निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
वक्कतुण्डो महाकायसूरियकोटिसमम्पभा।
निव्विघ्नं कुरु मे देव सब्बकायेसु सब्बदा।।
वक्रतुण्ड- नम्र मुखमण्डल
महाकायसूर्यकोटिसमप्प्रभा- विशाल सूर्यों की कोटि(करोड़ों सूर्य समूह) को समित करने वाली प्रभा (कान्ति सौम्यता) वाले।
निर्विघ्नं कुरु- राग रहित कर दो।
मे देव- मेरे बुद्ध देव।
सर्वकार्येषु- भौतिक भोग व्यापारों में
सर्वदा- आद्यान्त
अर्थात्
निर्वाण प्राप्त हो।
यह शरणागत का भन्ते के सम्मुख निवेदन वाक्य है।
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