शिक्षा , राजनीतिक समझ , सामाजिक उत्थान,आर्थिक विकास इन सभी मामलों उन्होंने खुद को समय के साथ बहुत तेजी से अपडेट किया है ।
शिक्षा पर सर्वाधिक ध्यान दिया । शिक्षा के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से शहर की तरफ प्रवास किया । आर्थिक कष्ट उठाये।दिहाड़ी मजदूर के तौर पर भी कार्य किया ,मगर अपनी आने वाली पीढ़ी को शिक्षित बनाने पर जोर दिया । आज शिक्षा का जो प्रसार इनमें है वो तारीफ के काबिल है ।
सामाजिक आत्मसम्मान के लिए उन्होंने एक लंबी लड़ाई लड़ी । अपना जमा जमाया पुश्तैनी चमड़े का व्यवसाय छोड़ने के पीछे सबसे बड़ा कारण था आत्म सम्मान की लड़ाई । सामाजिक अत्याचारों के मामले में भी डटकर प्रत्युत्तर देने की सफल रणनीति उन्होंने अपनाई । और ऐसा नहीं है कि उन्होंने ये लड़ाई गैर कानूनी तरीके से लड़ी हो । ज्यादातर मामलों में उन्होंने कानूनी तरीके से ही इस लड़ाई को जीता है । धर्म के मामले में भी उन्होंने उत्पीड़न का रोना रोने और दूसरों को गाली देने कि जगह बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी द्वारा दिखाए गये रास्ते पर चलते हुए बौद्ध मत की तरफ रुख कर लिया । कोई चिक-चिक झिक झिक नहीं। समाज में अन्य जातियों के साथ भी उन्होंने समानता के साथ बेहतर सामाजिक संबंध बनाये।
आर्थिक तौर पर रोजगार के नये साधन अपनाये। आर्थिक उन्नति पर ध्यान दिया । और सबसे बड़ी बात की जुआ शराब सट्टा जैसी उन कुरीतियों से दूरी बनाई जो आर्थिक रूप से आदमी को पंगु बनातीं हैं ।
सबसे ज्यादा जो बात मुझे प्रभावित करती है वो है उनकी राजनीतिक समझ । भारतीय राजनीति में बहुजन विचारधारा की न सिर्फ उन्होंने स्थापना की अपितु उस विचारधारा को एक राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर खड़ा करके दिखाया । दलितों की एक स्वतंत्र राजनीतिक पहचान खड़ी की । कांग्रेस की तरफ से ब्राह्मण दलित मुस्लिम समीकरण के अंतर्गत ब्राह्मण डॉमिनेशन की पॉलिटिक्स की जा रही थी जिसमें दलितों को मात्र वोट बैंक के तौर पर यूज किया जा रहा था । उन्होंने बहुजन राजनीति के माध्यम से इस समीकरण को हमेशा के लिए खत्म करके दलितों को वोट बैंक पॉलिटिक्स से आजादी दिलाई । मगर ऐसा भी नहीं होने दिया कि बहुजन के नाम पर कोई और फायदा उठाकर उनका शोषण करने लगे ।
जब उन्होंने देखा कि जमींदार जातियां बहुजन राजनीति के नाम पर उन्हें मात्र यूज करना चाह रहीं हैं तो उन्होंने इसका भी प्रतिकार किया । बहुजन राजनीति को उन्होंने जड़ता का शिकार नहीं होने दिया । जिन प्रतीकों और नारों के साथ उन्होंने इस राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की समय आने पर उनमें बदलाव भी किया। हमेशा टकराव की राजनीति न करके सत्ता में आने पर सृजनात्मक राजनीति को बढ़ावा दिया ।आज आम्बेडकरवादी राजनीतिक विचारधारा पूरे देश में मजबूती से खड़ी दिखाई दे रही है जो उसका श्रेय चमार जाति को ही जाता है ।
अपनी जाति ब्राह्मण को मैं यही सलाह दूंगा कि इन मामलों में इनसे सीख लेने की कोशिश करनी चाहिए।
आलोक महान की फेसबुक वॉल से
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