TATHAGAT
Wednesday, 13 September 2023
संस्कृत साहित्य में अस्पृश्य विमर्श
नव लता जी, नमामि,
ये त्रयः कालकाञ्जा दिविदेवा इव श्रिताः।
तान्त्सर्वानह्व ऊतयेsस्मा अरिष्टतातये।।अथर्ववेद 6-80-2
लोकलवणमाप्तस्य
रत्ननिकररक्तकः।
सागरस्य सिता दत्वा
कः माधुर्यमपेक्षते।।rg
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