सत्य और असत्य की समझ विवेक है। लौकिक और पारलौकिक भोग-विलास का त्याग ही विरक्ति होती है। दुश्मनी का अभाव अर्थात् प्रेम व बन्धुत्व ही शाश्वत सत्य है, और वैरभाव ही अशाश्वत व असत्य है। इसीलिए आंबेडकर ने असत्य और अशाश्वत सिद्धांत को अग्नि में समर्पित कर दिया।।rg
Thursday, 28 August 2025
मनुस्मृति क्यों जलाई गई
सत्यासत्यवस्तुविवेकः। इहामुत्रार्थफलभोगविरागः। अवैरमेव सत्यं सनातनं वैरमेवाsसत्यमसनातनम्। अत एव अम्बेडकरः असत्यं असनातनं मतं अग्नये अर्पितम्।
स्कूल या मंदिर
एक बार एक बालक अपनी मां से जिद कर बैठा कि मां मैं स्कूल नहीं जाऊंगा, मैं तो तेरे साथ रोज मंदिर चलूंगा। तब मां ने कुछ भी नहीं कहा, और उसे लेकर अंदर गयी और दही जमाने के लिए रखे दूध को पके हुए घड़े में न डालकर बगल में रखे कच्चे घड़े में डाल दिया और काम में लग गई। कुछ देर बाद बालक दौड़कर आया और बोला मां दूध तो बर्बाद हो गया क्योंकि घड़ा गल गया। आपको पके हुए घड़े में डालना था। तब तक लड़के के पिता भी आ चुके थे। वह बोले ये क्या मूर्खता है। घड़ा और दूध दोनों बर्बाद कर दिए। बेटा भी पापा की हां में हां मिलाने लगा। तब धीरे से मां बोली तू भी तो कच्चा घड़ा है, अभी से तुझमें अपना अमूल्य धर्म भरेंगे तो तू और धर्म दोनों बर्बाद हो जायेंगे। इसीलिए कहती हूँ कि तेरे लिए अभी सिर्फ विद्यालय में तपने का समय है। जा स्कूल जा। रोज मंदिर जाने के लिए मैं हूँ न।
लघुकथा
डॉक्टर रामहेत गौतम
Wednesday, 27 August 2025
घरघुसा
लाठियां तलवार से हार गईं।
और तलवारें बंदूक से।
बंदूकें समझ से हारीं।
समझ तब आई,
जब देखी दुनिया।
जिन्होंने देख ली दुनिया,
बदल डाले वे अपने आप को,
भाग कर जाना पड़ा लाटसाब को।
इसलिए मरदे दम कह गए दीवाने देश के।
रामहेत घरघुसा बन के मत रह।
तर्कभाषा
तर्कभाषा
उपोद्घातः
बालोऽपि यो न्यायनये प्रवेशम्, अल्पेन वाञ्छत्यलसः श्रुतेन । संक्षिप्तयुक्त्यन्विततर्कभाषा, प्रकाश्यते तस्य कृते मयैषा ।।
'प्रमाण-प्रमेय-संशय-प्रयोजन-दृष्टान्त-सिद्धान्त-अवयव-तर्क-निर्णय-वाद-जल्प-वितण्डा-हेत्वाभास-च्छल-जाति-निग्रहस्थानानां तत्त्वज्ञानान्निःश्रेयसाधिगमः' । न्याय सूत्र 1-1-1 इति न्यायायस्यादिमं सूत्रम् ।
अस्यार्थः । प्रमाणादिषोडशपदार्थानां तत्त्वज्ञानान्मोक्षप्राप्तिर्भवतीति । न च प्रमाणादीनां तत्त्वज्ञानं सम्यग्ज्ञानं तावद्भवति यावदेषामुद्देशलक्षणपरीक्षा न क्रियन्ते । यदाह भाष्यकारः-
'त्रिविधा चास्य शास्त्रस्य प्रवृत्तिरुद्देशो लक्षणं परीक्षा चेति" ।
उद्देशस्तु नाममात्रेण वस्तुसङ्कीर्तनम् । तच्चास्मिन्नेव सूत्रे कृतम् । लक्षण-न्त्वसाधारणधर्मवचनम् । यथा गोः सास्नादिमत्त्वम् । लक्षितस्य लक्षणमुपपद्यते न वेति विचारः परीक्षा । तेनैते लक्षणपरीक्षे प्रमाणादीनां तत्त्वज्ञानार्थ कर्तव्ये ।
प्रमाणपादार्थनिरूपणम्
तत्रापि प्रथममुद्दितस्य प्रमाणस्य तवल्लक्षणमुच्यते। प्रमाणं प्रमाणम्। अत्र च प्रमाणं लक्ष्यं, प्रमाणं लक्षणम्।
ननु प्रमायाः करणं चेत् प्रमाणं र्ताह तस्य फलं वक्तव्यम्, करणस्य फल-वत्त्वत्नियमात् । सत्यम् । प्रमैव फलं, साध्यमित्यर्थः । यथा छिदाकरणस्य परशोश्छिदैव फलम् ।
प्रमा
का पुनः प्रमा, यस्याः करणं प्रमाणम् ।
उच्यते । यथार्थानुभवः प्रमा। यथार्थ इत्ययथार्थानां संशय-विपर्ययतर्क-ज्ञानानां निरासः । अनुभव इति स्मृनिरासः ।
ज्ञातविषयं ज्ञानं स्मृतिः । अनुभवो नाम स्मृतिव्यतिरिक्तं ज्ञानम् ।
करणम्
किं पुनः करणम् ? साधकतमं करणम् । अतिशयितं साधकं साधकतमं प्रकृष्टं कारणमित्यर्थः ।
कारणम्
कारण
कार्य
पह
ननु साधकं कारणमिति पर्यायस्तदेव न ज्ञायते किन्तत्कारणमिति । उच्यते । यस्य कार्यात् पूर्वभावो नियतोऽनन्यथासिद्धश्च तत्कारणम् । यथा तन्तुवेमादिकं पटस्य कारणम् ।
यद्यपि पटोत्पत्तौ दैवादागतस्य रासभादेः पूर्वभावो विद्यते, तथापि नासौ नियतः ।
तन्तुरूपस्य तु नियतः पूर्वभावोऽस्त्येव किन्त्वन्यथासिद्धः पटरूपजननोपक्षीण-त्वात्, पटं प्रत्यपि कारणत्वे कल्पनागौरवप्रसङ्गात् ।
तेनानन्यथासिद्धनियतपूर्वभावित्वं कारणत्वम् । अनन्यथासिद्ध नियतपश्चाद्भा-वित्वं कार्यत्वम् ।
यत्तु कश्चिदाह कार्यानुकृतान्वयव्यतिरेकि कारणमिति, तदयुक्तम् । नित्य-विभूनां व्योमादीनां कालतो देशतश्च व्यतिरेकासम्भवेनाकारणत्वप्रसङ्गात् ।
तच्च कारणं त्रिविधम् । समवायि-असमवायि-निमित्त-भेदात् । तत्र यत्स-मवेतं कार्यमुत्पद्यते तत्समवायिकारणम् । यथा तन्तवः पटस्य समवायि-कारणम् । यतस्तन्तुष्वेव पटः समवेतो जायते, न तुर्यादिषु ।
ननु तन्तुसम्बन्ध इव तुर्यादिसम्बन्धोऽपि पटस्य विद्यते, तत्कथं तन्तुष्वेव पटः समवेतो जायते न, तुर्यादिषु ?
सत्यम् । द्विविधः सम्बन्धः संयोगः समवायश्चेति। तत्रायुतसिद्धयोः सम्बन्धः समवायः । अन्ययोस्तु संयोग एव ।
कौनपुनर्युत्सिद्धौ ? ययोर्मध्ये एकमविनश्यादपराश्रितमेवातिष्ठते तव-युतसिद्धौ।
तदुक्तम्-
तवेवायुतसिद्धौ द्वौ विज्ञातव्यौ ययोर्द्वयोः। अनश्यदेकमपराश्रितमेवातिष्ठते 11
यथा अवायवयविनौ, गुणगुणिनौ, क्रियाक्रियावन्तौ, जातिव्यक्ति, विशेष-नित्यद्रव्ये चेति। अवायव्याद्यो हि यथाक्रममवायवाद्याश्रिता एवावतिष्ठन्ते-ऽविनश्यन्तः। विनश्यादवस्थास्वनाश्रिता एवावतिष्ठन्तेऽवायव्याद्यः। यथा तंतु-नाशे सति पतः। यथा वा आश्रयनाशे सति गुणः। विन्सयत्ता तु विनाश-कारणसामग्रीसन्निध्यम्।
तन्तुपटावप्यवयवावविनौ, तेन तयोः सम्बन्धः समवायोऽयुतसिद्ध-त्वात् । तुरीपटयोस्तु न समवायोऽयुतसिद्धत्वाभावात् । न हि तुरी पटाश्रिते-बावतिष्ठते नापि पटस्तुर्याश्रितः । अतस्तयोः सम्बन्धः संयोग एव । तदेवं
तन्तुसमवेतः पटः ।
यत्समवेतं कार्यसुत्पद्यते तत्समवायिकारणम् । अतस्तन्तुरेव समवायि -कारणं पटस्य न तु तुर्यादि ।
M
पटश्च स्वगतरूपादेः समवायिकारणम् । एवं मृत्पिण्डोपि घटस्य समवायिकारणं, घटश्च स्वगतरूपादेः समवायिकारणम् ।
ननु यदैव घटादयो जायन्ते तदैव तद्गतरूपादयोऽपि, अतः समान-कालीनत्वाद् गुणगुणिनोः सव्येतरविषाणवत्कार्यकारणभाव एव नास्ति पौर्वा-पर्याभावात् । अतो न समवायिकारणं घटादयः स्वगतरूपादीनाम् । कारण-विशेषत्वात् समवायिकारणस्य ।
अत्रोच्यते । न गुणगुणिनोः समानकालीनं जन्म, किन्तु द्रव्यं निर्गुणमेव प्रथममुत्पद्यते पश्चात् तत्समवेता गुणा उत्पद्यन्ते । समानकालोत्पत्तौ तु गुण-गुणिनोः समानसामग्रीकत्वाद् भेदो न स्यात्, कारणभेदनियतत्वात्कार्यभेद-स्य । तस्मात्प्रथमे क्षणे निर्गुण एव घट उत्पद्यते गुणेभ्यः पूर्वभावीति भवति गुणानां समवायिकारणम् ।
तदा कारणभेदोऽप्यस्ति । घटो हि घटं प्रति न कारणमेकस्यैव पौर्वापर्याभावात् । न हि स एव तमेव प्रति पूर्वभावी पश्चाद्भावी चेति । स्वगुणान् प्रति तु पूर्वभावित्वाद् भवति गुणानां समवायिकरणम् ।
Tuesday, 26 August 2025
Sunday, 24 August 2025
दीपक
किसी के पास दिया बनाने का हुनर है, किसी के पास मिट्टी, किसी के पास आग है किसी के पास तेल है। आओ मिलकर दूर भगाएं अंधियारा।
Thursday, 21 August 2025
कृषि मजदूर था। कुटुंब में पहली वार मिली सरकारी नौकरी 10 कर चुकने था।
इस विश्व विद्यालय के द्वारा नियुक्तपत्र पाकर नियोक्ता की सहमति से उस नौकरी को छोड़कर विश्व विद्यालय की सेवा में आ गया। वहाँ के जी पी एफ की राशि व सेवा पुस्तिका वहीं पर है। विश्व विद्यालय को लिखा तो इन्होंने अभी तक नहीं मंगाया।
विश्व विद्यालय की सेवा साख के आधार पर होमलोन तथा पर्सनल लोन लेकर घर बना रहा हूँ। एस बी आई से लगभग 40 लाख का कर्ज है।
12 वर्ष होने के बाद विश्व विद्यालय से
Wednesday, 20 August 2025
short cv
1. 13.02.2013 Verification of Documents, by Dean/Dofa, DHSGSU.
Seminar ppt presentation, at School of Languages, Dr. Harisingh Gour Vishwavidyalaya Sagar MP 470003
2. 13.04.2013 Verification of Documents, by Dofa, DHSGSU. Interview, Conference hall, Lal bahadur Shastri University, Delhi.
3. 28.05.2013 after Call letter receiving, Verification of Documents, by Dofa, DHSGSU. And joined at assistant professor, at department of Sanskrit, Dr. Harisingh Gour Vishwavidyalaya Sagar MP.
4. Verification of Documents, by Dofa, DHSGSU. Service book maintained.
1 Certified copy of university reservation roster from the year 2010 to 2025
2 Certified copy of attendance sheet and marks of Presentation made in school of languages for selection to the Assistant professor in the Sanskrit subject under the school of languages of DHSGSU, Advertisement N. R 03/T/P/RA/2010.
3 Precis of short listed candidates for Assistant professor in the Sanskrit subject under the school of languages of DHSGSU, Advertisement N. R 03/T/P/RA/2010.
4 Slection committee unanimously recommendations for the Appointment of Assistant professor in the Sanskrit subject under the school of languages of DHSGSU, Advertisement N. R 03/T/P/RA/2010.
With reference to your application received in response to the Employment Notification No. UH/Rectt/Teaching/2024-01, dt. 08.11.2024 for the post of Professor against SC category in the Department of Sanskrit Studies, School of Humanities, you are requested to attend the colloquium and interview as per the schedule detailed below:
5.
Wednesday, 13 August 2025
बुद्ध और उनका धम्म
हम लौकिक हैं।
हवा, पानी, भोजन, घर सब अलौकिक नहीं हैं।
इनका अभाव, अधिकता अलौकिक नहीं है।
इनसे होने वाला दुःख अलौकिक नहीं है।
दुःख से मुक्ति के उपाय अलौकिक नहीं हैं।
दुःख मुक्ति के लिए काम करने वाले अलौकिक नहीं हैं।
बुद्ध अलौकिक नहीं हैं।
कबीर अलौकिक नहीं हैं।
ज्योतिवा अलौकिक नहीं हैं।
अम्बेडकर अलौकिक नहीं हैं।
उनके विचार अलौकिक नहीं हैं।
उनसे असहमति असम्भाव्य नहीं है।
न्यायालय के निष्कर्ष
I prepared summary summary of entire judegemnt: we have to think in this line
Court’s Findings
• The 2010 advertisement itself was arbitrary and violated transparency norms (Renu v. District & Sessions Judge, 2014).
• The University had earlier admitted there was no rigorous selection, no merit list, and serious procedural violations — even a CBI inquiry was initiated.
• The 2022 resolution was a complete U-turn from the University’s own earlier stand, the Visitor’s advice, and its 2020 decision.
• Accepting the Visitor’s advice in 2020 made it binding; reversing it in 2022 was “mischievous” and an attempt to perpetuate illegality.
• As per Ashwani Kumar v. State of Bihar (1992), when the entire selection process is polluted, the whole process must be scrapped.
Order
1. The 2022 resolution confirming 82 Assistant Professors is set aside.
2. The 2020 Executive Council decision to conduct fresh selection is restored.
3. Fresh assessment and interviews must be completed within 3 months.
4. If not completed by 15 November 2025, all 2013-appointed Assistant Professors from the 2010 process will cease to hold office.
5. Only those found eligible in the fresh process will be retained.
6. Costs of ₹5 lakhs imposed on the University (Respondents 3 & 4), payable to specified public funds within 45 days; recoverable from those who participated in the 2022 meeting.
Dispute
• In 2022, instead of following its 2020 decision, the University resolved to confirm the remaining 82 Assistant Professors without fresh selection, citing long service and hardship.
• The petitioner challenged this 2022 resolution (Annexure P-11), arguing it overrode court orders, the Visitor’s advice, and earlier admissions of illegality.
Please read below and think
मैंने पूरे फैसले का सारांश तैयार किया: हमें इस दिशा में सोचना होगा
न्यायालय के निष्कर्ष• 2010 का विज्ञापन स्वयं मनमाना था और पारदर्शिता मानदंडों का उल्लंघन करता था (रेणु बनाम जिला एवं सत्र न्यायाधीश, 2014)।
• विश्वविद्यालय ने पहले स्वीकार किया था कि कोई कठोर चयन प्रक्रिया नहीं थी, कोई योग्यता सूची नहीं थी, और गंभीर प्रक्रियात्मक उल्लंघन हुए थे - यहाँ तक कि सीबीआई जाँच भी शुरू की गई थी।
• 2022 का प्रस्ताव विश्वविद्यालय के अपने पहले के रुख, कुलाध्यक्ष की सलाह और उसके 2020 के निर्णय से पूरी तरह उलट था।
• 2020 में कुलाध्यक्ष की सलाह को स्वीकार करने से यह बाध्यकारी हो गया; 2022 में इसे पलटना "शरारतपूर्ण" था और अवैधता को कायम रखने का प्रयास था।
• अश्विनी कुमार बनाम बिहार राज्य (1992) के अनुसार, जब पूरी चयन प्रक्रिया दूषित हो जाती है, तो पूरी प्रक्रिया को रद्द कर दिया जाना चाहिए।
आदेश
1. 82 सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति की पुष्टि करने वाला 2022 का प्रस्ताव रद्द किया जाता है।
2. नए सिरे से चयन करने का कार्यकारी परिषद का 2020 का निर्णय बहाल किया जाता है।
3. नए सिरे से मूल्यांकन और साक्षात्कार 3 महीने के भीतर पूरे किए जाने चाहिए।
4. यदि 15 नवंबर 2025 तक पूरा नहीं किया जाता है, तो 2010 की प्रक्रिया से 2013 में नियुक्त सभी सहायक प्राध्यापक पद पर नहीं रहेंगे।
5. केवल नई प्रक्रिया में पात्र पाए गए सहायक प्राध्यापकों को ही पद पर रखा जाएगा।
6. विश्वविद्यालय (प्रतिवादी 3 और 4) पर ₹5 लाख का जुर्माना लगाया गया है, जो 45 दिनों के भीतर निर्दिष्ट सार्वजनिक निधि से देय होगा; 2022 की बैठक में भाग लेने वालों से वसूल किया जा सकेगा।
विवाद
• 2022 में, विश्वविद्यालय ने अपने 2020 के निर्णय का पालन करने के बजाय, लंबी सेवा और कठिनाई का हवाला देते हुए, शेष 82 सहायक प्रोफेसरों को बिना नए चयन के स्थायी करने का संकल्प लिया।
• याचिकाकर्ता ने इस 2022 के प्रस्ताव (अनुलग्नक P-11) को चुनौती दी, यह तर्क देते हुए कि यह न्यायालय के आदेशों, कुलाध्यक्ष की सलाह और अवैधता की पूर्व स्वीकारोक्ति को दरकिनार करता है।
कृपया नीचे पढ़ें और सोचें
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