Saturday, 30 September 2023

सेवड़ा वक्तव्य

नमो तस्स भगवतो अरहतो संमा संबुद्धस्स।
त्रिशरण क्यों?
त्रिशरण किसके लिए?
आपके लिए त्रिशरण क्यों?
आप कौन?
श्रमण हैं आप-  उत्पादक, निर्माता, कलाकार, नागर हैं, 
जातकों के बोधिसत्व, बौद्ध साहित्य के रचियत, गुफाओं के निर्माता,  लेखक, महाविहारों, विश्वविद्यालयों के मालिक हैं आप, वैद्य, रक्ष, 
पराधीन होने पर खो दिया-
1 स्वास्थ्य
2 सुरक्षा
3 समृद्धि
4 सम्मान 
5 शिक्षा

हारे क्यों?
तर्कशीलता का अभाव-
गैरों पर विश्वास, अपनों पर अविश्वास 
विश्वास घात,
अंधविश्वास, पाखंड,  कुरीतियां
दिखावे पर खर्च 
संपत्ति का हरण 
दमन
हौंसला टूट चुका है
हिम्मत नहीं जुटा पा रहे क्योंकि मरने का डर, 
रोज अपमानित होकर रोज मर रहे हो,
कर्जदार हो चुके हो,
अहसान तले दबे हो,
मेंड़ उनकी है,
राशन वे देते हैं
चुनाव में साडी, बाद हकमारी 
गलियां चौड़ी
चिथड़े छोड़ों
पैसा पाखंड में नहीं पढ़ाई पर 
शस्त्र और शास्त्र पर आपकी पकड़ नहीं  
प्रतीकों का प्रयोग डराने - बिजूका 
ललचाने- बहेलिया करता है
ताबीज धागे वंधन हैं

 





Wednesday, 27 September 2023

अयं बन्धुः

अयं बन्धु: अयं नेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु विगतावरणैव धी:।।
योगवासिष्ठ - ५/१८/६१

ये पापानि न कुर्वन्ति मनोवाक्कर्मबुद्धिभिः।
ते तपन्ति महात्मानो न शरीरस्य शोषणम्।।
महा. वन पर्व - २००/९९

अहिंसा सत्यवचनम् आनृशंस्यं दमो घृणा।
एतत् तपॊ विदुर्धीरा न शरीरस्य शॊषणम्।।
महा. शान्ति पर्व - ७८/१८

Thursday, 21 September 2023

वक्रतुण्ड

वक्रतुण्ड महाकायसूर्यकोटिसमप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।

वक्कतुण्डो महाकायसूरियकोटिसमम्पभा।
निव्विघ्नं कुरु मे देव सब्बकायेसु सब्बदा।।

वक्रतुण्ड- नम्र मुखमण्डल 
महाकायसूर्यकोटिसमप्प्रभा- विशाल सूर्यों की कोटि(करोड़ों सूर्य समूह) को समित करने वाली प्रभा (कान्ति सौम्यता) वाले।
निर्विघ्नं कुरु- राग रहित कर दो।
मे देव- मेरे बुद्ध देव।
सर्वकार्येषु- भौतिक भोग व्यापारों में
सर्वदा- आद्यान्त 
अर्थात्
निर्वाण प्राप्त हो।

यह शरणागत का भन्ते के सम्मुख निवेदन वाक्य है।

Wednesday, 20 September 2023

चूल्हा

चूल्हे की आग के आगे 
टिक नहीं सकता सूरज कभी।
मेरे घर की औरत सुलगाती है
सूरज उगने से पहले और 
सूरज उगने के बाद चूल्हा।

Sunday, 17 September 2023

गौतम जी के व्यंग

बांस का फटका 
आंध्रज पटका।
अक्ल नहीं आई
कहत लुगाई।।rg

पत्थर का शेर 
पत्थर की गैया।
का खाय शेर 
का देती गैया।।

पत्थर का देव 
पत्थर की मैया।
का है देते देव 
का है देती मैया।।

काहे डरें देव
काहे डरें भैया 
पढ़ो लिखो देवि
पढ़ो लिखो भैया।।

समुद्र शान्त हो तो इसका मतलब यह नहीं है,
कि कोई भी आये और नहा धोकर चला जाए। 

भारत बलि उत्तुंग शीश,
ज्ञान-मान-दान छितीश।
हिमालय बलि का शीश, 
रोंदा वामन ले बकशीश।।

भेड़िया नर
वसत विविद् घर
ओढ़ चरित्र 
ले कुतर-कुतर।

तुम वेद गाते हो,
और वेदों में गाते हो,
बहुत अच्छा गाते हो,
पर दाना नहीं उगाते हो।

हम वेद नहीं गाते हैं
हम वेदों में नहीं गाते हैं
हम तो वेदना बोते हैं,
और दाना उगाते हैं।

तुम्हारा वेद और हमारा दाना 
आओ तुम गाओ और हम पकाते हैं।
आओ परिवार हो जाते हैं।

एक जमीन, एक मान,
एक चूल्हा, एक मचान,
एक दुःख, एक सुख, 
आओ एकात्म हो जाते हैं।

अनेक भाषा, अनेक राग,
अनेक रूप, अनेक स्वाद,
अनेक पूजा, अनेक वाद,
आओ एक जगह सजाते हैं,

तुम्हारे पास किताब है,
मेरे पास कपास है,
तुम्हारे पास कल्पना है,
मेरे पास यथार्थ है,
आओ कुछ बनाते हैं।

मैं पकाऊं तुम गुनगुनाना 
मैं परोसूं तुम खाना

तुम उगाना, पकाना सीख लो
मैं लिखना, सुनाना सीखता हूं,
न तुम तुम रहो न मैं मैं रहूं,
आओ हम हो जाते हैं।
आओ भारत बनाते हैं।

चूल्हे की आग के आगे 
टिक नहीं सकता सूरज कभी।
मेरे घर की औरत सुलगाती है
सूरज उगने से पहले और 
सूरज उगने के बाद चूल्हा।

देखो तो! ये जातंकी,
हमारी औरतों को रौंदकर 
नारीपूजन को निकले हैं।
देखो तो ये जातंकी,
मनुष्यों को रौंदकर 
पशुपालन को निकले हैं।
देखो तो ये जातंकी,
सारे संसाधन हथिया कर,
मुक्ति पाने निकले हैं।

उमामन मचलौ मनजीत पै,
मनमथ मथौ महेशमन तब।
उमाकांतकान्तिक्रमितमन 
देहहीनकान्ताकान्तमन तब।।

प्रणाम पूर्वक-
कैसोई मन कौ होय वौ कारौ, 
श्यामसौदामिनी ज्यों निकारौ।
मन मंज-मंज जैहै सोई सारौ, 
घन जू! घनौ-घनौ घेरा डारो।।

यार ने आना दरिया पै, छोड़ दिया है,
जबसे ऊने फेसबुक का पैक पिया है।
व्हाट्सअप चबा-चबा कर थूकता है,
प्यारभरी सब खुरापात छोड़ दिया है।।

उड़ जावें सब दूर, वा घड़ी हेरी है,
बीच-बीच वे सुध लें, माला फेरी है।
अंत काल सम्मुख रहें, मनचेरी है,
यह घर-द्वार सम्पति सब ढेरी है।।

रात तना-तनी में जनी से 
रार विकट ठनी हमाई।
कछु देर दोऊ चिमाए रए
बिनबोलें नींद न आयी।।

सामन्ती विचारों का परिवर्तन,
संगठित लूट, 
"ठाकुर के हाथ गब्बर सिंह ने काट लिए"
शोषितों के बच्चे उसके हाथ बने।

यस्य न वितरेत्काव्यं
सहृदयपूगे समग्रमानन्दम्।
तस्य कवेः किं कार्यं
ब्रूहि मनाक्काव्यगोष्ठीषु।।
आको/३०।०९।२०२३ उमाकांत शुक्ल। 

कूटिए विप्र सकल गुण हीना,
शूद्र न गुन गन ज्ञान प्रवीना।।
ढोल गंवार विप्र पशुचारी,
ये सब ताड़न के अधिकारी।। I-४

ऐसी रामचरित मानस के अंशों को भारत के स्कूली पाठ्यक्रमों में पढ़ाकर देश की पीढ़ियों को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है।

परिग्रह से गांधी
और 
अभाव से अम्बेडकर 
निकले निकालने, रामहेत! राष्ट्र को। 10.01.2025










भेड़िया नर

भेड़िया नर
वसत विविद् घर
ओढ़ चरित्र 
ले कुतर-कुतर।

Friday, 15 September 2023

हिमालय

भारत बलि उत्तुंग शीश,
ज्ञान-मान-दान छितीश।
हिमालय बलि का शीश, 
रोंदा वामन ले बकशीश।।

प्रेमरस

जो तुम लिख देते, प्रेम रस विहारि,
काहे को पंद्रह पेज देते रे! बिगारि।
ढोल पीट ढोर न हांकते, इ गलियारि
जो तुम लिख देते प्रेम-रस विहारि।।

अर्थैराक्षणमिच्छति


मिथ्या वदति भोगान्यः
भोङ्क्ता भोगलोकस्य हि।
मूत्रत्यागी मुखे नृणां
अर्थारक्षणमिच्छति।।

Wednesday, 13 September 2023

संस्कृत साहित्य में अस्पृश्य विमर्श

नव लता जी, नमामि,
ये त्रयः कालकाञ्जा दिविदेवा इव श्रिताः।
तान्त्सर्वानह्व ऊतयेsस्मा अरिष्टतातये।।अथर्ववेद 6-80-2

लोकलवणमाप्तस्य
रत्ननिकररक्तकः।
सागरस्य सिता दत्वा
कः माधुर्यमपेक्षते।।rg

Sunday, 10 September 2023

अरे! चीटर 
कितने बड़े हुए?

डॉक्टर रामहेत गौतम परिचय

डॉ . रामहेत गौतम का 
जन्म 09 जनवरी 1980 को 
पिता श्री मुलायम सिंह गौतम व 
माता श्रीमती लीलावती सिंह गौतम 
के घर ग्राम गुजर्रा ( सम्राट अशोक का लघु शिलालेख स्थल ) पो . परासरी जिला दतिया म.प्र . में हुआ। आपने एम.ए. संस्कृत साहित्य , 
यू.जी.सी. नेट व 
पीएच - डी , की उपाधि प्राप्त की। 
भाषा ज्ञान- पालि, संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी
लिपिज्ञान -धंम लिपि लेखन-पाठन
वर्तमान समय में आप डॉ . हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर ( म.प्र . ) के संस्कृत विभाग में सहायक प्राध्यापक के रूप में 28.05.2013 से कार्यरत हैं। 
आपकी 
01 पुस्तक, 
06 सह सम्पादित पुस्तकें व 
30+ शोध - पत्र, 
10+संस्कृत कविताएं प्रकाशित, 100+ अप्रकाशित, 
10+हिन्दी कविताएं प्रकाशित, 100+ अप्रकाशित, 
लघुकथाएं - 01
संस्मरण- 05 अप्रकाशित 

 पुस्तक अध्याय प्रकाशित - 10+
साहित्य अकादमी प्रकाशित 01
IGNU से 01

आपकी शोध 60+ संगोष्ठियों, 
मंचीय व्याख्यान- 5+
आमंत्रित व्याख्यान- 15+
आयोजन- सेमीनार 02
कोर्सवर्क- 01
विशेष व्याख्यान 05+

05+ कार्यशालाओं में सहभागिता रही है।  
सफल छात्र- 
सहायक प्राध्यापक- 02(रविन्द्र पंत, निकिता यादव)
हायर सेकडरी व्याख्याता- 03(रामप्रकाश, शिल्पी, सूर्यकांत, प्रदीप, जितेन्द्र, रुक्मणी, 
हाईस्कूल- राजेन्द्र आलमपुर, गोविंद सिंह देभई, मनीषा टेड़ा मोहनपुरा, 
पारिवारिक सदस्य- भानसिंह, पहलवान, संजीव, राजकुमार, विजय 
सम्मान
रजत पदक शिक्षा हेतु
संस्कृत सेवी, साहित्य हेतु

अभिरुचि-
अअध्ययन-अध्यापन, समाजसेवा , प्राकृतिक एवं सामाजिक पर्यावरण के प्रति जागरुकता का कार्य, बौद्धसाहित्य एवं दर्शन का अध्ययन में आपकी विशेष अभिरुचि है।

रामहेत शब्द श्रमण परंपरा का शब्द है। 
रामहेत का अर्थ है वह जातक जो सबके प्रति मैत्रीभाव रखता है।
दशरथ जातक कथा में राम पंडित एक बोधिसत्व का नाम है जो लोकहित के लिए जीवन यापन करता है। उसका न किसी से राग है और न ही किसी से द्वेश। वह मध्यमार्गी है। यह राम एक जातक है। प्रज्ञावान है अतः पंडित है। 
न हि वेरेन वेरानि संमंतीध कुदाचनं 
अवेरेन च संमंतीध एस धंमो सनंतनो। 
का अनुगामी है। 
अवेर अर्थात शत्रुता का अभाव मैत्रीभाव। 
वर्तमान में भी बुंदेली में हेत का अर्थ भी मैत्री ही है। जैसे कि हेत लगाना।

Thursday, 7 September 2023

चपड़

ज्यादा चपड़-चपड़ न करो
अरे भाई बुरा मत मानो,
चपड़ का अर्थ है वक्ता।

Sunday, 3 September 2023

कवि मिलन की चाह

उत्तम काव्य सुनि-सुनि जगे, 
कवि दर्शन की चाह।
फूले फूला लखि-चखि के,
भाड़ परन की राह।।

Saturday, 2 September 2023

रिश्तों का कायदा

रिश्तों का कायदा 
छोड दो फ़ायदा।
सुनो हे गौतम!
छोड़ दे फायदा।।
 

समुद्र

समुद्र शान्त हो तो इसका मतलब यह नहीं है,
कि कोई भी आये और नहा धोकर चला जाए। 

रिश्ते

रिश्तों में मुनाफाखोरी
रिश्ते बिगाड़ देती है।
नियत साफ हो तो गौतम!
फ़रिश्ते जुगाड़ देती है।।