Friday, 31 October 2025
चमार संघर्ष
Friday, 24 October 2025
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क्षीरतरङ्गिणी
Thursday, 23 October 2025
Tuesday, 21 October 2025
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Sunday, 12 October 2025
हिन्दी समास
समास
समास का शाब्दिक अर्थ है छोटा रूप। अतः जब दो या दो अधिक शब्द अपने बीच की विभक्तियों का लोप कर जो छोटा रूप् बनाते है, उसे समास, सामाजिक शब्द समास पर कहते है।
सामाजिक पदों को अलग करना समास विग्रह कहलाता है।
समास छः प्रकार के होते है –
1.अव्यवी समास
2.तत्पुरूष समास
3.द्वन्द्व समास
4.बहुव्रीहि समास
5.द्विगुसमास
6.कर्म धारय समास
1. अव्ययी समास:- प्रथम पद प्रधान होता है या पूरा पद अव्यय होता है। यदि शब्दों की पुनरावृति हो।
उदाहरण:-
सामाजिक शब्द/पद समास विग्रह
यथा शक्ति – शक्ति के अनुसार
यथा क्रम – क्रम के अनुसार
यथेच्छा – इच्छा के अनुसार
प्रतिदिन – प्रत्येक दिन
प्रत्येक – हर-एक
प्रत्यक्ष – अक्षि के समान
यथार्थ – जैसा वास्तव में अर्थ है
आमरण – मरण तक
आजीवन – जीवन भर
प्रतिदिन – प्रत्येक दिन
प्रतिक्षण – प्रत्येक क्षण
यावज्जीवन – जब तक जीवन है
लाजवाब – जिसका जबाब न हो
भर तक – सक भर
दुस्तर – जिसको तैराना कठिन हो
अत्यधिक – उत्तम से अधिक
प्रतिशत – प्रत्येक सौ पर
प्रत्याघात – घात के बदले आघात
मरणोपरांत – मरण के उपंरात
दिन भर – पूरे दिन
भर पेट – पेट भरकर
अवसरानुसार – अवसर के अनुसार
सशर्त – शर्त के अनुसार
हरवर्ष – प्रत्येक वर्ष
नीरव – बिना ध्वनि के
सपत्नीक – पत्नी के साथ
पहले पहल – सबसे पहल
चेहरे चेहरे – हर चेहरे पर
– वे उदाहरण जिसमें पहला पद उपसर्ग या अव्यय न होकर संज्ञा या विषेषण शब्द होता है, ये संज्ञा विषेषण शब्द अन्यत्र तो लिंग वचन कारक में अपना रूप लेते है किंतु समास में आने पर उनका रूप स्थिर रहता है।
विवेक-पूर्ण – विवेक के साथ
भागम भाग – भागने के बाद भाग
मंद भेद – मंद के बाद मंद
हाथों हाथ – हाथ ही हाथ में
कुशलतापूर्वक – कुशलता के साथ
घर-घर – घर के बाद घर
दिनों- दिन – दिन के बाद दिन
घड़ी-घड़ी – घड़ी के बाद घड़ी
2. तत्पुरूष समासः-में दूसरा प्रधान होता है इसमें प्रथम पद विशेषण व दुसरा शब्द विशेष्य का कार्य करता है।
लुप्त-कारक समास में कारक की विभक्तियों का लोप होता है सिर्फ कर्ता व सम्बोधन को छोड़कर शेष सभी कारक की विभक्तियों का लोप हो जाता है।
कर्म तत्पुरूष समास ( को विभक्ति का लोप) –
स्वर्गप्राप्त – स्वर्ग को प्राप्त
चिड़ीमार – चिड़ी को मारने वाला
तिलकुटा – तिल को कूटकर बनाया हुआ
प्राप्तोदक – उदक को प्राप्त
कृष्णार्पण – कृष्ण को अर्पण
जेबकतरा – जेब को कतरने वाला
हस्तगत – हस्त को गया हुआ
गिरहकट – गाँठ को काटने वाला
गगन चुंबी – गगन को चूमने वाला
कर्णतत्पुरूष:- ‘सेः का लोप या द्वारा का लोप, जुड़ने का भाव। हस्त लिखित, रेखांकित, अकाल पीड़ित, रत्नजड़ित, बाढ़ग्रस्त, तुलसीकृत, ईष्चरदत्त, नीतियुक्त।
सम्प्रदान तत्पुरूष:- ‘ के ‘ लिए ‘ का ‘ लोप ।
देषभक्ति, रसोईद्यर, गुरूदक्षिणा, सत्याग्रह, दानपात्र, डाकद्यर, छात्रावास, चिकित्सालय।
अपादन तत्पुरूष:- ‘ से ‘ (अलग होना) का लोप।
गुणरहित, देषनिकाला, पथभ्रष्ट, पापमुक्त, धर्मविमुख, नगरागत ।
सम्बन्ध तत्पुरूषः- ‘ का, की, के ‘ का लोप ।
राजपुत्र, सूर्यास्त, संसदसदस्य, गंगाजल, दीपषिखा, शास्त्रानुकूल ।
अधिकरण तत्पुरूष:- ‘ में ‘ पर का लोप ।
रथारूढ़, आपबीति, पदासीन, शीर्षस्थ, स्वर्गवास, लोकप्रिय, ब्रह्मलीन, देषाटन, शरणागत।
अन्य भेद
अलुक तत्पुरूष:- कारक चिह्न या विभक्ति का किसी न किसी रूप में मौजूद रह जाना । जैसे:- धनंजय, मृत्युंजय, मनसिज ।
नञ तत्पुरूष:- अंतिम शब्द प्रत्यय होता है और इस प्रत्यय का स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं होता है। जलज – जल ़ ज
लुप्तपद तत्पुरूष/मध्यपद लोपी तत्पुरूष:- कारक चिह्नों के साथ शब्दों का भी लोप हो जाता है ।
दही बड़ा:- दही में डूबा हुआ बड़ा,
मालगाड़ी:- माल ले जाने वाली गाड़ी
पवनचक्की:- पवन से चलने वाली चक्की
3. कर्मधारय समास:- इसमें दूसरा पद प्रधान होता है तथा दोनों पदों में उपमेय-उपमान अथवा विषेषण-विषेष्य का सम्बन्ध होता है।
नीलकमल में – नील (विषेषण) तथा कमल (विषेष्य) है।
महासागर, महापुरूष, शुभागमन, नवयुवक, अल्पाहार, भलामानुष, बहुसंख्यक(हिन्दु), बहुमूल्य, भ्रष्टाचार, शीतोष्ण- शीत है जो उष्ण है।
उपमेय-उपमान:- चन्द्रमुख, कमलनयन, मृगनयनी-मृग, के नयनों के समान नयन है जिसके, कंजमुख
4. द्विगु समास:-इसमें एक पद संख्यावाची विषेषण होता है तथा शेष पद समूह का बोध कराता है, इसमें दूसरा पद प्रधान होता है, ऐसे समास में एक ही संख्या वाले शब्द सम्मिलित होते है जैसे:-
एकांकी:- एक अंक का
इकतारा:- एक तार का
चौराहा:- चार राहों का समाहार, सप्तर्षि, नवरत्न, सतसई, अष्टाध्यायी, पंचामृत(घी, दूध, दही, शहद)
5. द्वन्द्व समास:- इसमें दोनों पद प्रधान होते है, दोनों पदो ंके मध्य ‘ और ‘ या ‘ या ‘ आदि का लोप होता है। जैसे:- माता-पिता, अन्नजल, गुरू-षिष्य
पच्चीस:- पाँच और बीस अड़सठ:- आठ और सा�
धनुर्बाण, धर्माधर्म, हरिहर, दाल रोटी- दाल रोटी आदि ।
भला बुरा- बुरा आदि, अडौसी-पड़ौसी:- पड़ौसी आदि ।
एक-दो:- एक या दो, दस-बारह:- दस या बारह, दस से बारह तक।
6. बहुव्रीहि समास:-दोनों पक्षों में से कोई पद प्रधान नहीं होता है, अपितु तीसरे पद की कल्पना की जाती है। जैसे:- लम्बोदर, दषानन, पवनपुत्र, भालचंद्र(षिव), चन्द्रमौलि, सूपकर्ण(गणेष), षडानन (कार्तिकेय)
Sunday, 5 October 2025
संस्कृत, अम्बेडकर और भारतीय
20 जुलाई 2019 को, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बाबासाहेब आंबेडकर का स्मरण करते हुए कहा: "संस्कृत के बिना भारत को पूरी तरह से समझा नहीं जा सकता। 30% भारतीय भाषाएँ संस्कृत से ली गई हैं। आंबेडकर ने कहा कि उन्हें दुख है कि वे संस्कृत नहीं सीख पाए और उन्हें पश्चिमी अनुवादित संस्करणों से पढ़ना पड़ा, जो शायद गलत भी हों। उन्होंने संस्कृत को भारत की राष्ट्रीय भाषा बनाने का समर्थन किया।"
हालाँकि किसी नेता के लिए यह राय रखना कोई समस्या नहीं है कि कोई विशेष भाषा अन्य भाषाओं से ज़्यादा महत्वपूर्ण है, लेकिन अपने तर्कों को पुष्ट करने के लिए बाबासाहेब का नाम संदर्भ से बाहर, सफ़ेद झूठ के साथ उछालना निंदनीय है। दक्षिणपंथी या मध्य-दक्षिणपंथी नेताओं को बाबासाहेब आंबेडकर का ज़िक्र करते देखना हमेशा दिलचस्प होता है। वे लगभग हर उस बात के पक्ष में खड़े होते हैं जिसका उन्होंने कड़ा विरोध किया था।
श्री भागवत के इस बयान के पीछे कई धारणाएं और तथ्य हैं जिन्हें संदर्भ से बाहर लिया गया है, जिन्हें कुछ तथ्यों और कुछ प्रश्नों के माध्यम से दूर किया जा सकता है।
कुछ तथ्य:
1. अंबेडकर संस्कृत (हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, गुजराती और पाली सहित) में धाराप्रवाह थे और उन्होंने 'रिडल्स इन हिंदूइज़्म' लिखी है । यह पुस्तक अंबेडकर की मृत्यु के 3 दशक बाद प्रकाशित हुई थी। मराठा मंडल ने इसकी प्रतियां जलाईं और शिवसेना ने 'राम और कृष्ण' पर एक अध्याय को हटाने के लिए अदालतों में रैली की। अंबेडकर ने अपनी पुस्तक में वेदों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत से सटीक छंद उद्धृत किए हैं। यह खोजना मुश्किल है कि अंबेडकर ने पश्चिमी विद्वानों को पढ़ने के लिए अपना अफसोस कहां व्यक्त किया है; जो उनके जैसे ही वेदों की ब्राह्मण व्याख्याओं के आलोचक थे। वह उद्धृत करते हैं (पृष्ठ 18) प्रोफेसर मैक्स मुलर (प्राचीन संस्कृत साहित्य का इतिहास): "ब्राह्मण ग्रंथों में वैदिक भजनों के मूल उद्देश्य की पूरी तरह से गलतफहमी है
2. अंबेडकर ने पहले लालकृष्ण मैत्रा के संस्कृत को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने के प्रस्ताव का समर्थन किया था, लेकिन युवा सदस्यों के असहमत होने के कारण इसे छोड़ दिया। 1950 में, जब राष्ट्रभाषा के लिए अंतिम बहस हुई, तो हिंदी बनाम अंग्रेजी का मामला था। नेहरू हिंदी के पक्ष में थे और अंबेडकर अंग्रेजी के।
3. इस तथ्य की क्या प्रासंगिकता है कि आंबेडकर ने 60 साल पहले संस्कृत का समर्थन किया था, जबकि भारत (2011) का 0.00198% हिस्सा संस्कृत समझता है। दरअसल, आंबेडकर की पुस्तक 'द अनटचेबल्स एंड पैक्स ब्रिटानिका' में , उन्होंने 1840 में बॉम्बे के सरकारी स्कूलों में संस्कृत पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या के स्पष्ट आँकड़े उद्धृत किए हैं। यह संख्या 12170 में से 283 थी। वे इस बात के प्रमाण प्रस्तुत करते हैं कि कैसे इस पहलू में भी निचली जातियों का व्यवस्थित बहिष्कार किया गया था।
4. वे कौन से स्रोत हैं जो साबित करते हैं कि 30% भारतीय भाषाओं में संस्कृत है? मुझे एक भी ऐसा स्रोत नहीं मिला जो यह आँकड़ा दे सके।
कुछ प्रश्न:
1. क्या संस्कृत समझने से भारत की स्पष्ट समझ की गारंटी मिल सकती है? एक ऐसी भाषा जो लगभग 100% भारतीयों द्वारा बोली या लिखी भी नहीं जाती, भारत को समझने का पैमाना कैसे हो सकती है? हो सकता है कि हिंदू धर्मग्रंथ संस्कृत में लिखे गए हों। लेकिन हमारी कोई भी पाठ्यपुस्तक - इतिहास, विज्ञान, कुछ भी उस भाषा में नहीं है। 2019 में संस्कृत कैसे प्रासंगिक है?
2. हालाँकि मैंने दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में संस्कृत में 97/100 अंक प्राप्त किए थे, फिर भी आज मैं संस्कृत का एक शब्द भी नहीं बोल सकता। मैंने संस्कृत (ज़्यादातर दूसरे छात्रों की तरह) इसलिए चुनी क्योंकि इसमें हिंदी (दूसरा विकल्प) से ज़्यादा अंक मिल सकते थे। ज़ाहिर है कि आज मुझे संस्कृत बोलना या लिखना नहीं आता। ऐसा इसलिए नहीं है कि मैं संस्कृत का अनादर करता हूँ, बल्कि इसलिए कि मुझे संस्कृत में न तो कुछ बोलना है और न ही पढ़ना/देखना है।
3. किसान आत्महत्याएँ, बाढ़, गिरती मुद्रा, बढ़ती बेरोज़गारी, फ़ेक न्यूज़, महिला सुरक्षा, मॉब लिंचिंग। संस्कृत का राष्ट्रीय भाषा न होना आज भारत के सबसे बड़े मुद्दों में से एक कैसे है? ऐसा नहीं है। लेकिन यह ऊपर बताए गए विषयों से ध्यान भटकाने का एक अच्छा ज़रिया है।
4. मान लीजिए कि मैं भारत को ठीक से नहीं समझ पाता क्योंकि मैं संस्कृत नहीं जानता, तो क्या इससे मैं भारतीय नागरिक नहीं रह जाता?
5. भारतीय भाषाएँ भी उर्दू और फ़ारसी से काफ़ी कुछ उधार लेती हैं। तो?
6. अगर अंबेडकर जिस बात का समर्थन करते थे, वह इतनी ही महत्वपूर्ण है, तो उनकी सबसे बड़ी इच्छा भारत से 'जाति व्यवस्था' (जाति का विनाश) को हटाकर सभी असमानताओं को दूर करना था । यह कैसा रहेगा?
ये विचार एक ऐसे व्यक्ति के हैं, जो न तो सत्ता का साधन रहा है और न ही महानता का चापलूस। ये विचार एक ऐसे व्यक्ति के हैं, जिसका लगभग पूरा सार्वजनिक परिश्रम गरीबों और शोषितों की मुक्ति के लिए एक सतत संघर्ष रहा है और जिसका एकमात्र प्रतिफल राष्ट्रीय पत्रिकाओं और राष्ट्रीय नेताओं द्वारा निरंतर निंदा और गाली-गलौज की बौछार रहा है, और इसका कोई और कारण नहीं, बल्कि केवल यही है कि मैं उनके साथ उस चमत्कार—मैं इसे चाल नहीं कहूँगा—को करने में शामिल होने से इनकार करता हूँ, जिसमें अत्याचारी के सोने से शोषितों को मुक्ति दिलाई जाती है और अमीरों के धन से गरीबों को ऊपर उठाया जाता है।
—डॉ. अम्बेडकर, 'जाति का विनाश'