर
वसत विविद् घर
ओढ़ चरित्र
ले कुतर-कुतर।
तुम वेद गाते हो,
और वेदों में गाते हो,
बहुत अच्छा गाते हो,
पर दाना नहीं उगाते हो।
हम वेद नहीं गाते हैं
हम वेदों में नहीं गाते हैं
हम तो वेदना बोते हैं,
और दाना उगाते हैं।
तुम्हारा वेद और हमारा दाना
आओ तुम गाओ और हम पकाते हैं।
आओ परिवार हो जाते हैं।
एक जमीन, एक मान,
एक चूल्हा, एक मचान,
एक दुःख, एक सुख,
आओ एकात्म हो जाते हैं।
अनेक भाषा, अनेक राग,
अनेक रूप, अनेक स्वाद,
अनेक पूजा, अनेक वाद,
आओ एक जगह सजाते हैं,
तुम्हारे पास किताब है,
मेरे पास कपास है,
तुम्हारे पास कल्पना है,
मेरे पास यथार्थ है,
आओ कुछ बनाते हैं।
मैं पकाऊं तुम गुनगुनाना
मैं परोसूं तुम खाना
तुम उगाना, पकाना सीख लो
मैं लिखना, सुनाना सीखता हूं,
न तुम तुम रहो न मैं मैं रहूं,
आओ हम हो जाते हैं।
आओ भारत बनाते हैं।
चूल्हे की आग के आगे
टिक नहीं सकता सूरज कभी।
मेरे घर की औरत सुलगाती है
सूरज उगने से पहले और
सूरज उगने के बाद चूल्हा।
देखो तो! ये जातंकी,
हमारी औरतों को रौंदकर
नारीपूजन को निकले हैं।
देखो तो ये जातंकी,
मनुष्यों को रौंदकर
पशुपालन को निकले हैं।
देखो तो ये जातंकी,
सारे संसाधन हथिया कर,
मुक्ति पाने निकले हैं।
उमामन मचलौ मनजीत पै,
मनमथ मथौ महेशमन तब।
उमाकांतकान्तिक्रमितमन
देहहीनकान्ताकान्तमन तब।।
प्रणाम पूर्वक-
कैसोई मन कौ होय वौ कारौ,
श्यामसौदामिनी ज्यों निकारौ।
मन मंज-मंज जैहै सोई सारौ,
घन जू! घनौ-घनौ घेरा डारो।।
यार ने आना दरिया पै, छोड़ दिया है,
जबसे ऊने फेसबुक का पैक पिया है।
व्हाट्सअप चबा-चबा कर थूकता है,
प्यारभरी सब खुरापात छोड़ दिया है।।
उड़ जावें सब दूर, वा घड़ी हेरी है,
बीच-बीच वे सुध लें, माला फेरी है।
अंत काल सम्मुख रहें, मनचेरी है,
यह घर-द्वार सम्पति सब ढेरी है।।
रात तना-तनी में जनी से
रार विकट ठनी हमाई।
कछु देर दोऊ चिमाए रए
बिनबोलें नींद न आयी।।
सामन्ती विचारों का परिवर्तन,
संगठित लूट,
"ठाकुर के हाथ गब्बर सिंह ने काट लिए"
शोषितों के बच्चे उसके हाथ बने।
यस्य न वितरेत्काव्यं
सहृदयपूगे समग्रमानन्दम्।
तस्य कवेः किं कार्यं
ब्रूहि मनाक्काव्यगोष्ठीषु।।
आको/३०।०९।२०२३ उमाकांत शुक्ल।
कूटिए विप्र सकल गुण हीना,
शूद्र न गुन गन ज्ञान प्रवीना।।
ढोल गंवार विप्र पशुचारी,
ये सब ताड़न के अधिकारी।। I-४
ऐसी रामचरित मानस के अंशों को भारत के स्कूली पाठ्यक्रमों में पढ़ाकर देश की पीढ़ियों को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है।
परिग्रह से गांधी
और
अभाव से अम्बेडकर
निकले निकालने, रामहेत! राष्ट्र को। 10.01.2025
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