Tuesday, 5 February 2019

13 पाईंट रोस्टर

संविधान में कमजोर वर्गो के  न्याय के लिए कुछ संविधानिक संस्था/आयोग  बनाये गए  है  संविधान में  वर्णित इन आयोगों को संबंधित समूहों की समस्या सुनने,उन समूहों से संबंधित व्यक्तियों   की  शिकायतों की जांच करने, उस शिकायत पर निर्णय लेने और दोषी  पाए  जाने पर संबधित  विभाग को सजा  की सिफारिश  करने का अधिकार दिया गया है, लेकिन इन संविधानिक आयोगों की सिफारिशों  को संबंधित विभाग कितनी गंभीरता  से लेता है यह एक चिंता  का विषय है,इससे न्याय का सम्पूर्ण ढांचा  ढांचा अस्त व्यस्त हो जाता है
दिल्ली विश्व विधालय  में sc/st  से संबंधित पार्लियामेंट  अफेयर कमिटी की रिपोर्ट  को कोन भूल सकता है कमिटी ने दिल्ली विश्व विधालय को आरक्षण के संविधानिक प्रावधानों  का दोषी पाया  और अपनी रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया, लेकिन इस पर पर कोई कार्यवाही  नहीं हुई, विश्व विधालय के बहुत छोटे अधिकारियो  ने इसे केवल सलाहकारी कह कर कूड़े के ढेर में डाल दिया ,जो संविधानिक संस्था का मजाक था
इसी प्रकार का एक केस SOL दिल्ली विश्वविद्यालय का है जिसमे जनजाति  आयोग ने दौ साल  लगातार सघन  जांच  के बाद SOL के कार्यकारी निदेशक ( हरीश चंद्र पोखरियाल) को जनजाति के ऑफिसर  का प्रमोशन  रोकने  का दोषी पाया और कार्यकारी निदेशक (हरीश चंद्र पोखरियाल) को सस्पेंड  करने की सिफारिश मानव संसाधन मंत्रालय को भेज दी,लेकिन  अभी तक कार्यकारी निदेशक को सस्पेंड नहीं किया गया |
संविधानिक संस्थाओकी सिफारिशो पर संबंधित विभागों  और स्वायत संस्थाओ का यह  नकारात्म  रैवया  संविधान  के अनुसार शासन  के संचालन  के लिए बहुत  धातक है यदि  इन विभागों का यह रैवया बना  रहता है तो लोगो का इन संस्थाओ में व्यक्तियों का विशवास समाप्त हो सकता हैऔर  यह एक तरह संविधानिक संस्थाओ के फेलियर  की स्थिति बन जायेगी |

आजकल संस्थाओ के नियमो  के अनुसार संचालन  पर लोग सवाल  उठाने लगे है इसलिए आवश्यकता इन संस्थओ की इज्जत  बनाये   रखने की आवश्यकता है इसलिए इनकी सिफारिशों पर गंभीरता से  निर्णय लेने की आवश्यकता है,

  विशेषकर पूर्ण  जांच के बाद  दोषी पाए जाने वाले  लोगो के संदर्भ  दिए जाने वाले निर्णयों  के अनुपालना करने में ,क्क्योकि यही इनके द्वारा न्याय दिलवाने के मूल  उद्देश्य का हिस्सा है,

आजकल लोगो का आक्रोश इस संदर्भ में बढ़ता जा रहा है जिसको हम  विभिन्न  प्रदर्शनों  में देख सकते है संविधानिक संस्थानों के  आदेश अनुपालना में विभिन्न विभागों का  लचर रैवया इसे ओर बढ़ा देता है
और यदि  इन आयोगों के  आदेशों की अनुपालना  नहीं होती है  या ये आयोग अपने आदेशों की अनुपालना नहीं करवा पाते है तो इन आयोगों को समाप्त कर देना चाहिए ,

ज़िससे  संबंधित समूह  भरम में ना रहे ,न्याय की उम्मीद के बाद न्याय न मिलना   निश्चित रूप से एक  अधिक शर्मनाक स्थिति है जिससे बचा जा सकेगा |

संविधानिक जस्टिसमार्च ओन |

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